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भारतीय संस्कृति

विवेकानंद और उनका हिन्दुत्व-दर्शन

गतांक से आगे……
धर्म महासभा की महिला समिति की अध्यक्षा श्रीमती पाटर पॉमर ने इस भाषण का आयोजन जैक्सन स्ट्रीट शिकागो के महिला भवन में किया था। स्फुट विचारों का अवलोकन करें-swami-vivekananda
किसी भी राष्ट्र की प्रगति का सर्वोत्तम थर्मामीटर है, वहां की महिलाओं के साथ होने वाला व्यवहार।
भारत में स्त्री जीवन के आदर्श का आरंभ और अंत मातृत्व में ही होता है। प्रत्येक हिंदू के मन में स्त्री शब्द से मातृत्व का स्मरण हो आता है और हमारे यहां ईश्वर को मां कहा जाता है (त्वमेव माता च पिता त्वमेव)।
पश्चिम में स्त्री पत्नी है, भारत में स्त्री माता है। पाश्चात्य देशों में गृह की स्वामिनी और शासिका पत्नी है, भारतीय गृहों में परिवार की स्वामिनी और शासिका माता है।
पश्चिम में माता को पत्नी के अधीन रहना पड़ता है क्योंकि वह घर पत्नी का है। हमारे घरों में पत्नी को माता के अधीन रहना होता है।
ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति वे हाथ हैं जो सर्वप्रथम नवजात शिशु का पालना झुलाते हैं विश्व से मां नाम से अधिक पवित्र और अमूल्य दूसरा कौन सा नाम है जिसके पास वासना कभी फटक भी नही सकती। यही भारत का आदर्श है।
आधुनिकता और नारी समानता की डींग हांकने वाले पश्चिमी सभ्यों को स्वामी जी स्मरण दिलाते हैं कि पश्चिमी आलोचकों ने हिंदुओं के रीति-रिवाज के संबंध में चाहे जो कहा हो, भारतीय नारी की दासता के विषय में कुछ भी टिप्पणी की हो किंतु मैंने भारतवर्ष में कभी किसी स्त्री को बैल के साथ हल में जोते जाते या कुत्ते के साथ गाड़ी खींचते नही देखा जैसा यूरोप के कुछ देशों में होता आया है।
अमेरिका की माताओ। क्या आप माता होने के लिए कृतज्ञ हंै? क्या आप यह समझती हैं कि मातृत्व प्राप्त करके आप पवित्रतापूर्ण गौरव को प्राप्त करती हैं? आप अपना हृदय टटोलें और पूछें? यदि नही तो आपका विवाह मिथ्या है, आपका नारीत्व मिथ्या है और आपकी शिक्षा एक ढकोसला है, और यदि आपके बच्चे प्रभु की प्रार्थना के बिना जन्म लेते हैं तो वे संसार के लिए अभिशाप सिद्घ होंगे।
हमारे समृतिकार कहते हैं कि वही संतान आर्य है, श्रेष्ठ है जो प्रार्थना के द्वारा जन्म लेती हैं।
धर्म और विज्ञान: स्वामी विवेकानंद की दृष्टि में
शिकागो सम्मेलन के विज्ञान विभाग में स्वामी जी ने उन पश्चिमी लेखकों एवं कथित इतिहासकारों के ग्रंथों को चुनौती दी जो दर्पणपूर्ण घोषणा करते हैं कि भारत में कोई अनुसंधान कभी नही हुआ।
शून्य और 1 से 9 तक की गिनती सर्वप्रथम भारत में ही आविष्कृत हुई। यहां से यह गणित विज्ञान अरब देशों में गया जहां इन्हें आज भी हिंदसा कहा जाता है। दशमलव प्रणाली का आविष्कार भारत में ही हुआ। रूस वालों को कभी गिनती का ज्ञान नही था इसलिए  I, II. III, IV, V, X, L, C  की सहायता से गिनतियों को अभिव्यक्ति दी गयी।
भारत में करोड़ के बाद अरब, खरब, नील, दस नील, पदम, दस पदम, शंख, दस शंख तक गिनतियां लिखी जाती हैं। पश्चिमी वाले बताएं आज भी उन पर क्या गणना है? लाख के दस लाख।
पाइथागोरस का सिद्घांत सांख्य दर्शन से लिया गया। यूरोपियन गोरों के पूर्वज जंगलों में पेड़ों के पत्तों से तन ढककर रहते थे, कच्चा मांस खाते थे, तब भी उससे हजारों साल पहले यहां भारत में सभ्यता के सूर्य का पूर्ण प्रकाश उद्भासित हो चुका था।
डेढ़ दो हजार वर्ष पुराना है इस्लाम व ईसाई मजहब, तीन हजार वर्ष पुराना है यहूदी मजहब। यह है तुम्हारा इतिहास, इससे पहले का तुम्हारे पास कोई शब्द भी नही बन सका। बस Pre-historic Era कहकर संतोष करना पड़ा। हमारे पास सृष्टि का 1, 97, 29, 49,110 वर्ष का एक एक दिन का हिसाब है।
यदि हमारे ऋषियों को अंतरिक्ष ज्ञान नही था तो तुमने Telescope के आविष्कार के बाद सूर्य की परिक्रमा करने वाली पृथ्वी के 12 तारा क्षेत्रों की राशियों (मीन, मेष आदि) के नाम आज तक क्यों नही बदले?
तुम बाईबिल में 350 वर्ष पहले तक सूर्य को पृथ्वी के चारों ओर घुमाते रहे और जब गैलीलियो ने कहा-बाईबिल गलत है, सूर्य स्थिर है, पृथ्वी घूमती है, तो तुमने उसे पत्थर मार-मार कर मौत के घाट उतार दिया। यह है तुम्हारी आधुनिक वैज्ञानिकता। बंगाल के सर जगदीश चंद्र बसु ने खोजा था बेतार का तार Wireless तुमने चोरी करके मार्कोनी को नोबुल पुरस्कार दिलाया। आज का विज्ञान प्राचीन भारतीय वैदिक धर्म की प्रतिच्छवि मात्र है। उपनिषदों का सूक्ष्म और स्थल व्यक्त और अव्यक्त ‘अणोरणीयान महतो महीयान’ के अनुसार विज्ञान की सभी खोजों से परे है, अकाट्य है।Law of Conservation of Energyका सिद्घांत बताया है सृष्टि और स्रष्टा की दो समानांतर अनादि अनंत शक्तियों का महत्व।
क्रमश:

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