“शास्त्रार्थ महारथी एवं वेद प्रचारक विद्वान पं. बिहारीलाल शास्त्री, बरेली”

ओ३म्


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फाल्गुन शुक्ला तृतीया सम्वत् 1947 विक्रमी आर्यसमाज के समर्पित विद्वान, प्रचारक एवं शास्त्रार्थ महारथी पं. बिहारीलाल शास्त्री, बरेली जी का 132 वां जन्म दिवस है। इस वर्ष यह दिवस दिनांक 5 मार्च, 2022 को पड़ रहा है। शास्त्री जी के विषय में हमें शीर्ष वैदिक विद्वान रहे डा. भवानीलाल भारतीय जी रचित आर्य लेखक कोष में सामग्री उपलब्ध हुई है। इस सामग्री को हम यथावत् प्रस्तुत कर रहे हैं।

अद्भुत शास्त्रार्थी, तार्किक, प्रबल वक्ता तथा उपदेशक पं. बिहारीलाल शास्त्री का जन्म फाल्गुन शुक्ला तृतीया सं. 1947 वि. को मुरादाबाद जिले के पागबड़ा ग्राम में हुआ। इनके पिता का नाम पंडित अयोध्याप्रसाद था, जो भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण थे। परिवार में खेती तथा लेनदेन का काम होता था। बिहारलालजी का संस्कृत अध्ययन पंडित लोकनारायण तथा उनके पुत्र पं. केदारलाल से हुआ। इनके निकट रहकर उन्होंने अमरकोश, लघु कौमुदी आदि ग्रन्थ पढ़े। प्रथमा परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् इन्हें सम्भल की संस्कृत पाठशाला में अध्यापक का कार्य मिला। पं. बंशीधर पाठक तथा पं. शिवशर्मा के सान्निध्य से ये आर्यसमाजी बने। कुछ समय तक मुरादाबाद के इस्लामिया स्कूल में शिक्षण कार्य किया। पुनः रतनपुर की जैन पाठशाला में भी शिक्षक रहे। जब पं. भोजदत्त शर्मा ने आगरा में आर्य मुसाफिर विद्यालय की स्थापना की, तो बिहारीलालजी वहां उपदेशक कक्षा को पढ़ाते रहे। 1920 से 1924 तक आर्य उपप्रतिनिधि सभा जिला बिजनौर के अन्तर्गत प्रचार कार्य किया।

कालान्तर में बरेली के सरसवती विद्यालय में अध्यापन कार्य किया। अन्ततः जिला बदायूं के उंझानी कस्बे में म्युनीसिपल इण्टर कालेज में संस्कृत के प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए 1956 में अवकाश ग्रहण किया। पण्डित बिहारीलाल शास्त्री ने अपने जीवनकाल में विभिन्न मतानुयायी विद्वानों से अनेक शास्त्रार्थ किए जिनमें आपको सदा विजयश्री प्राप्त होती रही। वे जीवन के अन्तिम बर्षों में बरेली में रहे। 3 जनवरी 1986 को इनका विधन हुआ।

लेखकीय कार्य-ऋग्वेद के दशम मण्डल का रहस्य, यजुर्वेद का रहस्य, साकार निराकार निर्णय, वेदवाणी (वेद विषयक निबन्धों का संग्रह), पशुबलि और वेद, योगिराज श्रीकृष्ण, इस्लाम का स्वरूप, चुने हुए फूल, धर्म तुला (1976), चार शास्त्रार्थ, वैदिक पताका, दम्भ दमन (2021 वि.), अंगद चरण, मूर्तिपूजा पर प्रामाणिक शास्त्रार्थ, क्या मूर्तिपूजा वेदोक्त है? (2020 वि.), सत्यार्थप्रकाश का महत्व (2036 वि.), शिव का यथार्थ स्वरूप तथा गोस्वामी तुलसीदास।

उपर्युक्त मौलिक ग्रन्थों के अतिरिक्त शास्त्री जी ने स्वामी दर्शनानन्द कृत वेदान्त दर्शन के उर्दू भाष्य (अपूर्ण) का हिन्दी अनुवाद किया। उनका चाणक्य नीति का भाषानुवाद तथा दृष्टान्तसागर भी प्रकाशित हुए हैं।

पं. जगदीश विद्यार्थी जी के सम्पादन में सन् 1973 में पं. बिहारीलाल शास्त्री जी पर एक अभिनन्दन ग्रन्थ भी प्रकाशित किया गया था।

हम सन् 1970 से आर्यसमाज धामावाला देहरादून के सदस्य रहे। अपने मित्रों से ज्ञात हुआ था कि पं. बिहारीलाल शास्त्री जी आर्यसमाज धामावाला के उत्सवों वा वेदकथाओं आदि के अवसर पर आया करते थे। यद्यपि उनका देहावसान सन् 1986 में हुआ, परन्तु हमें समाज मन्दिर में कभी उनके दर्शन का सौभाग्य नहीं मिला। हमारा ऋषिभक्त वेदप्रचारक एवं शास्त्रार्थ महारथी विद्वान पं. बिहारीलाल शास्त्री जी को सादर नमन एवं श्रद्धाजंली है।

-मनमोहन कुमार आर्य

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