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इस्लाम के नाम पर यह क्या?

डॉ0 वेद प्रताप वैदिक

सीरिया और इराक में ‘इस्लामी राज्य’ के लिए लड़ रहे मुजाहिदों ने अपने मुंह पर चौथी बार कालिख पोत ली है। एलान हेनिंग की गर्दन काटने के पहले भी वे तीन गोरों की गर्दन काट चुके हैं। गर्दन काटने के वीभत्स वीडियो भी वे जारी कर रहे हैं। इन चार लोगों में से दो अमेरिकी हैं और दो ब्रिटिश। isis terroristदो पत्रकार थे और दो समाजसेवी।

इन चारों लोगों के बारे में किसी को भी संदेह नहीं है कि वे इस्लामी राज्य के विरुद्ध थे या अपने-अपने देशों की तरफ से युद्ध में संलग्न थे या जासूसी कर रहे थे। दूर-दूर तक उनका कोई अपराध नहीं था। जो पत्रकार थे, वे अपना कर्तव्य निभा रहे थे, अपनी जान पर खेलकर युद्ध की खबरें भेज रहे थे, प्रकारांतर से इस्लामी राज्य का सारी दुनिया में प्रचार कर रहे थे। दूसरे दोनों लोग विनम्र समाजसेवी थे। वे अपना देश, अपना परिवार और अपना सुख-चैन छोड़कर युद्ध के मैदान में आखिर क्यों आए थे? क्योंकि उनके दिल में दया थी। सेवा की भावना थी। वे शरणार्थियों और युद्ध पीड़ितों की सेवा कर रहे थे।

इन दरिया दिल विदेशियों के प्रति इस्लामी राज्य और उसके विरोधियों, दोनों को आभारी होना चाहिए लेकिन इन्हीं लोगों को पकड़कर इस्लामी राज्य के जवानों ने बंधक बना लिया और यह कहकर उनके सिर काटते जा रहे हैं कि वे अमेरिका और ब्रिटेन से बदला ले रहे हैं।

यदि इस्लामी राज्य के इन कारनामों में जरा भी औचित्य होता तो इस्लाम के बड़े-बड़े मौलाना इनकी भर्त्सना क्यों करते? इन हत्याओं को उन्होंने इस्लाम विरोधी और इस्लाम को बदनाम करने वाला बताया है। यह सचमुच बड़ा ही कायराना काम है। इस्लामी राज्य के लड़ाकू जवान यदि बमबारी करने वाले अमेरिकी और ब्रिटिश फौजियों को पकड़ लेते तो वह बात समझ में आ सकती थी लेकिन निहत्थे पत्रकारों और समाजसेवियों को मौत के घाट उतारना कायराना काम तो है ही, शुद्ध ब्लैकमेल भी है।

क्या उन्हें पता नहीं कि इन हत्याओं से वे डर पैदा नहीं करेंगे बल्कि घृणा पैदा करेंगे। वे लोग भी इन इस्लामियों से नफरत करने लगेंगे, जो अमेरिका और ब्रिटिश के विरुद्ध हैं। उनके अपने समर्थकों को भी शर्म आएगी कि इस्लाम के नाम पर यह कैसा वहशीपन हो रहा है। इस तरह की हत्याएं और उनका प्रचार तुरंत बंद होना चाहिए। वरना इस्लामी राज्य वाले अपनी जड़ें खुद खोदेंगे। मेरी समझ में नहीं आता कि हमारा विदेश मंत्रालय इस मामले में चुप क्यों है। पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव और अफगानिस्तान जैसे मुस्लिम बहुल राष्ट्रों को इस मामले में आगे होकर अपील जारी करनी चाहिए।

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