Categories
हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

आर्य समाजी पृष्ठभूमि के थे आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार

आरएसएस के संस्थापक श्री के. ब. हेडगेवार आर्य समाज की पृष्ठ भूमि से ही आते थे। हेडगेवार जी के पिता जी आर्य समाज के पुरोहित थे, और वेदादि शास्त्रों के एक अच्छे विद्वान भी थे। इसलिए हेडगेवार के विचारो पर आर्य समाज के सिद्धांतो और राष्ट्रभक्ति की छाप देखी जा सकती है।

आजादी के बाद कश्मीर में बलिदान होने वाले जनसंघ के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी ‘आर्य समाज’ और ‘सत्यार्थ प्रकाश’ से अति प्रभावित थे। मुस्लिम लीग के द्वारा सिंध प्रांत में सत्यार्थ प्रकाश पर प्रतिबंध की मांग के विरुद्ध २० फरवरी १९४४ में दिल्ली में आर्य महासम्मेलन की अध्यक्षता श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने है कि थी।

वीर सावरकर के लिए ‘आर्य समाज’ और ‘सत्यार्थ प्रकाश’ का क्या मूल्य था, ये उनके जीवन और लेखन को पढ भली भांति जाना जा सकता है। चाहे, जेल में अपने कारावास के काल में साथी कैदियों को सत्यार्थ प्रकाश को पढ़ाना हो, आर्य समाज के साथ मिलकर दलित उद्धार का कार्य करना हो या ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पर उंगली उठाने वालो को ‘कुरान’ भी प्रतिबंधित होने की चेतावनी देना हो… वह सदैव आर्य समाज के साथ खड़े दिखते है।

जनसंघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संस्थापक ‘बलराज मधोक’ तो आर्यसमाजी ही थे, उन्होनें खुलकर आर्यसमाजियों को जनसंघ, से जुड़ने और अपने बालकों को एबीवीपी से जुड़ने का आह्वान किया। देशभर के सभी आर्यसमाज, गुरुकुल, अनाथालय, सभायें जनसंघ को कांग्रेस के विकल्प के रूप में देखने लगे। 1966 में लाल बहादुर शास्त्री की हत्या के बाद 1967 के राष्ट्रीय चुनाव में 70 से अधिक सीटों पर जनसंघ जीता, जिसमें 85 प्रतिशत आर्यसमाजी सांसद थे। इससे जनसंघ में आर्यसमाजी विचारधारा का वर्चस्व हो गया।

इन चारों ही व्यक्तियों पर आर्य समाज के विचारो का गहरा प्रभाव था। किन्तु इतना सब कुछ होने पर भी इन चारों ही व्यक्तियों की मातृसंस्था होने का दावा करने वाली आरएसएस के सरसंघचालक पौराणिक गुरुजी ने आर्य समाज के वैदिक सिद्धांतो को छोड़ पश्चिम परस्त विवेकानंद को अपना आदर्श चुन लिया और जनसंघ में आर्यसमाजी विचारधारा का वर्चस्व होते हुये भी 1973 में अपनी वीटो पावर का प्रयोग करते हुये जनसंघ के संस्थापक, पोषक, महान आर्यसमाजी राजनेता बलराज मधोक को देश में मूर्तिपूजकों के बहुमत का बहाना करते हुये जनसंघ से मक्खी की तरह निकाल फैंका और आर्यसमाज को पाकिस्तान से आये धर्मनिष्ठ भाइयों से दूर करने के लिए अपने विश्वस्त आडवानीजी को चुना। इतना ही नहीं अपितु मृत्यु पर्यंत माननीय आर्य बलराज मधोक जी की उपेक्षा की गई, उन्हें गुमनाम मौत मरने दिया गया। वास्तव में मांसाहारी विवेकानन्द का चेला अपने व्यक्तिगत विचार बहुमत के नाम पर जनसंघ पर थोप चुका था! और आर्यसमाजी जीतकर भी हार चुके थे।

जैसा कि आप जानते ही हैं कि ईसाई समर्थक विवेकानंद ने वेद, धर्म, भारत और भारतीयता के लिए कुछ विशेष नहीं किया, और ना ही वह कभी भी भारतीय जन मानस के हृदय में कोई जगह बना सके थे, और ना ही वह इसके योग्य थे। केवल आरएसएस के झूठे प्रचार के चलते ही वेटीकन पोपजी के चेले विवेकानंद सनातन के आधुनिक प्रेणता बन गए हैं…. और बाकी कसर आस्था के अंधे पूरी कर ही देते हैं!

अब आर्यसमाजियों को चिंतन करना है कि जब तुम जनसंघ में 85% होते हुये भी बाहर फेंके जा सकते हो तो तुम्हारा इक्का-दुक्का पत्थरों पर माथा फोड़ने वाले संघी-आर्यसमाजी सांसद आरएसएस रूपी भाड़ को कैसे फोड़ेंगे?
वैदिक मान्यताओं को कैसे प्रतिस्थापित करेंगे?
संघी आर्यसमाजी भाई-बहनों से उत्तर की अपेक्षा है, ईश्वर को साक्षी मानते हुये बताना।
:- आर्य सुलेख सिंह सिवाहा

साभार

Comment:Cancel reply

Exit mobile version