दिग्विजयसिंह का भगवा आतंकवाद और सावरकर

कभी हिंदुत्व को ‘भगवा आतंकवाद’ के नाम से संबोधित करने वाले कांग्रेस के बड़े नेता दिग्विजय सिंह के मन-मस्तिष्क से अब ‘भगवा आतंकवाद’ का भूत उतरने लगा है। जमीन पर आ गए बहुत से कांग्रेसी नेताओं में से एक दिग्विजय सिंह अब यथार्थ के धरातल पर कुछ – कुछ समझने लगे हैं और अपनी गलतियों पर सीधे-सीधे नहीं परंतु अपरोक्ष रूप से कहीं ना कहीं पश्चाताप भी कर रहे हैं। अपनी इसी सोच का प्रदर्शन करते हुए अब उन्होंने कहा है कि ’’ मैं न हिन्दू विरोधी था, न हिन्दू विरोधी हूं और न हिन्दू विरोधी रहूँगा। मैं कट्टरपंथी विचारधारा के खिलाफ था, हूं और रहूंगा, क्योंकि ये सनातन धर्म एवं हिन्दू धर्म के विरोध में है।’’
दिग्विजय सिंह जैसे देश के इन तथाकथित गांधीवादियों की एक विशेषता होती है कि इनकी हर बात में दोगलापन होता है। अपनी मूर्खता और प्रायश्चित के भाव के साथ – साथ अभी भी कांग्रेस के ये महोदय कह रहे हैं कि – ‘मैं कट्टरपंथी विचारधारा के खिलाफ था, हूं और रहूंगा, क्योंकि यह सनातन धर्म एवं हिंदू धर्म के विरोध में है।’
  इस पर हमारा कहना है कि दिग्विजय सिंह जैसे नेता कट्टरपंथ के समर्थक रहे हैं,  हैं और आगे भी रहेंगे। दिग्विजय सिंह को समझना चाहिए कि देश में कट्टरपंथी विचारधारा यदि कोई है तो वह केवल उन लोगों की है जो इस्लाम की जिहादी परंपरा में विश्वास रखते हैं या देश को मुगलिस्तान बनाने की तैयारियों में हैं या देश में हिंदू – सिख दंगे करवाकर खालिस्तान का झंडा बुलंद करना जिनकी नीतियों का वर्तमान काल में प्रमुख एजेंडा है, या जो लव जिहाद, लैंड जिहाद जैसी समाज विरोधी गतिविधियों में कहीं ना कहीं लगे हुए दिखाई देते हैं। यहां पर हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यदि अभी पिछले दिनों 5 जनवरी को देश के प्रधानमंत्री के साथ पंजाब में जिस प्रकार उनकी सुरक्षा में चूक कराई गई उसके परिणाम स्वरूप यदि वहां पर प्रधानमंत्री मोदी की हत्या हो गई होती तो इसके पीछे का ‘सच’ जानकर लोगों के होश उड़ जाएंगे। इस संबंध में जानकारों का मत है कि यदि प्रधानमंत्री मोदी की उस दिन हत्या हो गई होती तो सारे देश में हिंदू सिख दंगे तेजी से भड़काये जाते। हिंदुओं के विरुद्ध सिखों को समर्थन देने के लिए तब मुसलमान उनके साथ होता।
उस दंगे में सबसे अधिक क्षति हिंदुओं को होती और हिंदुओं से भी अधिक क्षति अपने देश की होती । इस सारे खेल को समझ कर भी जो लोग इस खेल की तैयारी कर रहे थे , उसमें कांग्रेस और उसके नेताओं का ही सबसे अधिक नाम उभरकर सामने आ रहा है। यदि कांग्रेस गांधीवाद और तथाकथित अहिंसावादी नीतियों की पालक है और उसमें तनिक भी उसके प्रति श्रद्धा है तो अपनी सत्ता प्राप्ति के लिए इतना घृणास्पद खेल खेलने की तैयारी यदि कांग्रेस कर सकती है तो इससे बड़ा कट्टरपंथी अर्थात खून खराबे में विश्वास रखने वाला संगठन और कौन सा हो सकता है ? क्या दिग्विजय सिंह इस बात का कोई जवाब देंगे ?       देश के भीतर जो लोग इस समय देश जलाने वाली शक्तियों से सामूहिक या अकेले लड़ रहे हैं और इनका उचित प्रतिकार कर रहे हैं उनके भीतर देशभक्ति का भाव तो हो सकता है, अन्य किसी प्रकार का कट्टरपंथ नहीं हो सकता। कांग्रेस के नेताओं का दुर्भाग्य ही यह है कि इन्हें देश तोड़ने वाली गतिविधियों में संलिप्त लोग भी देशभक्त दिखाई देते हैं और जो इन गद्दारों से लड़ने का मनोबल और साहस रखते हैं वे इन्हें कट्टरपंथी दिखाई देते हैं।
      यति नरसिंहानंद जैसे हिंदू संत आज गद्दारों की गद्दारियों को जिस बेबाकी के साथ जनता के सामने ला रहे हैं उनके समर्थन में दिग्विजयसिंह जैसे लोगों के पास एक शब्द ना तो था, ना है और ना कभी रहेगा। हां, यह जिहादी परंपरा में विश्वास रखने वाले लोगों के समर्थन में अपनी आवाज अवश्य उठा सकते हैं।
इसलिए दिग्विजय सिंह जैसे लोगों से अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह कट्टरपंथी विचारधारा के विरोध में जा सकते हैं। वे देशभक्तों की वीरता, शौर्य, साहस और देशभक्ति से भरी हुई परंपरा का गांधीवाद के नाम पर विरोध कर सकते हैं, परंतु इस्लाम के नाम पर लव-जिहाद फैलाने वाले या सामूहिक नरसंहार की कोशिश करने वाले लोगों के विरुद्ध इनकी जमीर कभी भी हुंकार नहीं भर सकती। यह गांधीवादी अहिंसा की नपुंसकता से जन्मे लोग हैं, जिनसे किसी भी दृष्टिकोण से देशभक्ति की अपेक्षा नहीं की जा सकती।
      यह वही लोग हैं जो जिनके गुरु अर्थात महात्मा गांधी ने जौहर अली द्वारा अफगानिस्तान के तत्कालीन शासक अमानुल्लाह खान को भेजे गए उस पत्र का समर्थन किया था जिसमें अमानुल्लाह खान से भारत पर आक्रमण करने का अनुरोध किया गया था। तब इन्हीं दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेसियों के नेता गांधी इस विचारधारा के थे कि यदि मुसलमानों का राज्य भारत पर फिर से स्थापित होता है तो वह इसे विदेशी शासन नहीं मानेंगे, क्योंकि मुगलों ने हिंदुस्तान पर हिंदुस्तानी होकर शासन किया है। कहने का अभिप्राय है कि जिनके गुरु को ही इस्लामिक परंपरा की जिहादी विचारधारा में कोई दोष नहीं दिखाई देता था और जिनका गुरु ही मुसलमान शासकों द्वारा किए गए अत्याचारों को क्षमा करने के लिए सदा तैयार रहा हो उन्हें कट्टरपंथ कट्टरपंथ दिखाई नहीं दे सकता। वास्तव में ये लोग वर्तमान काल के दुर्योधन हैं, जिन्हें सूखे के स्थान पर गीला और गीले के स्थान पर सूखा दिखाई देता है। निश्चय ही ऐसी मानसिकता किसी ‘महाभारत’ की ओर संकेत करती है।
    कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजयसिंह अब यह भी कह रहे हैं कि उन्होंने कभी हिन्दू या भगवा आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि संघीय अर्थात आरएसएस का आतंकवाद कहा है। दिग्विजय सिंह ने कहा कि हिंदुत्व शब्द कहीं नहीं है। चाहे वेद हो, उपनिषद हो या पुराण। यह शब्द सावरकरजी ने राजनीतिक पहचान को ध्यान में रखकर गढ़ा था। उन्होंने स्वयं अपनी पुस्तक में लिखा है कि हिंदू धर्म का हिंदुत्व से कोई लेना देना नहीं है, लेकिन  हमने हिंदुत्व को एक धर्म के रूप में मानना आरम्भ कर दिया है। यद्यपि यह सनातन धर्म, परंपराओं और हिंदू धर्म के विरुद्ध है।
हम इस संदर्भ में हैं कांग्रेस के नेता को यह बताना चाहेंगे कि बहुत से शब्द ऐसे होते हैं जो मूल रूप में कहीं नहीं होते परंतु वह गढ़ लिए जाते हैं। कांग्रेस ने भी गांधीवाद जैसे शब्द का कहीं अस्तित्व ना होने के उपरांत भी उसे गढ़ लिया है । इतना ही नहीं नेहरूवाद को भी कांग्रेस ने हम पर थोपने का प्रयास किया है जिसका कोई जड़ – फलक कहीं हाथ नहीं आता।
        यद्यपि हिंदुत्व जैसा शब्द सचमुच भारत के प्राचीन आर्षग्रंथों में कहीं देखने को नहीं मिलता, परंतु इसके उपरांत भी भारत का वह प्राण तत्व जो भारत की मौलिक चेतना के साथ एकाकार है और जो भारत को हर स्थिति में भारत बनाए रखने में सक्षम रहा है, जिसने हर युग में भारत और भारतवासियों के भीतर एकता का संचार किया है और मानवता का उद्धार करने के लिए भारत और भारतवासियों को प्रेरित किया है , वही प्राण तत्व देश – काल – परिस्थिति के अनुसार कभी हमारा मौलिक धर्म था, कभी हमारा राष्ट्र धर्म था, कभी हमारा राज धर्म था तो कभी हमारा आर्यत्व था और आज वही हिंदुत्व है। गांधीवाद जैसी जंग लगी हुई वह मानसिकता कभी इस भारत के प्राण तत्व के साथ एकाकार होकर नहीं रही जिसमें यह सिखाया जाता है कि यदि आपकी बहन बेटियों का शीलभंग हो रहा हो या उन्हें अपमानित किया जा रहा हो तो तुम आंख में मूंदकर चुप बैठे रहो या तुम्हारे देश को तोड़ने वाली  शक्तियां सड़कों पर उतर कर ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’- जैसा नंगा नाच कर रही हों और तुम शांत रहो या भारत को ‘डायन’ कहने वाले लोग जब सड़कों पर खुले घूम रहे हों तुम शांत रहो।
      गांधी के नाम पर चलाए गए इस भ्रमात्मक गांधीवाद के विरोध का नाम सावरकर है। जिन्होंने प्रत्येक प्रकार की नपुंसकता अथवा हीजड़ेपन को नकारकर भारत के प्राण तत्व हिंदुत्व को जागृत किया और देश के युवाओं के भीतर एक ऐसे उत्साह का संचार किया जो उन्हें विदेशियों को भगाने के लिए मैदान में उतारने की क्षमता रखता था। इस प्रकार सावरकर इस देश की हुंकार का नाम है। जिसे दिग्विजय सिंह जैसे स्वार्थी राजनेता कभी समझ नहीं सकेंगे।
   वास्तव में कांग्रेस और कांग्रेस के कई नेता इस समय अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं । ये भली प्रकार जानते हैं कि इन्हें उत्तर प्रदेश में आसन्न विधानसभा चुनाव में भी जनता घास नहीं डालेगी। ऐसे में इनके भीतर का दर्द बार-बार छलकता है । इनकी अंतरात्मा इन्हें इस समय धिक्कार रही है कि तुमने देश के साथ बहुत बड़ा अपराध किया है। नई नई परिभाषाएं गढ़कर और देश के बहुसंख्यक समाज का मूर्ख बनाकर जो पाप तुम लोगों ने किया है उसके लिए इतिहास तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा । यही कारण है कि दिग्विजय सिंह जैसे ‘पापी’ लोग रह रहकर प्रायश्चित की भाषा बोलते हुए दिखाई दे रहे हैं ।
    अगले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के कई चेहरे जैसे डायनासोर धरती से लुप्त हो गया वैसे ही सदा सदा के लिए विलुप्त हो जाएंगे। जिन्हें अभी से डर लगने लगा है। बहुत संभव है कि उनमें से दिग्विजय सिंह भी एक हों। रानी लक्ष्मी बाई की समाधि पर जाकर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सिर झुकाकर देश से अपने पूर्वजों की गलतियों की क्षमा याचना कर ली है। अच्छा हो कि दिग्विजय सिंह भी अपने ‘बड़ों की’ गलतियों का प्रायश्चित कांग्रेस की ओर से कर लें। हिंदुत्व सचमुच बहुत उदार मन लोगों का प्राण संचालक तत्व है। यदि दिग्विजयसिंह सच्चे हृदय से क्षमा याचना करेंगे तो हिंदुत्व क्षमा कर सकता है। हिंदुत्व की बेतुकी परिभाषाओं के करने से मामला और उलझ जाएगा। सुलझेगा नहीं । इसलिए दिग्विजयसिंह मामले को उलझाएं नहीं, बल्कि सुलझाने की दिशा में सच्चे मन से बात करें।
…… तो कोई बात बने।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक :  उगता भारत

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