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संपादकीय

मुल्तानी की गिरफ्तारी और भारत की विदेश नीति

जब प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में पहली बार देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी तो उस समय उनके विरोधी और विशेष रूप से कांग्रेस के नेता यह कहते नहीं थक रहे थे कि उन्हें ना तो देश चलाने का ज्ञान है और ना ही देश की विदेश नीति का कुछ ज्ञान है। उनका यह भी कहना था कि प्रधानमंत्री मोदी को विदेशों में कोई नहीं जानता, इसलिए विदेशों में भारत अब कमजोर पड़ जाएगा।

उस समय कांग्रेस कुछ इस प्रकार प्रदर्शित कर रही थी कि जैसे देश चलाने का और विदेश नीति को गहराई से समझने का ज्ञान केवल उसी के पास है। उस समय कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को यह तनिक भी आभास नहीं था कि जिस मोदी की शक्ति, सामर्थ्य और योग्यता पर वह आज प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं वह विदेश नीति के क्षेत्र में भी अपना बेहतर प्रदर्शन करने में सफल होंगे। बाद में जब प्रधानमंत्री मोदी का विदेश यात्राओं का दौर आरंभ हुआ और दुनिया की प्रत्येक बड़ी शक्ति ने भी उनका भव्यता के साथ स्वागत किया तो कांग्रेस को पता चल गया कि मोदी की स्वीकार्यता विश्व स्तर पर भी कितनी व्यापक है ?

हम सब को यह भली प्रकार पता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता संभालते ही अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के साथ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भी आमंत्रित किया था। कूटनीति और विदेश नीति की समझ रखने वाले लोगों ने उसी समय समझ लिया था कि प्रधानमंत्री मोदी कूटनीति के भी कुशल खिलाड़ी हैं।

जिस समय प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता संभाली थी उस समय निसंदेह आतंकवाद भारतवर्ष के लिए सबसे बड़ी समस्या था। परंतु उस समय का नेतृत्व आतंकवाद को अपनी नियति समझ कर उसे झेलता जा रहा था। भारत उस समय आतंकवाद के विरुद्ध आक्रामक न होकर बचाव की मुद्रा में था। जिसे किसी भी जीवन्त राष्ट्र की जीवन्तता के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता। अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए निसंदेह कुछ ठोस और कारगर करना ही पड़ता है। जिसे करने के लिए उस समय भारत की आत्मा तो बेचैन थी, पर नेतृत्व असहाय और मौन था । तत्कालीन भारतीय नेतृत्व भारत की अंतरात्मा की पुकार को अर्थात भारत की जनता की ‘सामान्य इच्छा’ कुछ समझ नहीं पा रहा था। उसके कुछ ठोस और कारगर करता हुआ दिखने की तो बात छोड़िए वह ऐसा कुछ करने के लिए सोचता हुआ भी दिखाई नहीं दे रहा था। जिससे पाकिस्तान जैसा अदना सा देश भी भारत को आंख दिखाने की स्थिति में आता जा रहा था। वह अपने आपको इस्लामिक जगत का नेता मानने लगा था और  भारत के विरुद्ध इस्लामिक देश भी उसकी पीठ थपथपाने में किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ रहे थे।

उस समय वैश्विक परिवेश भी आतंकवाद से बुरी तरह प्रभावित था। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुई 9 /11 की घटना को लोग भुला नहीं पा रहे थे। विश्व के अधिकांश देशों और लोगों की यह मानसिकता बन चुकी थी कि जब अमेरिका जैसे देश पर इतना बड़ा आतंकी हमला हो सकता है तो वह कहां सुरक्षित हैं ? विश्व जनमानस की इस प्रकार की मानसिकता का आतंकी संगठनों की मानसिकता पर अनुकूल प्रभाव पड़ता जा रहा था। जिससे उनका मनोबल दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। इस प्रकार विश्व आतंकवाद की आंधी से उस समय पीड़ित था।

हममें से अधिकांश लोग यह जानते हैं कि अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर भयावह आतंकी हमले में 3000 लोगों की जान चली गई थी। अमेरिका ने यद्यपि उस हमले के मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन को मारकर यह दिखाने का प्रयास किया कि वह आतंकवाद के सामने झुकने वाला नहीं है, परंतु इसके उपरांत भी लोगों को आतंकवाद का भय सताए जा रहा था। उस समय भारत के शहरों में आए दिन कहीं ना कहीं आतंकी घटनाएं होती रहती थीं। बम धमाकों को सुनना और उसके बाद भयभीत होकर घरों में छुप जाना लोगों की प्रवृत्ति बन गई थी।

प्रधानमंत्री मोदी के लिए उस समय बड़ी विषम परिस्थितियां थीं। उन्होंने सत्ता संभाली और धीरे-धीरे बड़े सुनियोजित ढंग से एक एक समस्या का समाधान करने की दिशा में काम करना आरंभ किया। सबसे पहले देश के दुश्मनों के विरुद्ध देश की सेना के हाथ खोले गए, जिन्हें कांग्रेस की सरकार ने बांधकर रखा हुआ था। सुरक्षा एजेंसियों को आधुनिकतम सुविधाएं प्रदान कर चौकस किया गया। भीतरी शांति व्यवस्था बनाए रखने वाले सुरक्षा संगठनों को भी मजबूत किया गया और उन्हें भी आतंकवादियों से लड़ने के लिए न केवल नए ढंग से प्रशिक्षण दिया गया बल्कि नई शक्तियों से सुसज्जित भी किया गया।

इस प्रकार एक नया आत्मविश्वास, नया परिवेश और नया परिदृश्य उभर कर सामने आया। जिसने पूर्ण मनोबल के साथ सामूहिक शक्ति के साथ आतंकवाद से लड़ना आरंभ किया।
देश की कांग्रेसी सरकारें उस समय अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद और पाकिस्तान के विरुद्ध बोलने से बचती थीं। परंतु मोदी जी ने परिदृश्य बदल दिया। उन्होंने ,उनकी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने और इस काम के लिए नियुक्त हमारे राजनयिकों ने समय-समय पर हर मंच पर पाकिस्तान और आतंकवाद के विरुद्ध खुल कर बोलना आरंभ किया। इस प्रकार प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में आतंकवाद का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की दिशा में एक ठोस पहल की गई। भारत अंगड़ाई लेने लगा तो आतंकवाद से पीड़ित अन्य देश भी अंगड़ाई लेते हुए दिखाई देने लगे। नया जोश, नई ऊर्जा और नई शक्ति का संचार भारत सहित विश्व के अनेकों देशों में होता हुआ दिखाई देने लगा। जिससे भारत के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के विरुद्ध एक नई शक्ति उभरती हुई दिखाई दी। निसंदेह आज उस शक्ति का नेतृत्व भारत कर रहा है। भारत ने सफलतापूर्वक अंतरराष्ट्रीय बिरादरी का ध्यान आतंकवाद के गढ़ पाकिस्तान की ओर खींचा और सारी दुनिया को यह समझाने में सफल रहा कि आतंकवाद की रीढ़ यदि तोड़नी है तो पाकिस्तान को नियंत्रित करना आवश्यक है। दिखाने के लिए चाहे जैसी भी नीति – रणनीति और  विदेश नीति भारत ने पाकिस्तान के प्रति अपनायी हो, परंतु कांग्रेसी जमाने में भारत जिस बड़े भाई की भूमिका को ध्यान में रखकर पाकिस्तान के प्रति अपनी नीति निर्धारित करता था अब उसमें परिवर्तन आ गया।

भारत ने स्पष्ट कर दिया कि यदि छोटा भाई अपनी मर्यादा में नहीं रहेगा तो यह बड़े के लिए आवश्यक नहीं है कि वह अनंत काल तक अपनी भूमिका को संतुलित और मर्यादित बनाए रखे। भारत में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह स्पष्ट किया कि 1947 में कश्मीर के कबायलियों के भेष में पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ , 1965, 1971 और 1999 (कारगिल के युद्ध ) भारत-पाक युद्ध के समय पाकिस्तान की भूमिका छोटे भाई या एक अच्छे पड़ोसी की नहीं रही बल्कि उसने पहले दिन से आतंकवाद को प्रश्रय और प्रोत्साहन देना आरंभ किया है। जिसे भारत अब और देर तक सहन नहीं करेगा।
भारत के नए जोश और नई ऊर्जा को देखकर विश्व बिरादरी ने भारत की बात को गंभीरता से सुनना आरंभ किया। धीरे-धीरे आज वह स्थिति बन गई है जब संसार का प्रत्येक देश भारत की बात को सुनने में रुचि दिखाता है और भारत के विरुद्ध कुछ भी करने से पहले बहुत कुछ सोचता है।

वास्तव में मोदी जी की विदेश नीति में चाणक्य नीति के सूत्र के स्पष्ट दिखाई देते हैं। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को अपने पक्ष में लेने के लिए पाकिस्तान की अचानक यात्रा की। उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से स्पष्ट शब्दों में पूछा कि वह वार्ता की मेज पर आकर समस्या का समाधान चाहते हैं या देर तक छद्म युद्ध के माध्यम से भारतीय उपमहाद्वीप की शांति को भंग किये रहने के रास्ते पर चलते रहना चाहते हैं। इससे चाहे देश के विपक्ष ने प्रधानमंत्री मोदी की जितनी भी आलोचना की हो, पर अंतरराष्ट्रीय जगत में उनकी कूटनीति सफल रही। चाणक्य ने कहा है कि शत्रु को कूटनीतिक स्तर पर पराजित करने के लिए पहले उसके प्रति ‘साम’ की नीति अपनानी चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ने इसी नीति को अपनाकर सफलता प्राप्त की जब समय आया तो पाकिस्तान में भीतर घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक करवाकर भी उसे यह संदेश दिया कि भारत दंड की नीति पर भी काम कर सकता है।
इस प्रकार की मजबूत विदेश नीति के चलते भारत कदम दर कदम आगे बढ़ता गया। विश्व नेतृत्व भी जाने अनजाने भारत की नीतियों का समर्थन करने की स्थिति में आता चला गया। भारत की इसी पराक्रमी विदेश नीति के चलते अब लुधियाना कोर्ट ब्लास्ट का आरोपी जसविंदर सिंह मुल्तानी जर्मनी में गिरफ्तार किया जा सका है। इसे भी मोदी सरकार की सफल विदेश नीति का ही परिणाम माना जाएगा ।क्योंकि मोदी सरकार के दबाव के चलते ही मुल्तानी की गिरफ्तारी जर्मनी में संभव हो पायी है।

हम सभी यह जानते हैं कि मुल्तानी सिख फॉर जस्टिस से जुड़ा है। भारत के भीतर तोड़फोड़ और आतंकवाद की गतिविधियों को बढ़ावा देने में पाकिस्तान का पहले दिन से ही हाथ रहा है। यही कारण है कि सिक्ख फ़ॉर जस्टिस जैसे आतंकवादी और अलगाववादी संगठन को भी पाकिस्तान का खुला समर्थन प्राप्त है। निसंदेह जसविंदर सिंह को भी आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त रहने के लिए पाकिस्तान का प्रश्रय और प्रोत्साहन प्राप्त होता रहा है। ऐसे में अब जब जर्मनी से जसविंदर सिंह की गिरफ्तारी हो गई है तो इससे पाकिस्तान का मनोबल टूटना स्वाभाविक है। अभी कुछ समय पहले अपने देश में इस्लामिक देशों का सम्मेलन आहूत कर भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ाने की कोशिश करने वाले पाकिस्तान को जसविंदर सिंह की गिरफ्तारी से निश्चय ही झटका लगा है।
यदि भारत सरकार की ओर से बनाए गए दबाव के चलते जसविंदर सिंह मुल्तानी की गिरफ्तारी संभव हो सकी है तो इसका एक ही कारण है कि भारत इस समय बचाव की नीति न अपनाते हुए आक्रामक नीति अपनाता वह दिखाई दे रहा है। उसके लिए राष्ट्रहित सबसे पहले हैं और बनावटी उदारता या अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की नीति की वाहवाही करवाकर अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता करने की नेहरू वादी विदेश नीति की आत्मघाती प्रवृत्ति अब भारत की विदेश नीति से लुप्त होती हुई दिखाई दे रही है।

इस विषय में सरकार की ओर से राजनयिक चैनलों के माध्यम से जर्मन पुलिस को कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी प्रदान कराई गयी। साथ ही यह भी बताने की कोशिश हुई कि यदि पाकिस्तान के इशारे पर सिख फॉर जस्टिस आतंकवादियों की ओर से मुंबई या दिल्ली को निशाना बनाया जाता है तो यह जिम्मेदारी बर्लिन की होगी। वास्तव में भारत के कूटनीतिक प्रयासों में दिखाई गई इस तल्खी का जर्मन सरकार के पास कोई जवाब नहीं था। भारतीय उपमहाद्वीप और अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए खतरों को बहुत ही स्पष्टता के साथ जर्मन सरकार के सामने हमारे अधिकारियों ने स्पष्ट किया। उसे बताया कि यदि इस प्रकरण में किसी भी प्रकार की शिथिलता अपनाई गई तो उसके घातक परिणाम न केवल भारतीय उपमहाद्वीप के लिये बल्कि विश्व शांति के लिए भी देखने को मिलेंगे। भारतीय अधिकारियों की क्रिसमस की छुट्टियों को निरस्त कर उन्हें वापस बुलाया गया और भारतीय दूतावास के अधिकारियों ने जर्मन अधिकारियों के साथ इस विषय में जमकर वार्तालाप किया। जिससे वह भारत को समझने में सफल रहे।

विश्वस्त सूत्रों से ऐसी स्थिति भी स्पष्ट होती जा रही थी कि मुल्तानी मुंबई में विस्फोटक भेजने में सक्षम था और अपने उद्देश्य में सफल होने के लिए उसने एक टीम को तैयार भी किया था। ऐसी परिस्थितियों में यदि सिख फॉर जस्टिस के इस आतंकवादी को जर्मन पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया है तो यह भारत की विदेश नीति के सचमुच एक बड़ी उपलब्धि है। इस आतंकवादी से वर्तमान में जर्मन पुलिस पूछताछ कर रही है। जर्मन अधिकारियों की ओर से इस विषय में जो कुछ भी किया गया है उसकी जितनी सराहना की जाए उतनी कम है। क्योंकि इस प्रकार के कठोर कदम उठाने से निश्चय ही जर्मनी और भारत के संबंध और मजबूत होंगे। इतना ही नहीं ये दोनों देश मिलकर विश्व राजनीति की दिशा मोड़ने में भी सक्षम हैं। यदि उनके कदम इसी प्रकार मिलकर आगे बढ़ते रहे तो निश्चय ही विश्व राजनीति में भी हमें कई परिवर्तन होते हुए दिखाई देंगे। हमें यह उम्मीद करनी चाहिए कि जर्मन सरकार का अनुकरण करते हुए कनाडा और ब्रिटेन भी भारत के पक्ष को समझ कर वैश्विक परिदृश्य से आतंकवाद को मिटाने के लिए भारत के अलगाववादी और आतंकवादियों को किसी प्रकार का संरक्षण और प्रोत्साहन ना देने का संकल्प व्यक्त करेंगे।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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