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भारत के लचीले स्‍वभाव का फायदा दुष्‍टजन उठाने लगे हैं

तनवीर जाफ़री

धर्म,विश्वास तथा आस्था के विषय पर भारतीय समाज की सहिष्णुता व लचीलापन सर्वविदित है। और भारतवासियों के सर्वधर्म स्वीकार्यता के इसी मिज़ाज ने न सिर्फ़  भारत को विश्वस्तीय ख्याति दिलाई है बल्कि पूरी दुनिया से विभिन्न धर्मों,आस्थाओं तथा विश्वासों के मानने वाले लोग यहां आकर अपना प्रभाव बनाते देखे गए हैं। भारतवर्ष विश्व का अकेला ऐसा देश है जो अनेकता में एकता(Unity in diversity) के लिए जगप्रसिद्ध है। परंतु अफ़सोस की बात तो यह है कि भारतीय समाज के इस लचीले स्वभाव का लाभ भारत के तमाम पाखंडी,धनलोभी,अय्याश तथा दुराचारी प्रवृति के चतुर बुद्धि लोग उठाने लगे हैं। जिधर देखो उधर इस प्रकार के लोग अपनी अलग ‘ढाई ईंट की मस्जिद’ बनाए बैठे हैं। स्वयं को भगवान या ईश्वर बताना या ईश्वर का स्वयंभू अवतार बनना तो गोया भारत में मज़ाक सा बन गया है। जबसे हमारे देश में निजी टीवी चैनल्स की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है तथा 24 घंटे का प्रसारण शुरु हुआ है तबसे जहां इन पाखंडी बाबाओं को अपने धन-बल के माध्यम से स्वयं को टीवी पर प्रचारित करने का आसानी से मौक़ा मिला है वहीं यही टीवी चैनल्स इनके पाखंडों को उजागर कर इनकी वास्तविकता को जनता तक पहुंचाने का काम भी बखूबी अंजाम दे रहे हैं।

कभी कोई बाबा स्वयं को ब्रह्मचारी बताने के बावजूद महिलाओं के साथ रंगरलियां मनाता देखा जा रहा है तो कोई भगवा वस्त्रधारी बहुरूपिया बनकर बाकायदा अंतर्राष्ट्रीय स्तर का सेक्स रैकेट चलाता नज़र आ रहा है। कोई प्रवचन कर्ता स्वयं तीन-चार पत्नियां रखकर अपने भक्तों को पत्नी धर्म निभाने की सीख दे रहा है तो कोई पाखंडी तथाकथित अध्यात्मवादी अपनी धन-दौलत व संपत्ति के साम्राज्य का विस्तार करते हुए अपने भक्तों को मोहमाया त्यागने की सीख दे रहा है। कोई ढोंगी बाबा हत्या के केस में शामिल देखा जा रहा है तो कहीं अयोध्या जैसी पवित्र नगरी में गद्दी हड़पने की खातिर चेलों द्वारा अपने ही गुरुओं की हत्याएं की जा रही है। क्या इसी प्रकार के धर्म,अध्यात्म तथा विश्वास के चलते भारत को किसी ज़माने में विश्वगुरु कहा जाता था? क्या ऐसी ही प्रवृति के लोगों की वजह से भारतवर्ष दुनिया के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र था? सवाल यह है कि आज हमारे देश के लोगों को ऐसी स्थिति का सामना क्यों करना पड़ रहा है तथा ऐसे पाखंडीे लोगों से निजात पाने के तरीके आिखर क्या हो सकते है?

सर्वप्रथम तो हमें यह मान लेना चाहिए कि आज के पाखंडी धर्मगुरु तथा स्वयंभू ढोंगी बाबा आज के नेताओं की ज़रूरत बन चुके हैं। ऐसे ढोंगी,दुराचारी,हत्यारे व अय्याश बाबा सीधे व सादे लोगों को अपने मीठे-मीठे बोल वचनों में फंसाकर अपना जनाधार बढ़ाते हैं। ज़ाहिर है नेताओं को ऐसे लोगों की ज़रूरत होती है जिनके पास अपना जनाधार हो। चाहे वह बंदूक के बल पर हो,चाहे धर्म-जाति की राजनीति करने वालों के माध्यम से हो या फिर तथाकथित बाबाओं के ढोंगपूर्ण प्रवचनों के द्वारा अर्जित किया गया हो। प्राय:यह देखा जाता है कि ऐसे बाबाओं के द्वार पर उनके भक्तों के समक्ष राजनेता पहुंच कर जहां ढोंगी तथाकथित गुरुओं का मान-सम्मान उनके अंधभक्तों की नज़रों में बढ़ाते हैं वहीं नेताओं को भी इस उपकार के बदले में बाबाओं द्वारा अपने भक्तों का समर्थन खासतौर पर चुनावों के दौरान समर्थन दिए जाने का काम किया जाता है। और धर्म व राजनीति का यही खतरनाक गठजोड़ न केवल देश की राजनीति को चौपट किए जा रहा है बल्कि धर्म व अध्यातम जैसे पवित्र,गंभीर तथा संवेदनशील विषय को भी कलंकित कर रहा है। इस प्रकार के ठग,दुराचारी,अपराधी व धनलोभी प्रवृति के राजनैतिक संरक्षण प्राप्त ढोंगी बाबा समय-समय पर न कवेल शासन-प्रशासन को ठेंगा दिखाने लगते हैं बल्कि कभी-कभी तो इन्हें अपने अंधभक्तों के समर्थन व राजनेताओं की सरपरस्ती के चलते कानून को भी ठेंगा दिखाने में कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं होती। कई बार ऐसी स्थिति देखी जा चुकी है जबकि किसी बाबा का नाम किसी अपराध में शामिल हुआ हो और उसने अपने समर्थकों के बूते पर कानून से टकराने का दुस्साहस किया है। गोया भारतीय क़ानून केवल कमज़ोर,असहाय,ग़रीब लोगों के लिए ही रह गया हो और यह स्वयंभू अवतार रूपी अनपढ़ बाबा क़ानून से अपने को ऊपर समझने लगे हों।

पिछले दिनों एक बार ऐसे ही दृश्य की पुनरावृति हरियाणा के हिसार जि़ले के बरवाला कस्बा स्थित सतलोक आश्रम में देखने को मिली। हत्या के मामले में वांछित इस आश्रम का प्रमुख रामपाल नामक व्यक्ति कई महीनों से कानून को ठेंगा दिखाता आ रहा था। वह अदालत में पेश होने से आनाकानी कर रहा था। और जब अदालत ने उसके विरुद्ध गैर ज़मानती गिरफ्तारी वारंट जारी किया तो वह अपने समर्थकों के बल पर गिरफ़तारी से बचने की कोशिश करने लगा। परंतु सरकार व क़ानून से बच पाना भी इतना आसान नहीं होता।आख़िरकार उसे गिरफ़्तार  किया गया। परंतु प्रशासन व रामपाल के समर्थकों की रस्साकशी के बीच पांच लोगों की जानें चली गईं तथा सैकड़ों लोग घायल अवस्था में अस्पताल में दािखल किए गए। रामपाल अपने-आप को केवल कबीरपंथी संत ही नहीं कहता बल्कि वह स्वयं को कबीर के बाद ईश्वर का दूसरा अवतार भी बताता है। संत कबीर के अंधविश्वास विरोधी विचारों का प्रचार-प्रसार करने से अथवा संत कबीर की महानता का बयान करने से आिखर किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? स्वयं भगवान राम का अवतार समझे जाने वाले प्रथम जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी रामानंदाचार्य ने ही कबीर को अपना शिष्य स्वीकार किया था और उसी के बाद कबीर, संत कबीर कहलाए। परंतु कबीर के मिशन को चलाने का अर्थ यह कतई नहीं कि आप भगवान कृष्ण,भगवान राम अथवा स्वामी दयानंद या स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों का निरादर व अपमान करने लग जाएं और उनकी शान में गुस्तािखयां करने लगें। स्वयंभू संत रामपाल यही किया करता था। इसी वजह से उसके सबसे अधिक विरोधी उसी के अपने कस्बे यानी बरवाला क्षेत्र में खासतौर पर सतलोक आश्रम के आसपास के ही थे। कुछ समय पूर्व इसके विरुद्ध आर्यसमाजी विचारधारा के लोग रामपाल की ऐसी ही बकवासबाजि़यों से क्रोधित होकर इसके आश्रम को बंद करने की मांग करने लगे थे। उस समय पुलिस ने इसके आश्रम में जब छापेमारी की तो गुफानुमा इसके अपने गुप्त स्थान से ब्लूफ़िल्में ,महिलाओं के अंडर गारमेंटस तथा अन्य आपत्तिजनक सामग्री बरामद हुई थी।

रामपाल अपने अंधभक्तों ख़ासतौर पर अशिक्षित भक्तों को शब्दजाल में फंसाने का बहुत माहिर था। कुछ माह पूर्व इसने कुछ टीवी चैनल्स को पैसे देकर एक स्वयंभू इस्लामी स्कॉलर ज़ाकिर नाईक को टीवी पर बहस करने की चुनौती देने का ज़बरदस्त प्रचार कराया। इत्तेफाक से मैं भी उस टीवी प्रचार के झांसे में आ गया तथा अपना एक घंटे का समय बरबाद कर रामपाल बनाम ज़ाकिर नाईक की होने वाली संभावित बहस देखने हेतु टी वी के सामने बैठा रहा। जब निर्धारित समय पर कार्यक्रम शुरु हुआ तो ज़ािकर नाईक का तो टीवी पर कोई नाम-ो-निशान ही नहीं था। जबकि रामपाल अकेला ही ज़ाकिर नाईक को चुनौती देता हुआ अपना पक्ष रखे जा रहा था। बड़ी ही चतुराई के साथ उसने कुरान शरीफ की कुछ ऐसी आयतों का चुनाव किया जिसमें अरबी के ‘कबीर’ शब्द का उल्लेख किया गया है। गौरतलब है कि कबीर तथा अकबर शब्द अरबी भाषा के शब्द हैं जिनका अर्थ बड़ा या महान होता है। जैसे अल्लाह-ो-अकबर यानी अल्लाह सबसे बड़ा है। और दूसरा उदाहरण जैसे गुनाहे कबीरा यानी बड़ा पाप। इसी प्रकार कुरान शरीफ में ‘असगर’ व ‘सगीर’ शब्दों का भी उल्लेख है जिसका अर्थ कबीर या अकबर के विपरीत यानी ‘छोटा’ होता है। मुझे रामपाल की इन बातों पर बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह कबीर शब्द को उसके अर्थ के रूप में नहीं बल्कि यह कहकर लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहा था कि यह संत कबीर का जि़क्र है जो क़ुरान शरीफ़ में किया गया है। और एक दो नहीं बल्कि कई बार उसने कबीर के शाब्दिक अर्थ को गलत ढंग से परिभाषित करने की कोशिश की। मुझे उस दिन और भी विश्वास हो गया कि रामपाल केवल ढोंगी ही नहीं बल्कि ऐसा चतुर अज्ञानी व्यक्ति भी है जो शब्दों की बाज़ीगरी के द्वारा अपने शरीफ़ व भोले-भाले भक्तों को अपने अज्ञान के जाल में फंसाए रखने की महारत रखता है।

सतलोक आश्रम की घटना एक बार फिर शरीफ,सज्जन व भोले-भाले धर्मभीरू लोगों के लिए यह सबक़ पेश करती है कि वे ऐसे नए-नवेले आश्रमों,उनके गद्दीनशीन ढोंगी धर्मगुरुओं तथा अपराधी व धनलोभी व पाखंडी बाबाओं से स्वयं को दूर रखें तथा इनके बहकावे में आकर इनके मुरीद अथवा भक्त बनने व इनके कहने पर किसी प्रकार के राजनैतिक निर्णय लेने से बाज़ आएं। क्योंकि धर्म व राजनीति का मिश्रण देश व समाज को बरबादी की राह पर ले जा सकता है।

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