मोदी जी! संगीन हकीकत है दुनिया

modi-shriपाकिस्तान लखवी की आवाज के नमूने देने से मुकर गया है। इससे पूर्व पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने उफा में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ हुई अपनी भेंट में यह स्वीकार किया था कि दोनों देशों के बेहतर संबंधों और उपमहाद्वीप की जनता के बेहतर भविष्य के दृष्टिगत वह लखवी की आवाज के नमूने भारत को दे देंगे। शरीफ ‘शरीफ’ हो सकते हैं पर उनके पीछे खड़ा पाकिस्तान का कठमुल्लावाद और सत्ता को बार-बार लोकतांत्रिक शक्तियों से छीनकर अपनी हविश का शिकार बनाने वाली सेना उनसे ऐसा कुछ नही कराने देगी, जो इस महाद्वीप के बेहतर भविष्य के लिए उचित और उपयुक्त हो। इसलिए उनकी ‘शराफत’ की ‘नजाकत’ को समझने की ‘हिमाकत’ किसी में नही है।

यद्यपि प्रधानमंत्री विदेशों में अपने देश की आवाज होता है, वह जो कुछ बोलता है उसके विषय में माना जाता है कि उसके सारे देश की मान्यता यही है। उसके देश की आवाज यही है। पर नवाज की बात को काटकर पाकिस्तान ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यहां वास्तविक सत्ता किसकी है? अब हमारे प्रधानमंत्री को सोचना होगा कि वह पाकिस्तान की अपनी प्रस्तावित यात्रा करें या न करें। अच्छा हो कि वह पाक यात्रा पर न जायें। क्योंकि पाकिस्तान का उनका समकक्ष ‘पर कैच किया गया कबूतर’ है, जिसकी उडऩे की अपना सीमाएं हैं, और उसके लिए यह भी अपेक्षित है कि वह उडक़र लौटकर अपनी छतरी पर ही बैठ जाएगा। बाकी काम हम स्वयं करेंगे। ये जो पीछे से यह कहते हैं कि‘बाकी काम हम स्वयं करेंगे’, पाकिस्तान के वास्तविक सत्ताधीश ये ही लोग हैं। पर इनके साथ ऐसी कोई संवैधानिक शक्ति नही है जिसके आधार पर इनसे बातचीत की जा सके। इस प्रकार पूरा पाकिस्तान ही ‘असंवैधानिक व्यवस्था’ से शासित हो रहा है। हमारे प्रधानमंत्री ऐसी परिस्थितियों में इन असंवैधानिक लोगों से तो बातचीत कर नही सकते और उनका अपना समकक्ष ‘लुंज पुंज’ है तो पाक यात्रा का औचित्य क्या है?

पाकिस्तान को अपने काले कारनामों से मुकरने की पुरानी बीमारी है। इसने पिछली शताब्दी के उत्तरार्ध में अपने ही पूर्वी भाग (आज का बांग्लादेश) में सन 1971 में 50 लाख लोगों को भूनकर रख दिया था। उनका अपराध केवल इतना सा था कि वे स्वतंत्रता की मांग कर रहे थे। सारे विश्व ने उस समय देख लिया था कि मजहब के नाम पर अलग राष्ट्र की मांग को पूरा कराके भी मजहब के आधार पर देश को एक रखने में पाक किस प्रकार असफल हो रहा था? इसके साथ ही विश्व ने यह भी अनुभव किया कि एक मजहब भी व्यक्ति व्यक्ति के बीच की घृणा को दूर करा देने का निश्चायक प्रमाण नही है। पाकिस्तान से उस समय जब किसी भी पत्रकार ने पूछा कि पूर्वी पाकिस्तान में आपकी ‘इस्लामी सेना’ कितने लोगों को मार चुकी है, तो उसका उत्तर उस समय भी बड़ा मासूमियत भरा होता था-नही, हमने पूर्वी पाकिस्तान में किसी भी व्यक्ति को नही मारा है’।

जो देश अपने ही लोगों को 50 लाख की संख्या में मारकर यह कह दे कि हमने किसी व्यक्ति को नही मारा तो उस देश से लखवी की आवाज के नमूने देकर अपने आपको अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर नंगा करा देने की आशा कैसे की जा सकती है? पाकिस्तान के निर्माण के समय वहां एक नारा बड़ी जोर से लगाया जाया करता था-‘हंसके लिया पाकिस्तान, लडक़े लेंगे हिंदुस्थान’। अपने इस नारे को सिरे चढ़ाने के लिए पाकिस्तान अपने भीतर रहने वाले ढाई करोड़ हिंदुओं को खा गया। आज उनकी संख्या पाकिस्तान में ढाई करोड़ से घटकर 20 लाख रह गयी है। मजहब के नाम पर पक्षपात को या अत्याचारों को गैरकानूनी मानने वाले तथाकथित प्रगतिशील देश और संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तानी हिंदुओं के इस ‘कत्ल’ पर कोई संज्ञान नही लिया। इस प्रकार पिछली शताब्दी में 50 लाख मुसलमानों को बांगलादेश में मारने वाले और दो करोड़ से अधिक हिंदुओं का ‘कत्ल’ (उनका धर्मांतरण भी एक प्रकार का कत्ल ही है क्योंकि इससे एक बड़े समुदाय की धार्मिक भावनाओं का और आस्थाओं का सर्वनाश हो गया) करने वाले पाकिस्तान को आज तक पूर्णत: एक आतंकी राष्ट्र घोषित नही किया गया।

हमारे पी.एम. मोदी भी पाकिस्तान को आतंकी राष्ट्र कहने में चूक कर गये। उन्होंने सोचा होगा कि ‘शरीफ भाई’ के साथ चाय की चुस्की लेकर ही सारी समस्या का समाधान कर लेंगे। पर शरीफ के देश ने बता दिया है कि एक ‘चाय वाले’ के साथ चाय पीकर शरीफ ने कितना बड़ा ‘गुनाह’ किया है? इस गुनाहगार को पहली सजा ये दे दी गयी है कि उसके कहे को उसके ही देश ने मानने से इनकार कर दिया है। मोदी जी :-

संगीन हकीकत है दुनिया
यह कोई सुनहरा ख्वाब नही’’

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