एक प्रोफेसर का मुस्लिम शिष्य से प्रेरक वार्तालाप

डा. मुमुक्षु आर्य

प्रोफेसर भारती एवं उनके एक मुस्लिम विद्यार्थी जावेद की भेंट आज बाज़ार में हो गई, जावेद जल्दी में था और बोला  सर ! ईद आने वाली है इसलिए क़ुरबानी देने के लिए बकरा खरीदने जा रहा हूँ, प्रो0 साहिब के मन में तत्काल उन लाखों निर्दोष बकरों, बैलों, ऊँटों आदि का ख्याल आया जिनकी गर्दनों पर अल्लाह के नाम पर तलवार चला दी जाएगी। वे सब बेकसूर जानवर धर्म के नाम पर क़त्ल कर दिए जायेंगें.

*प्रो0 साहिब से रहा न गया और वे जावेद से बोले कि – यह क़ुरबानी मुस्लमान लोग क्यों देते हैं ?

* यूँ तो जावेद जल्दी में था पर जब इस्लाम का प्रश्न आया तो बोला, सर ! इसके पीछे एक पुराना किस्सा है- हजऱत इब्राहीम से एक बार सपने में अल्लाह ने उनकी सबसे प्यारी चीज़ यानि उनके बेटे की क़ुरबानी मांगी, अगले दिन इब्राहीम जैसे ही अपने बेटे इस्माइल की क़ुरबानी देने लगे तभी अल्लाह ने उन के बेटे को एक मेदे में तब्दील कर दिया और हजऱत इब्राहीम ने उसकी क़ुरबानी दे दी, अल्लाह उन पर बहुत मेहरबान हुआ और बस उसके बाद से हर साल मुस्लमान इस दिन को बकर ईद के नाम से मनाते हैं और इस्लाम को मानने वाले बकरा, बैल आदि की क़ुरबानी देते हैं और उस बकरे के मांस को गरीबो में बांटा जाता है जिससे पुण्य मिलता है

*प्रो0- जावेद, अगर अनुमति हो तो मैं कुछ पूछना चाहता हूँ।

*जावेद- सर ! अवश्य !!

* प्रो0- पहले तो यह कि बकर का असली मतलब गाय होता है न कि बकरा, फिर बकरे, बैल, ऊंट आदि की क़ुरबानी क्यों दी जाती हैं? दूसरे बकर ईद के स्थान पर इसे गेंहू ईद कहते तो अच्छा होता क्योंकि एक किलो गौश्त में तो दस किलो के बराबर गेंहू आ जाता है और वो ना केवल सस्ता पड़ता हैं अपितु खाने के लिए कई दिनों तक काम आता है, तीसरेआपका यह हजरत इब्राहीम वाला किस्सा कुछ कम जँच रहा हैं क्योंकि अगर इसे सही माने तो अल्लाह अत्याचारी होने के साथ साथ क्रूर भी साबित होता है,

चौथेै आज अल्लाह किसी मुस्लमान के ख्वाबो में क़ुरबानी की प्रेरणा देने के लिए क्यों नहीं आते और आज के मुसलमानों को भी क्या अल्लाह पर विश्वास नहीं है कि वे अपने बेटों की क़ुरबानी नहीं देते बल्कि एक निरपराध पशु के कत्ल के गुन्हेगार बनते हैं, यह संभव ही नहीं है क्योंकि जो अल्लाह या भगवान प्राणियों की रक्षा करता हैं वह किसी के सपने में आकर उन्हें मारने की प्रेरणा देगा ,मुस्लमान लोगों की बुद्धि को क्या हो गया है,अगर हजऱत इब्राहीम को किसी लडक़ी के साथ बलात्कार करने को अल्लाह कहते तो वे उसे नहीं मानते तो फिर अपने इकलोते लडक़े को मारने के लिए कैसे तैयार हो गए। मुसलमानों को तत्काल इस प्रकार का कत्लेंआम बंद कर देना चाहिए.मुसलमानों के सबसे पाक किताब कुरान-ए-शरीफ के अल हज 22:37 में कहा गया है- न उनके मांस अल्लाह को पहुँचते हैं और न उनके रक्त , किन्तु उसे तुम्हारा तकवा (धर्मप्रायणता) पहुँचता हैं, यही बात अल- अनआम 6:38 में भी कहीं गयी है, हदीसो में भी इस प्रकार के कई प्रमाण मिलते हैं। यहाँ तक कि मुसलमानों में सबसे पवित्र समझी जाने वाली मक्का की यात्रा पर किसी भी प्रकार के मांसाहार यहाँ तक कि जूं तक को मारने की अनुमति नहीं होती हैं तो फिर अल्लाह के नाम पर इस प्रकार कत्लेआम क्यों होता है ?

* जावेद-सर! यहाँ तक तो सब ठीक हैं पर मांसाहार करने में क्या बुराई है ?

* प्रो0-पहले तो शाकाहार विश्व को भूखमरी से बचा सकता हैं। आज विश्व की तेजी से फैल रही जनसँख्या के सामने खाने की बड़ी समस्या है, एक कैलोरी मांस को तैयार करने में 10 कैलोरी के बराबर शाकाहारी पदार्थ की खपत हो जाती है, अगर सारा विश्व मांसाहार को छोड़ दे तो धरती के सीमित संसाधनों का उपयोग अच्छी प्रकार से हो सकता हैं और कोई भी भूखा नहीं रहेगा क्यूंकि दस गुना मनुष्यों का पेट भरा जा सकेगा। अफ्रीका में तो कई मुस्लिम देश भूखमरी के शिकार हैं। अगर ईद के नाम की जकात में उन्हें शाकाहारी भोजन दिया जाये तो कईयों का पेट भर जायेगा, दुसरे मांसाहार बीमारियों की जड़ है- इससे दिल के रोग, गठिया, कैंसर जैसे अनेको रोगों की वृद्धि देखी गयी है और एक भ्रम यह है कि मांसाहार खाने से ज्यादा ताकत मिलती है – इसका प्रबल प्रमाण पहलवान सुशील कुमार है जो विश्व के नंबर एक पहलवान हैं और पूर्ण रूप से शाकाहारी हैं, हाथी, गैंडा, घोडा, बैल आदि भी शाकाहारी हैं, आपसे ही पूछते हैं की क्या आप अपना मांस किसी को खाने देंगे ? नहीं ना तो फिर आप कैसे किसी का मांस खा सकते हैं ?

* जावेद-सर! आप शाकाहार की बात कर रहे हैं क्या पोंधो में आत्मा नहीं होती हैं, क्या उसे खाने से पाप नहीं लगता, महान वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बासु के मुताबिक तो पोंधो में जान होती है।

* प्रो0- पोधों में आत्मा की स्थिति सुषुप्ति की होती है अर्थात सोये हुए के समान, अगर किसी पशु का कत्ल करे तो उसे दर्द होता है, रोता है, चिल्लाता है, मगर किसी पोैधे को कभी दर्द होते, चिल्लाते नहीं देखा जाता , जैसे कोमा के मरीज को दर्द नहीं होता उसी प्रकार पोैधों को भी उखाडऩे पर दर्द नहीं होता, उसकी उत्पत्ति ही खाने के लिए ईश्वर ने की है, जगदीश बासु का कथन सही है कि पौधों में प्राण होते हैं पर उसमें आत्मा की क्या स्थिती है और पोंधो को दर्द नहीं होता-इस बात पर वैज्ञानिक मौन हैं, सबसे महत्वपूर्ण बात है कि शाकाहारी भोजन प्रकृति के लिए हानिकारक नहीं है।

* जावेद- परन्तु हिन्दुओ में कोलकता की काली और गुवहाटी की कामख्या के मंदिर में पशु बलि दी जाती है और तो और वेदों में भी हवन आदि में तो पशु बलि का विधान सुनते हैं।

* प्रो0- जो स्वयं अंधे हैं वे दूसरों को क्या रास्ता दिखायेंगे, हिन्दू जो पशु बलि में विश्वास रखते हैं खुद ही वेदों के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं। पशु बलि देने से केवल और केवल पाप लगता है, भला किसी को मारकर आपको सुख कैसे मिल सकता है? जहाँ तक वेदों का सवाल है मध्यकाल में कुछ अज्ञानी लोगों ने हवन आदि में पशु बलि देना आरंभ कर दिया था और उसे वेद संगत दिखाने के लिए महीधर, सायण आदि ने वेदों के कर्म कांडी अर्थ कर दिये जिससे पशु बलि का विधान वेदों से सिद्ध किया जा सके, बाद में मैक्स्मुलर , ग्रिफीथ आदि पाश्चात्य लोगों ने उसका अंग्रेजी में अनुवाद कर दिया जिससे पूरा विश्व यह समझे की वेदों में पशु बलि का विधान है आधुनिक काल में ऋषि दयानंद ने जब देखा की वेदों के नाम पर किस प्रकार से घोर प्रपंच किया गया है तो उन्होंने वेदों का एक नया भाष्य किया जिससे फैलाई गयी भ्रांतियों को मिटाया जा सके, देखो ! वेदों में पशु आदि के बारे में कितनी सुंदर बात कहीं गयी है-

* ऋग्वेद 5/51/12 में अग्निहोत्र को अध्वर यानि जिसमें हिंसा की अनुमति नहीं है कहा गया है,

यजुर्वेद 12/32 में किसी को भी मारने से मनाही है

यजुर्वेद 16/3 में हिंसा न करने को कहा गया हैं

अथर्ववेद 19/48/5 में पशुओं की रक्षा करने को कहा गया है,

अथर्ववेद 8/3/16 में हिंसा करने वाले को मारने का आदेश है,

ऋग्वेद 8/101/15 में हिंसा करने वाले को राज्य से निष्काषित करने का आदेश है

इस प्रकार चारो वेदों में अनेकों प्रमाण हैं जिनसे यह सिद्ध होता हैं कि वेदों में पशु बलि अथवा मांसाहार का कोई वर्णन नहीं है।

जावेद – हमने तो सुना है कि अश्वमेध में घोड़े की , अजमेध में बकरे की, गोमेध में गो की और नरमेध में आदमी की बलि दी जाती थी।

प्रो0- आपकी शंका अच्छी है, मेध शब्द का अर्थ केवल मात्र मारना नहीं है, मेधावी शब्द का

प्रयोग जिस प्रकार से श्रेष्ठ अथवा बुद्धिमान के लिये किया जाता है उसी प्रकार से मेध शब्द का प्रयोग श्रेष्ठ कार्यो के लिए किया जाता है-शतपथ 13/1/6/3 एवं 13/2/2/3 में कहाँ गया है कि जो कार्य राष्ट्र उत्थान के लिये किया जाये उसे अश्वमेध कहते हैं निघंटु 1/1 एवं शतपथ 13/15/3 के अनुसार अन्न को शुद्ध रखना, संयम रखना, सूर्य की रोशनी से धरती को शुद्ध रखने में उपयोग करना आदि कार्य गोमेध कहलाते हैं,शांति पर्व 337/1-2 के अनुसार हवन में अन्न आदि का प्रयोग करना अथवा अन्न आदि की उत्पादन क्षमता को बढाना अजमेध कहलाता है, मनुष्य के मृत शरीर का उचित प्रकार से दाह कर्म करना नरमेध कहलाता है।

* जावेद – हमने तो सुना है कि श्री राम जी मांस खाते थे एवं महाभारत वनपर्व 207 में रांतिदेव राजा ने गाय को मारने की अनुमति दी थी।

* प्रो0 -रामायण, महाभारत आदि पुस्तकों में उन्हीं लोगो ने मिलावट कर दी है जो हवन में पशु बलि एवं मांसाहार आदि मानते थे, वेद स्मृति परंपरा से सुरक्षित हैं इसलिए वेदों में कोई मिलावट नहीं हो सकती उसमें से एक शब्द अथवा एक मात्रा तक को बदला नहीं जा सकता। रामायण में सुंदर कांड स्कन्द 36 श्लोक 41 में स्पष्ट कहा गया हैं कि श्री राम जी मांस नहीं लेते वे तो केवल फल अथवा चावल लेते हैं। महाभारत अनुशासन पर्व 115/40 में रांतिदेव को शाकाहारी बताया गया है।

शांति पर्व 262/47 में गाय और बैल को मारने वाले को पापी कहा गया है, इस प्रकार के अन्य प्रमाण भी मिलते हैं जिनसे यह भी सिद्ध होता हैं की रामायण एवं महाभारत में मांस खाने की अनुमति नहीं है और जो भी प्रमाण मिलते हैं वे सब मिलावट हैं।

*जावेद – तो क्या सर! हमें किसी को भी मारने की इजाजत नहीं है ?

*प्रो0- बिलकुल, जावेद, यहाँ तक कि कुरान के उस अल्लाह को ही मानना चाहिए जो अहिंसा, सत्य, प्रेम, भाईचारे की बात करे, क़ुरबानी, मारना, काटना, घृणा, करना, पाप करना आदि सिखाने वाली बातें ईश्वरकृत नहीं हो सकती!

हदीस ज़द अल-माद में इब्न क़य्यिम ने कहा है कि “गाय के दूध-घी का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि यह सेहत के लिए फायदेमंद हैं और हर तरह का मांस सेहत के लिए नुकसानदायक है।

*जावेद-सर, आपकी बातों में दम बहुत है और साथ ही साथ वे मुझे जच भी रही हैं। अब मैं कभी भी जीवन भर मांस नहीं खाऊंगा, ईद पर बकरा नहीं काटूँगा और साथ ही साथ अपने अन्य मुस्लिम भाइयों को भी इस सत्य के विषय में बताऊंगा, सर! आपका सही रास्ता दिखलाने के लिए अत्यंत धन्यवाद !

बुरा न मानों तो एक बात सर ! मैं आप से भी पूछूं ?

*प्रो0-जरूर पूछिये?

*जावेद-सर, आप हिन्दूओं में अल्लाह मेरा मतलव ईश्वर की मूर्तियाँ बना कर पूजने की बात कुछ जंचती नहीं ।

*प्रो0-पहली बात तो यह कि इस देश का मूल नाम आर्यवर्त होने से सब आर्य कहलाते थे और आर्य लोग कभी मूर्ति पूजा नहीं करते थे वे ईश्वर को कण कण में और निराकार मानकर योगाभ्यास द्वारा उसके इस रूप का चिन्तन मनन अर्थात् ध्यान

करते थे, दूसरी बात यह कि आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व कुछ लोगों के स्वार्थ और वेदों से अनभिज्ञ होने के कारण यह मूर्ति पूजा का प्रचलन हो गया, लोगों को समझने समझाने में समय तो लगेगा।

*जावेद-अच्छा सर, आज आप से प्रेमपूर्वक वार्तालाप करके बहुत सी शंकाएँ दूर हो गई आपका पुन: बहुत धन्यवाद ।,

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