कविता — ऐ अफ़गानिस्तानी तालिबान

ए अफगानिस्तानी तालिबान।

तू मान न मान ।
मैं तेरा मेहमान ।
मैं हूं पाकिस्तान।
मुल्लाअब्दुल गनी बरादर।
मुल्ला अखुंद ने किया निरादर।
मुल्लाह बरादर को मारी गोली।
फिर भी पाक तुर्की आदि की नजर में
तालिबान की सूरत भोली।
काबुल में गूंजा मुर्दाबाद पाकिस्तान।
“मेरे अंगने में तुम्हारा क्या है काम”
इस्लाम का है नारा ।
अमन और भाईचारा।
विगत 14 सौ वर्ष में।
सत्ता के संघर्ष में।
भाई ने भाई को मारा।
पुत्र ने पिता को जेल में डारा।

आज भी विश्व देख रहा सारा ।

गृह युद्ध का चढ रहा पारा।
न शांति ना अमन
ना हूरें मिली ना चमन।
पैगंबर के बाद भी सत्ता की लड़ाई।
मार दिए रिश्तेदार और जमाई।
यह नहीं रुकेगी भाई ।
जब नींव ही ऐसी जमाई।
ना अमन ना चैन।
मारकाट दिन रैन।
चीन रूस तुर्की पाक।
कितनी ही छान लें खाक।
दुनिया में खो जाएगी साख।
होना है एक दिन राख।

देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन : उगता भारत

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