तालिबानी कहीं का भी हो, कठोरता ही उसका एकमात्र उपचार है


अफगानिस्तान में जो कुछ भी हो रहा है उसका भारत पर प्रभाव पड़ना निश्चित है। यह एक बहुत अच्छा संकेत है कि वहां पर उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने तालिबान के सामने हथियार डालने से मना कर दिया है। उनके इस प्रकार इनकार करने के बाद अफगानिस्तान गृहयुद्ध की लपटों में जलने लगा है। राजनीति और कूटनीति का यह सिद्धांत है कि दुश्मन को उसके अपने ही मकड़जाल में उलझाये रखो, अन्यथा वह समय आने पर आपके लिए संकट पैदा कर सकता है । इस सिद्धांत के पालन में भारत के लिए यही उचित होगा कि अफगानिस्तान के तालिबान अपने देश के भीतर ही उलझे रहें। यह हमारे लिए तब और भी अधिक आवश्यक हो जाता है जब अफगानिस्तानी तालिबानियों के सत्ता में लौट आने की खबरों से उत्साहित होकर भारत के भी कई तालिबानी रंग बदलते हुए दिखाई दे रहे हैं। जम्मू कश्मीर में पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती ने कुछ इस प्रकार बयान दिया है कि जैसे तालिबानी बहुत शीघ्र जम्मू कश्मीर पर हमला करेंगे और इसके भारत से अलग होने का अब अधिक समय नहीं रह गया है। इसके साथ ही कश्मीर में हुरिर्यत कॉन्फ्रेंस भी तालिबानियों से प्रेरणा लेकर सर उठाने की कोशिश करती हुई दिखाई दी है। जिस पर केंद्र सरकार ने तुरंत कार्यवाही करते हुए प्रतिबंध लगा दिया है।
  सपा के नेता शफीक उर रहमान और उन जैसे अलगाववादी विचार रखने वाले कई मुस्लिम कट्टरपंथियों ने अफगानिस्तान में तालिबान की जीत को आजादी की जंग के रूप में देखा है और इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की है कि तालिबान अपने देश को आजाद कराने में सफल हो गया है । तालिबान के द्वारा वहां पर जिस प्रकार महिलाओं और बच्चों पर अत्याचार किए गए हैं वह सब इन लोगों ने उपेक्षित कर दिए हैं। इनके व्यवहार आचरण से ऐसा लगता है कि जैसे इस्लाम की ‘हिफाजत’ के लिए महिलाओं और बच्चों पर ऐसे अत्याचार कोई अधिक मायने नहीं रखते , या समझो कि ऐसा होना कोई बड़ी बात नहीं है या इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि दुश्मनों के बीवी बच्चों के साथ ‘ऐसा तो होना ही चाहिए ‘। इस प्रकार की सोच को आप किसी भी दृष्टिकोण से मानवीय और लोकतांत्रिक सोच नहीं कह सकते । आज की 21 वीं सदी में जब मनुष्य अपनी सफलता के विभिन्न कीर्तिमान स्थापित कर रहा है, तब ऐसी दरिंदगी बहुत कुछ सोचने पर विवश करती है।
   अभी तक केंद्र की मोदी सरकार अफगानिस्तान के मामले में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। जिसके अच्छे परिणाम भी दिखाई दे रहे हैं । प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के नेता व्लादिमीर पुतिन से 45 मिनट तक बातचीत की है। जिससे लग रहा है कि भारत और रूस दोनों मिलकर अफगानिस्तान के बारे में कोई ना कोई ‘संयुक्त रणनीति’ बनाने जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस प्रकार राज्य विधानसभा में तालिबानियों का पक्ष पोषण करने वाले नेताओं को आड़े हाथों लिया है वह भी उनकी शेरदिली का प्रमाण है । इसी प्रकार का स्पष्टवादी चिंतन प्रत्येक उस व्यक्ति के विरुद्ध राजनेताओं की ओर से प्रकट होना चाहिए जो देश को तोड़ने वाले लोगों का साथ देता है या संसार में आतंकी गतिविधियों में लगे लोगों के साथ खड़ा दिखाई देता है।
    हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि इस समय देश की सुरक्षा और भविष्य के दृष्टिगत हम सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर अफगानिस्तान के प्रति किसी भी प्रकार के प्रमाद का प्रदर्शन ना करें। वहां से आने वाले मुस्लिम शरणार्थियों को किसी भी स्थिति में शरण देने की गलती ना करें। यदि हमने ऐसी गलती इस समय की तो निश्चय ही भविष्य में इसके बहुत भयंकर परिणाम हमको भुगतने पड़ सकते हैं।
भारत में तालिबानी ‘अपसंस्कृति’ को फैलाने का काम करने वाली हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की सोच प्रारंभ से ही भारत के विषय में अलगाववादी रही है । इसके नेता कश्मीर समस्या को त्रिपक्षीय बताते रहे हैं। वह जम्मू कश्मीर को लेकर होने वाली प्रत्येक प्रकार की वार्ता में पाकिस्तान को भी एक आवश्यक पक्षकार बनाकर बैठाने का दबाव केंद्र सरकार पर डालते रहे हैं। उनके इस प्रकार के आचरण से पता चलता है कि वे पाकिस्तान के टुकड़ों पर पलने वाले उसके पिट्ठू हैं। इनके विषय में हमें ध्यान रखना चाहिए कि अलगाववाद और विखंडनवाद इनके खून में समाया हुआ है। यदि इनके खून के साथ तालिबानी अपसंस्कृति का खून आकर मिल गया तो यह भारत में विकास के स्थान पर विनाश की हवा चला देंगे। इस दृष्टिकोण से केंद्र की मोदी सरकार ने हुरिर्यत कॉन्फ्रेंस के दोनों धड़ों पर प्रतिबंध लगाकर उचित ही निर्णय लिया है।
हमें हुर्रियत कांफ्रेंस और उस जैसे अन्य भारतीय तालिबानी संगठनों के इस दृष्टिकोण को समझना चाहिए कि वह 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार द्वारा  देशविरोधी धारा 370 और 35a को हटाए जाने के निर्णय पर आज तक यह कहते आ रहे हैं कि संविधान की ये दोनों धाराएं बहाल होनी चाहिएं और इनकी बहाली के लिए होने वाले वार्तालाप में पाकिस्तान को भी आमंत्रित किया जाए। हुरिर्यत कॉन्फ्रेंस की इस देश विरोधी मांग को हमें हल्के से नहीं लेना चाहिए। क्योंकि धारा 370 और 35a को हटाना भारत का अंदरूनी मामला था। जिसमें किसी भी बाहरी देश को हस्तक्षेप करने की या उसे एक पार्टी बनाकर उसके साथ बातचीत करने की आवश्यकता हमें नहीं है।
भारत के इन तालिबानियों को देश ,धर्म और संस्कृति के विनाश के लिए विषधर नाग समझना चाहिए। जिनका फन कुचला जाना समय की आवश्यकता है । यदि इनकी पीठ थपथपाते हुए हमारे देश के किसी भी राजनीतिक दल के नेता दिखाई दें तो उनके साथ भी कानून को कठोरता से निपटना चाहिए। सभी राष्ट्रवादी शक्तियों को सरकार से मांग करनी चाहिए कि वह इन सभी लोगों से कठोरता से निपटे। हम सबका केंद्र सरकार पर यह सामूहिक दबाव होना चाहिए कि देश विरोधी लोगों के कोई मौलिक अधिकार नहीं होते। मौलिक अधिकारों के नाम पर किसी भी आतंकवादी या देश विरोधी व्यक्ति या शक्ति का समर्थन करना या उसे संरक्षण देना भी अब ‘अपराध’ घोषित होना चाहिए।
पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती को इस बात का भी ज्ञान होना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में आज भी दर्जनों सीटें ऐसी हैं जो खाली पड़ी रहती हैं । जम्मू कश्मीर विधानसभा में खाली पड़ी ये सीटें कश्मीर के उस हिस्से से चुनकर आने वाले  विधायकों की सीटें हैं जो इस समय पाकिस्तान के कब्जे में है। इन सीटों के बने रहने से पता चलता है कि जम्मू कश्मीर में चाहे किसी भी राजनीतिक दल की सरकार रही हो, ये सीटें उसे बताती रही हैं कि जम्मू कश्मीर तभी सुख की नींद सो सकेगा जब पाक अधिकृत कश्मीर भी भारत के साथ सम्मिलित हो जाएगा और वहां से चुने जाने वाले विधायक भारत के इस राज्य की विधानसभा में आकर बैठ पाएंगे । अब मांग केवल एक ही होनी चाहिए कि संपूर्ण जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और यह राज्य उस सारे क्षेत्र को लेकर बनता है जो पाकिस्तान ने जबरन कब्जाया हुआ है।
यदि इस समय रूस और उसके साथी मिलकर तालिबानियों के विरुद्ध कोई ‘कठोर निर्णय’ लेते हैं तो भारत को भी इन लोगों का साथ देकर अपनी उस कश्मीर को पाकिस्तान के अधिकार क्षेत्र से मुक्त कराने की दिशा में ‘मजबूत निर्णय’ लेना ही चाहिए जो उसने जबरन कबजायी हुई है।
पीडीपी की नेता  महबूबा मुफ्ती पर इस समय विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है। क्योंकि वह देश विरोधी शक्तियों के हाथों में खेल रही हैं। उनके लिए चाहे पाकिस्तान हो, चाहे हुर्रियत कॉन्फ्रेंस हो, चाहे कोई अन्य शक्ति – संगठन हो वह भारत के विरुद्ध किसी से भी हाथ मिला सकती हैं । अपनी सत्ता प्राप्ति की कामना की पूर्ति के लिए महबूबा मुफ्ती इस समय कुछ भी कर सकती हैं। उनके लिए देश कोई मायने नहीं रखता। उन्हें जम्मू-कश्मीर की सत्ता चाहिए। वह भारत के शीर्ष अर्थात कश्मीर में बैठकर दक्षिण की ओर अर्थात शेष भारत को अपना मानकर न देखते हुए पाकिस्तान सहित हर उस देश की ओर देखना चाहती हैं जो उन्हें कश्मीर की ‘साम्राज्ञी’ बनाने में सहायता कर सकता हो। देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप में आस्था रखने वाले लोगों को कश्मीर की इस नेता की छटपटाहट को समझना चाहिए। उन्हें इसकी छटपटाहट को देखकर यह निष्कर्ष निकालना चाहिए कि भारत की कीमत पर महबूबा किस प्रकार सब कुछ करने को तैयार हैं?
  हमें इस बात को ध्यान रखना चाहिए कि हुर्रियत कांफ्रेंस पिछले 30 वर्ष से जम्मू-कश्मीर प्रदेश की जनता के प्रतिनिधित्व के नाम पर भारत की संघीय व्यवस्था को चुनौती देने का काम करती रही है। वह भारत की जमीन पर काम करते हुए भारत के संदर्भ में पाकिस्तानी दृष्टिकोण का समर्थन करती आयी है। इसके पीछे उसकी मजहबी द्वेष पूर्ण भावना काम करती रही है। क्योंकि उसे भारत को दारुल इस्लाम में परिवर्तित कर अपनी ‘गजवा-ए- हिन्द’ की सोच के आधार पर ‘मुगलिस्तान’ बनाना है और यह मुगलिस्तान आगे चलकर पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ मिलकर शेष हिंदुस्तान के सर्वनाश की बड़ी तैयारी करेगा।
हमें यह आज भी ध्यान रखना चाहिए कि हिंदू विनाश के लिए पाकिस्तान और बांग्लादेश भी एक हैं और यदि मुगलिस्तान अस्तित्व में आया तो वह भी ‘।हिंदू विनाश’ की योजना पर मजबूती से काम करेगा। तनिक कल्पना करें कि जब यह तीन देश मित्र होकर अपने सामूहिक शत्रु अर्थात शेष भारत के विनाश की योजना पर काम कर रहे होंगे तो उन्हें कितनी शीघ्रता से अपने ‘लक्ष्य’ में सफलता प्राप्त हो सकेगी?
हमें भारत के भीतर बैठे भारत के दुश्मनों के इरादे समझने होंगे। उनका उद्देश्य भारत का विनाश है और उससे भी बढ़कर स्पष्ट शब्दों में कहें तो उनका उद्देश्य हिंदू विनाश है। हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं ने जम्मू कश्मीर की छवि विश्व मंचों पर कुछ इस प्रकार प्रस्तुत की कि वहां पर लोगों के साथ बहुत जोर जबरदस्ती की जा रही है । उन्होंने भारतीय पक्ष की हवा निकालने का भी कोई अवसर छोड़ा नहीं।
देश में बढ़ते अलगाववाद और आतंकवाद से निपटने के लिए देश की सरकार को इस समय जनसंख्या नियंत्रण कानून और धर्मांतरण विरोधी कानून लाने की आवश्यकता है। जो लोग जनसंख्या बढ़ाकर देश के टुकड़े करने के मंसूबे पाल रहे हैं उनके मंसूबों पर पानी फेरने के लिए इस प्रकार की नीति अपनायी जानी समय की आवश्यकता है। जैसे ही तालिबान ने अफगानिस्तान में अपनी तथाकथित सफलता का ढिंढोरा पीटा वैसे ही भारत के तालिबानियों ने जोश दिखाना आरंभ कर दिया । इस संदर्भ में हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि देश विरोधी शक्तियों के द्वारा अब  ‘वृहद-बांग्लादेश’ बनाने की योजना पर भी काम किया जा रहा है । जानकारों का मानना है कि इस योजना में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का आशीर्वाद भी देश विरोधी शक्तियों के साथ है। इस मंसूबे को पालने वाले लोग भारत के तालिबानी ही कहे जाएंगे और जो लोग जम्मू कश्मीर को स्वतंत्र कराकर एक अलग देश के सपने संजो रहे हैं उन्हें भी भारत के तालिबानी ही मानना चाहिए।
हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कश्मीर के बारे में जब भी चर्चा होती है तो कई लोग ‘कश्मीरियत’ की चर्चा करने से भी नहीं चूकते हैं। उन्हें ‘कश्मीरियत’ उस तथाकथित गंगा जमुनी संस्कृति में दिखाई देती है जिसने वास्तविक कश्मीरी संस्कृति का विनाश कर दिया अर्थात् उस हिंदू वैदिक संस्कृति का विनाश इसी गंगा जमुनी संस्कृति ने किया जो कभी इस प्रदेश को ऋषियों की पवित्र भूमि घोषित करती थी। वास्तविक कश्मीरियत वह थी जो ऋषियों की वेद वाणी के गीत सुना करती थी और  जब उस वाणी से नि:सृत हुए गीत संगीत को अपनी सुरीली बांसुरी के माध्यम से प्रसारित करती थी तो न केवल भारत बल्कि सारा संसार उसकी ओर खिंचा चला आता था। क्या यह तथाकथित गंगा जमुनी संस्कृति आज फिर कश्मीर की उस कश्मीर को लौटा सकती है ?
गंगा जमुनी संस्कृति की मूर्खता पूर्ण अवधारणा ने ऋषियों का विनाश किया। उनकी संस्कृति का विनाश किया, उनके चिंतन और उनकी विचारधारा का नाश किया। उनके मूल्यों का नाश किया और जो लोग वहां पर हिंदू के नाम पर निवास कर रहे थे उन्हें दिन रखकर 1989 में वहां से भागने के लिए मजबूर किया। इसके उपरांत भी गंगा जमुनी संस्कृति के गीत गाकर या उसके छलावे में रखकर जिस प्रकार हमें ठगा जा रहा है उस छलावे और तथाकथित गंगा जमुनी संस्कृति से हमें सावधान रहने की आवश्यकता है। वास्तव में गंगा जमुनी संस्कृति की यह अपसंस्कृति एक बीमारी है । जो हमारे मौलिक स्वरूप को धीरे-धीरे समाप्त कर देती है । जैसे ही कहीं हमारी मौलिक संस्कृति समाप्ति की ओर बढ़ती है वैसे ही हमें पता चलता है कि या तो हमारा देश टूट गया या फिर हम खून खराबे के नए दौर में दाखिल हो गए।
प्रधानमंत्री मोदी जी अफगानिस्तान के तालिबानियों के विरुद्ध जो भी निर्णय लें वह देश की इन सभी अंदरूनी समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए लें। बाहरी तालिबानियों को कुचलते समय भीतरी तालिबानी किसी भी प्रकार से उनसे खाद-पानी न ले पाएं इस बात का पूरा प्रबंध कर लिया जाए। पूरा देश यह चाहता है कि तालिबानी चाहे बाहर के हों चाहे भीतर के हों ,उनके विरुद्ध कठोरता से ही पेश आना चाहिए।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक :  उगता भारत

Comment: