अफगानिस्तान की सेना में लड़ने की इच्छाशक्ति नहीं दे पाए : जो बायडेन, अमेरिका राष्ट्रपति

 

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बायडेन ने अफगानिस्तान के हालिया संकट और तालिबान द्वारा काबुल पर कब्ज़ा किए जाने के बाद बयान जारी किया है। उन्होंने कहा कि वो और उनकी टीम पूरी गतिविधियों पर नजर रखे हुए है। उन्होंने याद किया कि कैसे 9/11 के दोषियों को पकड़ने के लिए अमेरिका 2001 में अफगानिस्तान में घुसा था, ताकि अलकायदा अमेरिका के खिलाफ अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल नहीं कर सके। 

उन्होंने कहा कि अमेरिका अपने लक्ष्य में कामयाब रहा और अलकायदा को एकदम सीमित कर दिया गया। उन्होंने याद किया कि कैसे ओसामा बिन लादेन के लिए अमेरिका ने तलाश जारी रखी और अंत में उसे मार गिराया। उन्होंने कहा कि एक दशक पहले की बात है। उन्होंने कहा कि अमेरिका का अफगानिस्तान मिशन कभी वहाँ एकीकृत व केंद्रीयकृत लोकतंत्र की स्थापना या फिर राष्ट्र निर्माण के लिए नहीं था।

उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में अमेरिका के मिशन का सिर्फ और सिर्फ एक ही लक्ष्य था – अमेरिका पर होने वाले हमले को रोकना। उन्होंने कहा कि वो शुरू से इसके पक्षधर रहे हैं कि हमारा मिशन आतंकवाद के खिलाफ हो, विद्रोह को दबाना या राष्ट्र निर्माण नहीं। उन्होंने बताया कि 2009 में उप-राष्ट्रपति रहते भी उन्होंने अफगानिस्तान में सेना बढ़ाए जाने की आलोचना की थी। उन्होंने कहा कि अब वो 2021 के खतरों पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं, पिछले दिनों के खतरों की तरफ नहीं।

अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि आज आतंकवाद सिर्फ अफगानिस्तान तक ही सीमित नहीं है। इसके लिए उन्होंने सोमालिया के अल-शबाब, अरब में अलकायदा, सीरिया में अल-नुसरा, और ISIS द्वारा वहाँ खिलाफत की स्थापना किए जाने के प्रयासों अफ्रीका व एशिया के कई देशों में अपना संगठन खड़ा करने जैसी घटनाओं का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि हमारा ध्यान व संसाधनों का इस्तेमाल इन खतरों से निपटने के लिए होना चाहिए। 

उन्होंने ध्यान दिलाया कि अमेरिका कई ऐसे देशों में भी आतंकवाद के खिलाफ अभियान चला रहा है, जहाँ उसकी सैन्य उपस्थिति नहीं है। साथ ही कहा कि ज़रूरत पड़ने पर अमेरिका की तरफ बढ़ते किसी भी खतरे को समाप्त करने की क्षमता देश के पास है। उन्होंने कहा कि उनके पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रम्प ने ही करार किया था कि मई 2021 तक अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना वापस आ जाएगी।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन ने कहा कि डोनाल्ड ट्रम्प के समय ही सेना की वापसी शुरू हो गई थी और अफगानिस्तान में 15,000 सैनिक से लेकर 2500 ट्रूप्स उपस्थित थे, जबकि तालिबान 2001 के बाद अपनी सबसे मजबूत स्थिति में था। उन्होंने कहा कि उनके पास सिर्फ दो विकल्प थे – पहले से हुए करार का अनुसरण करना या फिर वापस जाकर तालिबान से लड़ना। उन्होंने कहा कि वहाँ और सेना भेजने के साथ ही हम इस युद्ध के तीसरे दशक में प्रवेश कर जाते।

उन्होंने कहा कि अमेरिकी सेना को वापस बुलाने का इससे अच्छा कोई समय नहीं है। उन्होंने इसे एक सही निर्णय बताते हुए कहा कि जो युद्ध अफगानिस्तान की सेना भी नहीं लड़ना चाहती है और बिना लड़े ही हथियार डाल रही है, वहाँ अमेरिका की सेना जाकर क्यों अपनी जान गँवाए? उन्होंने बताया कि कैसे ट्रिलियन डॉलर खर्च कर के अफगानिस्तान की 3 लाख की सेना तैयार की गई, जो कई NATO देशों से भी ज्यादा है।

बकौल अमेरिकी राष्ट्रपति, उस सेना को प्रशिक्षण, उपकरण व हथियार दिए गए, वेतन दिया गया, वायुसेना को मजबूत बनाया गया। उन्होंने कहा कि तालिबान के पास तो वायुसेना भी नहीं है। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान की फौज को हमने सब कुछ दिया, लेकिन भविष्य में लड़ने के लिए इच्छाशक्ति नहीं दे पाए। उन्होंने कहा कि अगर अफगानिस्तान ही लड़ना नहीं चाहता है तो अमेरिकी सेना कितने साल भी वहाँ रह जाए, कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।

जो बायडेन ने कहा, “जब अफगानिस्तान की खुद की ही फौज आगे नहीं आ रही है तो अमेरिकी सेना को वहाँ लड़ने के लिए बोलना गलत है। जब वहाँ के नेता ही भविष्य के लिए एकजुट होकर बातचीत नहीं कर रहे हैं, तो हम वहाँ रह कर उनके लिए क्यों लड़ते रहें? हमारे प्रतिद्वंद्वी चीन और रूस तो चाहते ही हैं कि हम वहाँ बिलियंस डॉलर खर्च कर के बने रहें। मैंने राष्ट्रपति अशरफ गनी से बात की, नेताओं को एकजुट होने को कहा लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाए। अमेरिका की कितनी पुश्तें आप अफगानिस्तान में देखेंगे? ये सवाल उनसे है जो कह रहे कि हमें वहाँ रुकना चाहिए।”

जो बायडेन ने कहा, “मैं इतिहास की गलतियों को नहीं दोहराऊँगा। ये अमेरिका के हित में नहीं है कि वो किसी दूसरे देश के सिविल वॉर में पड़े। अफगानिस्तान में हम जो देख रहे हैं, वो सच में दुःख देने वाला है। मैंने सालों इस मुद्दे पर काम किया है। अब मैं वहाँ से लोगों को निकालने के लिए 6000 सैनिकों को तैनात कर रहा हूँ। हमारे व हमारे सहयोगियों के कर्मचारियों के साथ-साथ हम कई अफगान नागरिकों को भी निकाल रहे हैं। हमने दूतावास बंद कर दिया है और ये सब एयरपोर्ट तक ही सीमित है। हम खतरे में पड़े अफगान नागरिकों को वीजा भी दे रहे।”

उधर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अफगानिस्तान में तालिबानी शासन की सराहना की है। इस्लामाबाद में ‘एकल राष्ट्रीय पाठ्यक्रम’ के उद्घाटन समारोह के दौरान उन्होंने तालिबानी शासकों द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जा करने को उचित ठहराया। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि अफगान के नागरिकों की मानसिक गुलामी की जंजीरें टूट गईं। उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा उन पर अपनी संस्कृति को थोपना मानसिक दासता के समान था।

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