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गौ और गोवंश पर्व – त्यौहार

बेजुबान जानवर को मारने से कहीं बेहतर है कि …..

🙏बुरा मानो या भला🙏

—मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”

किसी बेज़ुबान, निर्दोष, निष्कलंक और मासूम जानवर की बलि (कुर्बानी) देने से ईश्वर (अल्लाह) प्रसन्न नहीं हो सकता। जीवन और मृत्यु दोनों ही ईश्वर के हाथों में हैं। आप जिसको जीवन नहीं दे सकते उसकी हत्या करने का अधिकार भी आपका नहीं हो सकता। यह नियम किसी मज़हब/धर्म अथवा सम्प्रदाय विशेष पर लागू नहीं होता अपितु प्रत्येक धर्म/मज़हब पर यह समान रूप से लागू होता है।

अहिँसा के पुजारी बापू के इस देश में “हिंसा” का स्थान कहाँ और क्यों है। बापू ने तो स्वयं कहा था कि “किसी भी देश की महानता इसी बात से साबित होती है कि उस देश में जानवरों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है”।
बलि (कुर्बानी) तो बुराइयों की दी जानी चाहिए, उन बुराइयों की जो आपके स्वयं के भीतर हैं, आपके समाज में हैं और आपकी क़ौम में हैं। बलि देनी ही है तो समाज में फैली कुप्रथाओं, कुसंस्कारों और कुरीतियों की दी जानी चाहिए। किसी बेज़ुबान की बलि देने से ईश्वर की प्रसन्नता की गारंटी नहीं दी जा सकती, अलबत्ता आपके जीभ का स्वाद अवश्य बदला जा सकता है। जो ईश्वर किसी के जीवन बचाने से प्रसन्न हो सकता है, क्या वह किसी का जीवन लेने से प्रसन्नता का अनुभव कर पायेगा? शायद कभी नहीं।
बलि देने की परंपरा कहीं भी हो, किसी भी धर्म में हो, किसी भी समाज में हो, उसे उचित नहीं ठहराया जा सकता है। चूंकि बलि देने से किसी का भला नहीं हो सकता।

बेज़ुबान जानवर को मारने से कोई लाभ नहीं है, अगर मारना ही है तो अपने अंदर के “जानवर” को मारिये। उस जानवर को जो आपके भीतर “हिंसा” की प्रवृत्ति को जन्म देता है। जो किसी बेगुनाह की हत्या जैसे जघन्य अपराध के लिए आपको उकसाता है। वह जानवर जो आपके भीतर “कामपिपासा” की अग्नि को प्रबल करता है और किसी बेबस और लाचार स्त्री की लज्जा को तार-तार कर देता है। वह जानवर जो लालच के रूप में आपके भीतर बैठ गया है, जो आपको बेईमानी, घटतौली, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, झूठ और फरेब के लिए उकसाता है। वह जानवर जो आपके भीतर एक आतंकवादी को जन्म देता है और आपको आतंक के लिए उकसाता है।

कुर्बानी ही देनी है तो उस जानवर की दीजिये जो आपको इंसान से हैवान बना देता है। जो मानवीय रिश्तों को नहीं देखता, मानवता को नहीं देखता। आपको नर से नरपिशाच बना देता है।

आज जरूरत “जियो औऱ जीने दो” के सिद्धांत को आत्मसात करने और उसका अनुसरण करने की है। आइये हम सब इस सिद्धान्त का अक्षरशः पालन करने की प्रतिज्ञा लें।

एक दयालु नागरिक बनिये।।।

🖋️ मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)

 

*विशेष नोट- उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। उगता भारत समाचार पत्र के सम्पादक मंडल का उनसे सहमत होना न होना आवश्यक नहीं है। हमारा उद्देश्य जानबूझकर किसी की धार्मिक-जातिगत अथवा व्यक्तिगत आस्था एवं विश्वास को ठेस पहुंचाने नहीं है। यदि जाने-अनजाने ऐसा होता है तो उसके लिए हम करबद्ध होकर क्षमा प्रार्थी हैं।

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