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संपादकीय

हिंदू-मुस्लिम का डीएनए एक है तो …..

भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करेंगे, समान नागरिक संहिता लाएंगे, जनसंख्या नियंत्रण के लिए कठोर कानून लाया जाएगा, मुस्लिम तुष्टिकरण की चल रही राजनीतिक परंपरा को समाप्त किया जाएगा , ‘यदि भारत में रहना होगा तो वंदेमातरम कहना होगा’ – इन जैसे अन्य कई नारे या जनता को दिए गए वचन लगता है आरएसएस और भाजपा के लिए सत्ता प्राप्ति का एकमात्र साधन थे। देश के लोगों ने भाजपा को रोजी रोटी की दैनिक चिंताओं से ऊपर उठकर इसलिए अपना वोट दिया था कि वह सत्ता में आकर उन समस्याओं से देश को स्थाई समाधान प्रदान करेंगे जो इस समय देश के लिए जी का जंजाल बन चुकी हैं।
परंतु यथार्थ में ऐसा हुआ नहीं, अब आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदू मुस्लिम का डीएनए एक होने की बात कहकर नए प्रश्नों को जन्म दे दिया है।
आरएसएस और भाजपा के लोग ही थे जो जनता को बताया करते थे कि मुसलमान कभी इस देश का नहीं हो सकता, क्योंकि उसका चिंतन और चरित्र दोनों ही इस देश के साथ समन्वय स्थापित करने के लिए अनुमति नहीं देते। उसकी आस्था काबा में है इसलिए भारत के प्रति वह कभी भी आस्थावान या निष्ठावान नहीं हो सकता। तब ये लोग मजहब के आधार पर इस्लाम को यह कहकर कोसा करते थे कि इसके आक्रमणकारियों ने भारत की संस्कृति और धर्म का सत्यानाश कर दिया। भारत के लोगों को इनके द्वारा तब यह भी समझाया जाता था कि दारुल हरब और दारुल इस्लाम मुसलमानों के डीएनए की मौलिक सोच है।          कहने का अभिप्राय है कि उस समय भाजपा और आरएसएस दोनों ही हिंदू समाज को यह बता रहे थे कि हिंदू और मुसलमान का डीएनए अलग है, पर आज अचानक कुछ दूसरी बात हो गई लगती है । मुसलमान अपने मूलतत्ववाद अर्थात मौलिक चिंतन या मौलिक डीएनए के आधार पर संसार में उपद्रव, उत्पात और उग्रवाद की खेती करते हैं। इसलिए संघ का यह स्पष्ट संदेश और आवाहन रहता था कि भारत को इनसे बचाने के लिए उसे यथाशीघ्र हिंदू राष्ट्र घोषित करना पड़ेगा।
अब उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव 2022 के दृष्टिगत अचानक आरएसएस और भाजपा के नेताओं के स्वरों में बदलाव दिखाई दे रहा है। इसी बदलाव के अंतर्गत आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि हिंदू और मुस्लिम का डीएनए एक है। डीएनए का अभिप्राय यदि मानवतावादी संस्कार से है तो यह कतई नहीं कहा जा सकता है कि हिंदू मुस्लिम का डीएनए एक ही है। दारुल हरब और दारुल इस्लाम के अपने मूलतत्ववाद के वशीभूत होकर इस्लाम को मानने वाले लोग आज भी संसार में उत्पात और उग्रवाद को बढ़ावा दे रहे हैं । भारत भी आजादी के बाद से निरंतर मुस्लिम सांप्रदायिक हिंसा का शिकार होता रहा है, जिसमें केवल और केवल इस्लाम की मौलिक सोच में समाविष्ट वितण्डावाद ही एकमात्र कारण है। इस्लाम के इस सच को मोहन भागवत भली प्रकार जानते हैं। उसके बाद भी वह बिल्ली को देखकर कबूतर की तरह आंख बंद कर रहे हैं तो यह उचित नहीं कहा जा सकता। जो लोग सोए हुए हिंदू समाज की आंखें खोलने का काम कर रहे थे, वही अब स्वयं सोने का काम कर रहे हैं ।जब मुंसिफ ही कातिल हो जाए तो क्या कहा जा सकता है ?

माना जा सकता है कि 2022 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के दृष्टिगत मोहन भागवत का यह बयान कूटनीतिक आधार पर दिया गया बयान है। इस पर हमारा मानना है कि संघ चाहे कितना ही प्रयास कर ले लेकिन कोई भी मुसलमान उसके साथ आकर खड़ा नहीं हो सकता । क्योंकि मुसलमान का किसी भी राष्ट्र इस राष्ट्र की संस्कृति के प्रति कोई लगाव नहीं होता। अंबेडकर जी के शब्दों में उसका भ्रातृत्व भी केवल अपने मुस्लिम भाइयों तक सीमित होता है। गैर मुस्लिमों को बेवफाई नहीं मानता। वह कभी भी हिंदू राष्ट्र या हिंदू विचारधारा या भारतीय राष्ट्र की हिंदूवादी मान्यताओं के प्रति आस्थावान नहीं हो सकता। इसलिए कूटनीतिक जाल उन पर फेंकना किसी भी दृष्टिकोण से वाणी विलास के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं देता। यदि कूटनीति की बात की जाए तो मुसलमान इस समय अपनी कूटनीति में सफल हो रहा है और वह हिन्दू समाज के अंग दलित वर्ग को बहुत तेजी के साथ अपने साथ ले जा रहा है। इस कूटनीति को समझते हुए मोहन भागवत जैसे नेताओं को प्रयास करना चाहिए कि अपने दलित भाइयों को अपने साथ लगाएं और हिंदू एकता के आधार पर सत्ता संचालन का कार्य सुनिश्चित करें। यह ध्यान रहे कि मुसलमानों को दलितों के साथ जाने देने में उनका वर्तमान बयान भी सहायक सिद्ध होगा।

मोहन भागवत जी को यह बात समझनी चाहिए कि इस देश की आम सहमति उनसे किसी प्रकार की ऐसी कूटनीति की अपेक्षा नहीं करता जिसका बुरा प्रभाव भारतीय जनमानस या राष्ट्रवाद पर पड़े । इसके विपरीत भारतीय आम सहमति भारत के इन महान नेताओं से यही अपेक्षा करती है कि वह समान नागरिक संहिता लागू करें, पर्सनल ला की वकालत करने वाले लोगों को कड़ा संदेश दें, इसके साथ ही जनसंख्या नियंत्रण को लाकर इस देश की सत्ता पर अपनी हुकूमत कायम कर ‘हिंदू विनाश’ के सपने संजोने वाले लोगों की मानसिकता को कुचलने का कार्य करें । आरएसएस राष्ट्र निर्माण के लिए है , वह दोगली बातों के आधार पर देश विरोधी शक्तियों को प्रोत्साहित करने वाली सोच से अलग मानी जाती है। निश्चित रूप से उसे अपनी सोच का परिचय देना चाहिए। आरएसएस प्रमुख को कूटनीति अवश्य अपनानी चाहिए लेकिन इस बात का ध्यान रखते हुए कि उससे हिंदू राष्ट्र निर्माण की दिशा में कार्य हो ना कि हिंदू विनाश के लिए आधारशिला रखी जाए। कूटनीति के आधार पर सबको साथ लेकर चलने की बातें कांग्रेस ने करनी आरंभ की थीं. उसका परिणाम क्या निकला ? – तुष्टीकरण । इसी तुष्टीकरण को यदि मोहन भागवत जी अपनी कूटनीति का आधार बना रहे हैं तो देश इसे स्वीकार नहीं करेगा। कूटनीति इसमें नहीं है कि आप दोनों का डीएनए एक बता दें, बल्कि कूटनीति इसमें है कि कुरान की उन 24 आयतों को बड़ी सावधानी के साथ निकालने के लिए मुस्लिमों को तैयार कर लिया जाए जो देश में ही नहीं बल्कि संसार में उग्रवाद और आतंकवाद को बढ़ावा देती हैं। क्या मोहन भागवत जी ऐसा कर पाएंगे?

जिन लोगों ने दीर्घकाल तक भारत में खून खराबा आतंकवाद और सांप्रदायिक हिंसा के माध्यम से लाखों करोड़ों हिंदुओं का कत्ल किया उनका डीएनए कत्लोगारत का डीएनए तो हो सकता है, इंसानियत का डीएनए कभी नहीं हो सकता। जो लोग आज भी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से हिंदुओं को चुन चुन कर भगा रहे हैं, उनकी बहू बेटियों के साथ बलात्कार कर रहे हैं, कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को जिन्होंने भगाने का काम किया है और जो आज भी धारा 370 और 35a को स्थापित करने की मांग कर रहे हैं, उन लोगों का डीएनए भारत के हिंदू समाज के मानवतावादी और उधार डीएनए के समान नहीं हो सकता।
वास्तव में डीएनए एक सोच है, एक कार्यशैली है, एक विचारधारा है, एक संस्कार है। यह सब मिलकर व्यक्ति की जीवन शैली व कार्य व्यवहार का निर्धारण करते हैं ।भारत में इस्लाम के मानने वाले और वैदिक हिंदू धर्म के मानने वाले एक ही मिट्टी से बने होकर भी अपने इन मानवीय गुणों के कारण अपनी विशिष्ट जीवन शैली, कार्य व्यवहार और कार्य योजना को अलग – अलग रखते हुए देखे जाते हैं। जहां हिंदू अपनी उदारता विनम्रता और मानवतावादी सोच के कारण अपने मानवीय संस्कारों को प्रबलता प्रदान करता है ,वहीं कुरान में आस्था रखने वाले मुसलमान कुरान की 24 आयतों से ऊर्जा लेते हुए देखे जाते हैं, जो गैर मुस्लिमों के खिलाफ मुसलमानों को उकसाती हैं और हिंसा करने के लिए प्रेरित करती हैं।
मोहन भागवत जी जैसे बड़े कद के नेता को यह बात पता होगी कि डीएनए व्यक्ति की अंतरंग जगत की गहराइयों में रचने बसने वाली चीज है और अंतरंग जगत में रचने बसने वाली इसी चीज से लोग प्रेरणा और ऊर्जा प्राप्त करके अपने बाहरी जगत के स्वरूप का निर्धारण करते हैं। क्या मोहन भागवत जी हिंदू और मुस्लिम दोनों के डीएनए के एक होने की बात कहकर दोनों समुदाय के लोगों को एक मंच पर एक साथ बैठा कर भारत माता की जय और वंदे मातरम का उद्घोष करा सकते हैं ? यदि नहीं तो उन्हें ऐसी भ्रामक बातों को कहने से पहले 10 बार सोचना चाहिए ।राजनीति और सत्ता ही सब कुछ नहीं है। संघ वैसे भी सत्ता के लिए पैदा नहीं हुआ है। यह एक आंदोलन है ,जो बड़ी से बड़ी ताकत के विरुद्ध आवाज बुलंद करने का हौसला रखता रहा है । इसके इस चरित्र को बदलने का प्रयास यदि कोई मोहन भागवत जैसा नेता करता है तो यह सच में दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने यह भी कहा है कि यह सिद्ध हो चुका है कि हम 40 हजार साल से एक ही पूर्वज के वंशज हैं। उनके ऐसा कहने से कुछ ऐसा आभास होता है कि वह भारत जैसे सत्य सनातन राष्ट्र और सत्य सनातन वैदिक धर्म की अवस्था 40000 वर्ष ही मानते हैं । जबकि यह राष्ट्र करोड़ों वर्ष पुराना है। सृष्टि के प्रारंभ में भी आर्यावर्त था और आज भी है। इस सच को 40000 वर्ष के कालखंड में मोहन भागवत जी ने कैसे समेट दिया ? – कुछ समझ नहीं आया। यह तब और भी अधिक विचारणीय हो जाता है जब संघ प्रतिवर्ष हिंदू नव वर्ष के अवसर पर वैदिक सृष्टि संवत का बार-बार उल्लेख करता है।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

 

 

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