जियाद का भी किया बुरा हाल

सिनान के बाद भारत पर आक्रमणकारी के रूप में जियाद चढ़कर आया। उसे भी अपनी शक्ति और शौर्य पर बड़ा घमंड था। उसे लगता था कि उसके पूर्व के आक्रमणकारी चाहे भारत के शौर्य के सामने न टिक सके हों पर वह भारत के शौर्य और शीश को झुकाकर ही आएगा। यद्यपि जब वह भारत आया तो उसे भी अपनी शक्ति की सीमाओं का शीघ्र ही ज्ञान हो गया। इस आक्रमणकारी का सामना भारत की किसी बड़ी शक्ति से नहीं हुआ, अपितु भारत के वीर जाटों और मेदों ने इस विदेशी आक्रमणकारी का विनाश कर दिया था। इससे पता चलता है कि भारत में यह भी परम्परा रही है कि यदि विदेशी शत्रुओं से स्थानीय प्रजाजन संघर्ष कर उसे भगा सकते हैं तो वह भी राजा की सेना की प्रतीक्षा किए बिना इस शुभ कार्य को करने के लिए स्वतंत्र थे। ऐसे अनेकों उदाहरण है जब राजा की सेना की प्रतीक्षा किए बिना जनसाधारण ने ही विदेशियों को अपनी मातृभूमि से भगाने में सफलता प्राप्त की।

शत्रु हो जो देश का मानो उसको नीच।
उसे छोड़ना पाप है, यही हिंद की रीत।।

भारत के इन योद्धाओं के सामने वह विदेशी आक्रमणकारी टिक नहीं सका और उसे इन योद्धाओं से लड़ते हुए अपने प्राण गंवाने पड़े। विद्वानों का ऐसा कहना है कि उसकी मरे की सूचना भी अपने देश में बहुत देर बाद पहुंच पाई थी। जब जियाद के मारे जाने की सूचना उसके देश में पहुंची तो उसके बेटे को अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने का जुनून चढ़ा। यह लड़का क्रोध से पूर्णतया पागल हो गया था। उस पागलपन में ही उसने यह निर्णय ले लिया कि वह भारत पर चढ़ाई करेगा और अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेगा। अतः उसकी मृत्यु के प्रतिशोध के विचार से प्रेरित होकर उसके बेटे अब्बाद ने भारत पर आक्रमण कर दिया। उसका यह आक्रमण उस क्षेत्र पर किया गया था, जिसे आजकल अफगानिस्तान के नाम से जाना जाता है।
उस समय अफगानिस्तान में वैदिक धर्म का वर्चस्व था। वैदिक धर्मावलम्बी लोग अपने देश और धर्म पर मर मिटना जानते थे। यद्यपि कुछ लोग बौद्ध धर्म स्वीकार कर चुके थे, पर वैदिक धर्म का वर्चस्व होने के कारण वैदिक सनातनी लोगों ने इस विदेशी राक्षस का बड़ी वीरता के साथ सामना किया और इसकी सेना का सर्वनाश कर दिया। युद्ध के इस परिणाम से शत्रु की आंखें खुल गई और उसे वास्तविकता का बोध हो गया।
मुट्ठीभर सैनिकों के साथ युद्ध के मैदान में खड़े होकर हजारों लाखों की संख्या में खड़े शत्रुओं की तलवारों का सामना करना यदि किसी को सीखना है तो वह इन भारतीय योद्धाओं से सीख सकता है। साथ ही इन तलवारों के बीच रहकर भी अपने धर्म का पालन करना अर्थात युद्ध में नियमों का पालन करना भी यदि कोई सीखना चाहता है तो वह भारत के सैनिकों से ही सीख सकता है। हम भारतवासियों को निश्चय ही अपने वीर योद्धाओं के इस प्रकार के वीरतापूर्ण कार्यों पर गौरव की अनुभूति होनी चाहिए। भारत के बारे में हमें यह भी समझना चाहिए कि भारत के वीर योद्धाओं ने देश धर्म की रक्षा के लिए ईंटों की दीवारें खड़ी नहीं कीं। उन्होंने इस कार्य के लिए अपने सीनों की दीवारें खड़ी कीं और यह दीवार भी इतनी मजबूत थी कि एक बार ईंटों की दीवार का गिरना संभव था परंतु भारत के वीरों के सीनों की दीवारों का गिरना सर्वथा असंभव था। इनके लिए बड़े गर्व के साथ कहा जा सकता है कि ये दीवारें कभी नहीं गिरीं। गिरीं तो केवल बलिदान के लिए गिरीं।
वास्तव में भारत के वीर योद्धाओं की कहानियां विश्व के लिए आदर्श बननी चाहिए। इतना ही नहीं, युद्ध के मैदान में भी धर्म का पालन करने की भारत की अद्भुत परंपरा को आज के विश्व समाज को अपनाना चाहिए । आज युद्धों का स्तर बहुत अधिक गिर गया है। आज छल, कपट, धोखा, अत्याचार, अनाचार, पापाचार और बलात्कार इन सब को युद्ध में अपनाया जाता है । इस प्रकार की घृणित सोच विश्व समाज के लिए इस्लाम और ईसाइयत की देन है। नीचता और पाशविकता की प्रतीक इस युद्ध परम्परा को बदलकर भारत की आदर्श युद्ध परंपरा को लागू करना चाहिए।
इस पुस्तक के नायक के रूप में हमने भारत की इंच – इंच भूमि के लिए लड़ने वाले वीर योद्धाओं की लंबी श्रंखला में से एक महानायक राजा दाहिर सेन को चुना है। निश्चय ही समकालीन इतिहास में भारत की स्वाधीनता के महानतम सेनानायक थे। उनसे पहले भी जिन योद्धाओं ने भारत की सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए अपना प्राणोत्सर्ग किया था वह तो अभिनन्दन के पात्र हैं ही राजा दाहिर सेन हमारे लिए इसलिए और भी अधिक अभिनंदनीय हैं कि उन्होंने अपने समय के सबसे बड़े युद्ध में भारत का नेतृत्व किया था। उस युद्ध में वह पराजित योद्धा के रूप में भारत के इतिहास में अमर ख्याति प्राप्त करने में सफल हुए। उनके परिवार के बच्चे – बच्चे ने अपना बलिदान दिया और भारत की सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखने में अपने प्राणों का बलिदान करने में भी हिचक नहीं दिखाई।
जो लोग यह मानते हैं कि भारत के क्षत्रिय राजाओं का इस्लामिक आक्रमणकारियों के समय नैतिक पतन हो गया था या वे राष्ट्रीय सोच के नहीं रहे थे या उनकी तलवारों को अहिंसा की जंग लग गई थी या वे भोगी और विलासी होकर महलों तक सीमित होकर रह गए थे, उनकी इस प्रकार की भ्रांतियों का निवारण इस पुस्तक के अध्ययन से होना निश्चित है। क्योंकि इस पुस्तक में हमने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि हमारे राजा दाहिर सेन और उनके परिजनों ने भारत के लोगों को जगाने और राष्ट्रवाद की भावना को बलवती करने का हरसंभव प्रयास किया था। इतना ही नहीं ,उनके इस प्रकार के प्रयासों को लोगों का हर प्रकार का समर्थन भी प्राप्त हुआ था। यद्यपि कुछ गद्दार उस समय रहे, जिनके कारण हमारी विजय पराजय में परिवर्तित हो गई। इसके पश्चात भी हमारा मानना है कि हमें अपनी विजय के पराजय में परिवर्तित होने पर इतना दुख नहीं मनाना चाहिए जितना इस बात पर गर्व करना चाहिए कि उस पराजय को भी विजय में बदलने वाली राजा दाहिर सेन की दोनों वीरांगना बेटियों ने जो कार्य जाते-जाते किया उससे भारत का बहुत बड़ा लाभ उस समय हुआ था।
पुस्तक प्रकाशन के लिए डायमंड पॉकेट बुक्स के चीज श्री नरेंद्र वर्मा जी का आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने बहुत कम समय में इस पुस्तक को आपके हाथों तक लाने में अपना अमूल्य सहयोग प्रदान किया है। इसके अतिरिक्त पूज्य माता – पिता, ज्येष्ठ श्रेष्ठ भ्राताश्री, परिजन, मित्रगण व बंधु बांधवों के शुभाशीष व हार्दिक शुभकामनाओं का भी ह्रदय से धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ जिनसे इस पुस्तक लेखन का कार्य पूर्ण हो सका। अपनी अर्धांगिनी श्रीमती ऋचा आर्या का भी मैं विशेष आभारी हूं जो मुझे सभी घरेलू दायित्वों से मुक्त रखती हैं और मेरे लेखन कार्य में किसी प्रकार की बाधा कभी नहीं डालतीं।
अन्त में परमपिता परमेश्वर के प्रति हृदय से धन्यवाद ज्ञापित करता हूं जिसकी असीम अनुकम्पा से मेरे लेखन का यह कार्य निरंतर आगे बढ़ रहा है और आप सब का आशीर्वाद मुझे प्राप्त हो रहा है।
सुबुद्ध पाठकवृन्द ! आशा करता हूँ कि इस पुस्तक के रूप में मेरा यह प्रयास आपको निश्चय ही सार्थक लगेगा और आपका आशीर्वाद पूर्व की भाँति मुझे निश्चय ही प्राप्त होगा।

भवदीय

डॉ राकेश कुमार आर्य
अंसल गोल्फ लिंक -2,
मकान नंबर सीई 121
ग्रेटर नोएडा गौतमबुद्ध नगर उत्तर प्रदेश
चलभाष – 9911169917
पिन कोड – 201306

(हमारी यह लेख माला मेरी पुस्तक “राष्ट्र नायक राजा दाहिर सेन” से ली गई है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा हाल ही में प्रकाशित की गई है। जिसका मूल्य ₹175 है । इसे आप सीधे हमसे या प्रकाशक महोदय से प्राप्त कर सकते हैं । प्रकाशक का नंबर 011 – 4071 2200 है ।इस पुस्तक के किसी भी अंश का उद्धरण बिना लेखक की अनुमति के लिया जाना दंडनीय अपराध है।)

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