रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर प्रशांत भूषण का विधवा विलाप

देश के धर्मनिरपेक्ष दल और उन्हीं के सुर में सुर मिलाकर अपनी तथाकथित विद्वता का प्रदर्शन करते कुछ ‘फ्रेंच कट’ दाढ़ी वाले विद्वान देश की चिंता ना करके देश विरोधियों और देशद्रोहियों के समर्थन में गाहे-बगाहे आते रहते हैं, जो किसी न किसी प्रकार से देश के लिए समस्या बने रहते हैं । अब रोहिंग्या मुसलमानों के समर्थन में भी ऐसे ही धर्मनिरपेक्ष और तथाकथित बुद्धिजीवी आगे आकर मानवता का राग अलापने लगे हैं । इन तथाकथित मानवतावादी विद्वानों को आतंकवादियों के द्वारा देश को तोड़ने की गतिविधियां कभी भी अनुचित नहीं लगतीं और ना ही इन लोगों के द्वारा आतंकवाद के माध्यम से देश के लोगों को परेशान करने या उनके जीवन में किसी न किसी प्रकार का व्यवधान डालने वालों की गतिविधियों ही चुभती हैं।
कौन-कौन है पिताजी क्या नाम है
इस संबंध में वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से विगत 11 मार्च को एक याचिका दायर की गई है। जिसमें प्रशांत भूषण ने देश को धर्मशाला समझकर आ बसे रोहिंग्याओं के लिए घड़ियाली आंसू बहाने का काम किया है। याचिका के अनुसार भारत में शरणार्थियों के लिए कानून न होने से रोहिंग्याओं को अवैध प्रवासी माना जाता है, जिन्हें फॉरेनर्स एक्ट 1946 और फॉरेनर्स ऑर्डर 1948 के तहत कभी भी भेजा जा सकता है। इस याचिका में यह भी कहा गया है कि मुस्लिम पहचान की वजह से सरकार रोहिंग्या के साथ भेदभाव करती है।
प्रशांत भूषण जैसे लोग ऐसा काम केवल मीडिया में सुर्खियां बटोरने के लिए करते रहते हैं। वैसे भारत में मीडिया के लोग यह जानकर भी कि ऐसे व्यक्ति इन कामों को क्यों कर रहे हैं ? – उन्हें भाव देते रहते हैं। इतना ही नहीं ,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में तो इन्हें बड़े-बड़े टीवी चैनल अपने यहाँ पर बुलाकर खूब प्रचार-प्रसार दे देते हैं। मीडिया धर्म गलत लोगों को प्रचारित प्रसारित करना नहीं है, बल्कि गलत लोगों की गलत बातों को लोगों के सामने लाना है। जिससे ऐसे लोगों के विरुद्ध नकारात्मक परिवेश बने और लोग इन देशद्रोही लोगों के समर्थन करने वाले तथाकथित विद्वानों को नकारें।
इस याचिका में प्रशांत भूषण ने जम्मू में हिरासत में लिए गए अवैध रोहिंग्या प्रवासियों को रिहा करने के लिए तत्काल हस्तक्षेप की माँग की है। बताया गया है कि यह जनहित याचिका भारत में रह रहे अवैध प्रवासियों (याचिका की भाषा में शरणार्थी) को प्रत्यर्पित करने से बचाने के लिए दायर की गई है। यह भी कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के साथ ही अनुच्छेद 51 (सी) के तहत प्राप्‍त अधिकारों की रक्षा के लिए यह याचिका दाखिल की गई है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना की गई है कि वह संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त को इस विषय में हस्तक्षेप करने के निर्देश जारी करें। साथ ही शिविरों में रखे गए रोहिंग्याओं की सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने की माँग की गई है।
देश की सामाजिक और जनसांख्यिकीय स्थिति को गड़बड़ करने वाले इन लोगों के लिए प्रशांत भूषण जैसे लोगों के दिल में बार-बार यह प्रेम क्यों उमड़ता है? क्यों ये लोग ऐसे लोगों को देश में बसाए रखना चाहते हैं जो आज नहीं तो कल देश के लिए समस्या बनेंगे ? पूर्व के अनुभवों की ओर भी इनकी नजरें क्यों नहीं जातीं जब देश के किसी न किसी कोने में ऐसे लोगों को मानवता के आधार पर बसाया गया और बाद में वे देश के लिए समस्या बने। इसके अतिरिक्त एक सत्य और है कि किसी भी रोहिंग्या मुसलमान को कोई भी मुस्लिम देश अपने यहां क्यों नहीं बुलाता ? प्रशांत भूषण और उन जैसे लोगों ने भारत को सराय मान दिया लगता है। जहां पर कोई भी आए और आराम से रहने लगे । यह याचिका रोहिंग्या मोहम्मद सलीमुल्ला  की ओर से दायर की गई है और एडवोकेट चेरिल डीसूजा ने इसे तैयार किया है।
भारत के बारे में यह सत्य है कि यह देश प्राचीन काल से ही उदार और मानवतावादी रहा है, परंतु इसका अभिप्राय कदापि यह नहीं है कि भारत अपने हितों को दांव पर रखकर या अपने गले में फांसी का फंदा डालकर भी दूसरों के लिए रास्ते देना उचित मानता है ? यदि भारत की उदारता और मानवतावादी स्रोत का अर्थ यही है तो इसे तो भारत की नादानी कहा जाएगा। राष्ट्रीय दृष्टिकोण से सोचने पर पता चलता है कि जब जब हमने अपने गले में फंदा डालकर दूसरों की प्राण रक्षा की है तब तब हमें राष्ट्रीय हानि उठानी पड़ी है। कभी जम्मू कश्मीर में एक भी मुसलमान नहीं था लेकिन सूफी मुसलमानों के भेष में तेरहवीं शताब्दी के मध्य में जब मुसलमानों ने वहां आना आरंभ किया तो उदारता बरतते हुए उनको वहां बसाने के लिए प्रशांत भूषण जैसे लोग उस समय भी उठ खड़े हुए थे। उनकी गलती का खामियाजा देश ने 1989 में उस समय भुगता जब तथाकथित अतिथियों ने ही मूल निवासियों अर्थात कश्मीरी पंडितों से कह दिया कि तुम यहां से भागो, क्योंकि कश्मीर हमारा है।
याचिका में कहा गया है कि एक सरकारी सर्कुलर की वजह से रोहिंग्या खतरे का सामना करना पड़ रहा है। यह सर्कुलर अवैध रोहिंग्या प्रवासियों की पहचान का निर्देश अधिकारियों को निर्देश देता है। शीर्ष अदालत में लंबित एक मामले में हस्तक्षेप अर्जी दायर कर गृह मंत्रालय को निर्देश देने का आग्रह किया है कि वह अनौपचारिक शिविरों में रह रहे रोहिंग्याओं के लिए विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (एफआरआरओ) के जरिए तीव्र गति से शरणार्थी पहचान-पत्र जारी करें।
एक समय वह भी था जब आज के पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान और इराक तक ही नहीं बल्कि अरब में भी हिंदुओं का राज्य स्थापित था। धीरे धीरे वहां से यह आज के ‘रोहिंग्या’ एक आक्रमणकारी के रूप में भारत की ओर बढ़ने आरंभ हुए ।अपने राष्ट्र धर्म का निर्वाह करते हुए राजा नागभट्ट प्रथम, नागभट्ट द्वितीय और गुर्जर सम्राट मिहिर भोज जैसे राष्ट्रभक्त शासकों ने इन रोहिंग्याओं को उस समय भारत की सीमा में घुसने नहीं दिया था और समय-समय पर इन्हें खदेड़ कर भगाते रहे थे। कालांतर में जब केंद्रीय सत्ता कमजोर हुई तो ये ‘रोहिंग्या’ भारत के भू भाग पर बसने में सफल होने लगे। उसका परिणाम भी हमने देख लिया कि ये सारे देश समय विशेष पर हमसे अलग होते चले गए। जम्मू कश्मीर के जम्मू संभाग में इन रोहिंग्याओं को बसाने का उद्देश्य वहां के जनसंख्याकीय आंकड़े को बिगाड़ कर जम्मू कश्मीर की विधानसभा में जम्मू के हिंदू प्रतिनिधित्व को मिटाकर मुस्लिम कर देना है। आज यदि इन रोहिंग्या मुसलमानों के विरुद्ध कठोर कदम उठाने के लिए केंद्र सरकार और विशेष रूप से अमितशाह सक्रिय हुए हैं तो इस दृष्टिकोण से केंद्र सरकार के इस निर्णय का जितना अभिनंदन किया जाए उतना कम है।
हमें यह समझ लेना चाहिए कि इतिहास आंखों पर पट्टी बांधकर पढ़ने का विषय नहीं है ,बल्कि आंखों पर पड़ी पट्टी को खोलकर पढ़ने और घटनाओं को हृदयंगम करने के दृष्टिकोण से पढ़ना चाहिए। यदि किन्हीं मूर्खताओं से हमें बीते हुए कल में रोना पड़ा था तो हम आज वह गलती ना करें जिससे आने वाले कल में हमारे बच्चों को या हमारी पीढ़ियों को रोना पड़े। मानवता और उदारता के नाम पर देश के साथ गद्दारी करने वाले लोगों से हमें सावधान रहना चाहिए, जो किसी न किसी रूप में देश विरोधी शक्तियों का तो समर्थन करते रहते हैं या उन्हें भारत में बसाने की मूर्खतापूर्ण मांग करते रहते हैं।
हमें ध्यान रखना चाहिए कि जिस समय राजा दाहिर सेन देश के प्रति अपने कर्तव्य धर्म को निभाते हुए विदेशी राक्षस आक्रमणकारी मोहम्मद बिन कासिम को भगाने का हर संभव प्रयास कर रहे थे, तब प्रशांत भूषण के ‘पूर्वज’ भी इसी रूप में सक्रिय थे जिसमें आज प्रशांत भूषण स्वयं सक्रिय हैं । तब वे लोग गद्दार बुद्धज्ञान और मोक्षवासव के नाम से इन लोगों की तरफदारी कर रहे थे। देश के साथ गद्दारी करते हुए बुद्धज्ञान और मोक्षवासव ने उस समय यही तर्क दिया था कि हमें अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए मानवतावादी सोच का प्रदर्शन करना चाहिए और जो विदेशी यहां पर आ रहे हैं उन्हें बसने दिया जाए। उसका परिणाम यह हुआ कि हमारे राजा दाहिर सेन को अपना और अपने परिवार का बलिदान देना पड़ा।
गद्दारों ने गद्दारी की और हमारे राजा को जबरन करवाया।
हमने जिन ‘ज्ञानबुद्धों’ और ‘मोक्षवासवों’ के माध्यम से अतीत में धोखे खाए हैं उन्हीं धोखों को आज के प्रशांत भूषण खिलाने की तैयारी कर रहे हैं। हमें समझ लेना चाहिए कि भूमिका के पात्र मात्र बदले हैं। भूमिकाएं वही हैं। हथकंडे, झंडे, एजेंडे, डंडे सब कुछ वही हैं, चेहरों के परिवर्तन मात्र हुए हैं। तभी तो यह लोग रोहिंग्याओं के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने में देर नहीं कर रहे । प्रशांत भूषण वही वकील हैं जिन्होंने आतंकवादियों की फांसी रुकवाने के लिए आधी रात में जाकर भारत के सर्वोच्च न्यायालय को खुलवा दिया था ।
अब हमें इतिहास के संदर्भ को भी संज्ञान में लेकर अपने न्याय व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करना चाहिए। इतिहास के संदर्भ, इतिहास की वे घटनाएं जिन्होंने हमें अतीत में कष्ट दिया है ,आज के न्याय का आधार बननी चाहिए । राष्ट्रीय संदर्भ में हमें किसी भी प्रकार की उदारता या लचीलेपन का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए।
अंत में हम यही कहेंगे कि प्रशांत भूषण रोहिंग्या मुस्लिमों के लिए विधवा विलाप बंद करें। उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि मोहम्मद बिन कासिम के समय से लेकर आज तक जो लोग केवल और केवल भारत को इस्लामीकरण के रंग में रंगने के कार्यों में लगे रहे हैं या लगे हुए हैं या भारत के हिंदू स्वरूप को मिटाने की गतिविधियों में संलिप्त हैं उनका समर्थन करना देश के साथ गद्दारी है।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

Comment: