क्या आप भी सच मानते हैं इस वामपंथी झूठ को ?

आप भी इस वामपंथी झूठ को शायद सच मान रहे हैं ।

किस झूठ की बात हो रही है यह सवाल है तो बता दूँ कि अगर आप दृढ़ता से मानते हैं कि जातियों में बंटनेके कारण हिन्दू विधर्मियों से हार रहा है तो यह मक्कार वामिस्लामियों का फैलाया हुआ झूठ है । वैसे भी झूठ ही जिनकी विचारधाराओं का आधार है उनसे सच की अपेक्षा ही क्या करना ?

चलिये ज़रा इतिहास में चलते हैं और बात वहीं लड़ाइयों की करते हैं जो इस्लाम से लड़ी गयी थी । जातियाँ तब भी थी, फिर भी वे लड़ाइयाँ जीती गयी थी । उदाहरण तो कई निकलेंगे और लंबे समय के निकलेंगे, फिर भी एक ही उदाहरण देता हूँ और उसका कारण भी स्पष्ट किए देता हूँ । बाकी उदाहरण आप अपनी स्मृतियों से कमेंट्स में अवश्य दीजिये ।

यहाँ उदाहरण देता हूँ पेशवाई का । बाजीराव प्रथम से माधवराव प्रथम तक । 1720 से 1772 तक । कहाँ तक तलवार चली उस दौर में मराठा साम्राज्य की ? और क्या फौज में सभी ब्राह्मण थे सेनापति से सिपाही तक ? सभी जाति के लोग थे । कितने बाहरी खून के लुटेरे अश्रफ मुसलमान सत्ताधारियों को हराया, ज़रा गिनेंगे ? अटकपार भगवा झण्डा ले जाने के लिए रघुनाथराव पेशवा कि राघो भरारी नाम मिला था, क्या कपड़ों में झण्डा छुपाकर लुकछिपकर पैदल गए थे ?

यहाँ केवल पेशवाई का नाम मैंने इसलिए लिया क्योंकि पेशवा ब्राह्मण थे और वामियों का सब से अधिक गरल ब्राह्मणों को ही जातिवाद के लिए दोषी साबित करने के लिए उँड़ेला जाता है । फिर ये विजय की इतनी गौरवशाली परंपरा कैसी ? बाकी कोई कारण या अभिमान नहीं, मुझे उस हर हिन्दू शासक पर उतना ही अभिमान है जिसने भी लुटेरे बाहरी खून के मुसलमानों को धूल चटाई हो । कोई अपवाद नहीं । पासी राजा सुहेलदेव पर भी मुझे उतना ही अभिमान है ।

और हाँ, कृपया यह न कहिए कि बाबर ने सुना कि हिन्दू फौज में अलग चूल्हे जल रहे हैं तो वह खुश हुआ ….. यह कहानी बाबर, खिलजी, अकबर और औरंगजेब के नामों पर भी सुन चुका हूँ । ये कहानी उतनी ही विश्वसनीय है जितना JRD टाटा के नाम का ट्वीट जो लंबी कहानी सुनाता है कि जर्मनी में खाना वेस्ट नहीं किया जाता ।

हार के कारण जाति में कम, आर्थिक स्रोत तोड़ने में अधिक मिलेंगे । फतवा ए अलमगिरी अगर अनुवादित होगी तो मियां उबासी के पाकिस्तान परस्त रज़ाकार मिमियों को मुंह छुपाने को जगह नहीं मिलेगी हमारे हिन्दू दलित बंधुओं के सामने । उनके साथ हमारे हिन्दू दलित बंधु ही ‘पोलो’ खेलेंगे ।

वैसे जातिवाद के लिए एक तरह से ब्राह्मणों को दोष देना है तो सकारण है, लेकिन ये ब्राह्मण हैं तो कौन हैं ? ये वही वामपंथ के हाथों बिके टुकड़ाखोर प्रजाति है जिसे बीफ भक्षण में भी गर्व महसूस होता है । यह जातिवाद का झूठ इन शुक्राचार्य के स्खलित शुक्राणुओं ने ही फैलाया है । बंगाल के बिकाश भट्टाचार्य, BE को भूल गए ? BE याने Beef Eater, कोई इंजीनियर नहीं । बाकियों के नाम लेने से बच रहा हूँ क्योंकि उन नामों के हिन्दू मित्र भी हैं ।

वृथा अभिमान न पालें, इतना ही काफी है । एक दूसरे की सहायता करें, हर कोई बाबा भारती को ठगने निकला खरक सिंह नहीं होता । जो यह झुनझुना बजाए उसे सीधा पूछिये, क्या तकलीफ हुई है आप को इस वजह से ? अक्सर बात बेवजह ही निकलेगी या फिर असमर्थनीय निकलेगी ।

बाकी वामपंथी होने पर कोई सम्मानयोग्य नहीं । उन्हें हिंदुओं में भी नहीं गिनना चाहिए । समाज द्वारा उनका बहिष्कार नहीं किया गया यह हमारी सब से बड़ी भूल हुई है ।

इस झूठ को अधिकतर हिन्दू सच मानते हैं । हज़ार बार बोलने से झूठ सच माना जाता है यह वामी सिद्धान्त है ही । यह तो लाखो बार बोला जाता है।
✍🏻आनंद राजाध्यक्ष

Comment: