विश्‍व का सबसे बड़ा आतंकी अमेरिका है

भारत के पड़ोस के पाकिस्तान, और उसके बगल के इराक, अफगानिस्तान जैसे मुस्लिम देशों में इस्लामी आतंक आसमान पर पहुंचा हुआ है। मजहब के नाम पर वहां के आतंकी दस्ते खुद भी जान दे रहे हैं, और फौज से लेकर पुलिस तक, पोलियो ड्रॉप्स देने वाले स्वास्थ्य कर्मचारियों से लेकर आतंकविरोधी आम नागरिकों तक, सब पर बुरी तरह हमले हो रहे हैं, सैकड़ों लोग आए दिन मारे जा रहे हैं, और हमारे जैसे अखबारनवीसों के लिए कई बार यह दिक्कत आ खड़ी होती है कि किस खबर के साथ तबाही की कौन सी तस्वीर ताजा है, और कौन सी तस्वीर दो-तीन दिन पहले की बासी तस्वीर है। ऐसे में खबर और तस्वीर को मिलाकर छापने में चूक होने का खतरा भी रहता है।

मौत का यह मंजर भयानक है, और अधिक भयानक यह इसलिए है कि इसके पीछे जो लोग हैं वो मजहब का नाम लेकर, खुदा के नाम पर यह सब कर रहे हैं। इन पर पाकिस्तान में पिछले दो-तीन दिनों में फौजी कार्रवाई शुरू हुई है, लेकिन इसमें इतने बरस देर हो चुकी है, कि हालात बहुत बुरी तरह बेकाबू हैं। दूसरी तरफ इराक में अमरीका फिर फौजी कार्रवाई की सोच रहा है, क्योंकि वहां पर आतंकी दस्ते राजधानी के करीब तक पहुंच रहे हैं, सैकड़ों लोगों को उन्होंने एक साथ बांधकर गोलियों से भून डाला है, और स्थानीय सरकार के काबू में कुछ भी नहीं रह गया है।

लेकिन हाल के दो-चार बरसों के पहले के इतिहास को थोड़ा सा जानने-समझने वाले लोगों को अच्छी तरह याद है कि किस तरह पाकिस्तान, अफगानिस्तान में, और बाकी अरब देशों में भी जगह-जगह अमरीका ने खुलकर कट्टरपंथियों का, हिंसक आतंकियों का साथ दिया, और वह खुद दुनिया में उनका खासा बड़ा शिकार भी हो गया।

कट्टरपंथ को बढ़ावा देते-देते अमरीका ने पूरी दुनिया में सामाजिक सुधार की संभावनाओं को कत्ल भी कर दिया और ईरान से लेकर अफगानिस्तान तक, और टर्की तक बहुत से देश इसके गवाह हैं जहां पर चौथाई या आधी सदी पहले समाज बहुत उदार था, और आज वहां पर कट्टरपंथ ने समाज की सोच को पत्थरयुग में भेजने का काम किया है।

अमरीका ने एक तरफ तो सोवियत वामपंथ को खदेडऩे के लिए, दूसरी तरफ तेल के कुंओं वाले देशों पर कब्जा करने के लिए, और तीसरी तरफ चीन-भारत के करीब अपने फौजी अड्डे बढ़ाने के लिए इन तमाम देशों ने खुफिया दखल दी, फौजी दखल दी, और बागियों को बढ़ावा दिया।नतीजा यह है कि यह पूरा इलाका अमरीकी साजिश से उबर ही नहीं पाया, और यहां की सरकारें अमरीकी मदद की मोहताज होती चली गईं, और दूसरी तरफ अमरीकी हमलों के सामने उनके पास मुंह खोलने की ताकत भी नहीं बची। अमरीका ने पिछले दस बरसों में दस लाख से अधिक लोगों को अपनी बमबारी और फौजी कार्रवाई से पाकिस्तान, इराक, अफगानिस्तान में मार डाला है, और दूसरी तरफ फिलीस्तीनियों पर जुल्म जारी रखने के लिए अमरीका हर दिन लाखों अमरीकी डॉलर इजराईल को दे रहा है।
दुनिया का सबसे ताकतवर माफिया बना हुआ है अमरीका जिस मजहबी साजिश को आगे बढ़ाना चाहता था, वह उसमें कामयाब हुआ है, और अमरीकी सरकार के साथ मिलकर दुनिया के हथियारों के सौदागर अपनी ग्राहकी इन देशों में बढ़ा रहे हैं, सरकारें उनसे सीधे खरीद रही है, और हथियारबंद बागी अमरीकी सरकार के पैसों से हथियार पा रहे हैं।

सीरिया और इजिप्ट तक यह तबाही फैल चुकी है, और दूसरी तरफ देखें तो अफ्रीका में नाइजीरिया में इस्लाम के नाम पर बोकोहराम जैसे भयानक धर्मान्ध हथियारबंद मुजरिम बच्चियों को अगुवा करके उनसे बलात्कार कर रहे हैं, और अमरीका वहां पर फौजी दखल देने के लिए जमीन तैयार करने में लगा हुआ है। आज पूरी दुनिया का माहौल बहुत साफ-साफ इस तरह का दिखता है कि बाकी देश कब तक या तो अमरीकी गिरोह में शामिल होने से बचते हैं, या उसकी बमबारी से बचते हैं, या उसके बढ़ाए हुए बागियों के खड़े किए हुए गृहयुद्ध से बचते हैं। अमरीका से बचना अब बाकी दुनिया के लिए मुमकिन नहीं दिख रहा है, और लोगों के सामने यह विकल्प बहुत साफ है कि या तो ब्रिटेन और योरप के दूसरे देशों की तरह उसके गिरोह में शामिल हों, या फिर उसके बम झेलने के लिए तैयार रहें।

लोकतंत्र के नाम पर जो अमरीकी पाखंड चलता है, उसमें अमरीका दुनिया का अकेला तानाशाह बनकर रहना चाहता है, और उसे वह लोकतंत्र और मानवाधिकार साबित करता है। इसके साथ-साथ अमरीका ने जिस तरह इस्लाम को बुरा दिखाने, और हिंसक साबित करके बदनाम करने की साजिश की है, वह भी बहुत जाहिर है, और इससे बचने का दुनिया के पास कोई रास्ता भी नहीं दिख रहा है।

सुनील कुमार
संपादक
दैनिक छत्तीसगढ़

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