पेरिस की घटना से मिला संकेत : इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध दुनिया कमर कस चुकी है

 

पेरिस में एक शिक्षक की गला काटकर जिस प्रकार हत्या की गई और उसके पश्चात फ्रांस सरकार ने इस्लामिक आतंकवाद और आतंकवादियों के विरुद्ध जिस प्रकार के कड़े तेवर दिखाए हैं, उससे विश्व राजनीति में भूचाल आ गया है । इस्लामिक आतंकवाद के इतिहास में यह कोई नई घटना नहीं थी कि जब उसने किसी व्यक्ति की इस प्रकार क्रूरतापूर्वक हत्या की हो और फ्रांस के लिए भी यह कोई नया अनुभव नहीं था । परंतु सारा विश्व ही इस्लामिक आतंकवाद से जिस प्रकार कराह रहा है उसके दृष्टिगत अब चारों ओर से ‘मारो मारो’ की आवाज आने लगी है । अब ‘त्राहिमाम त्राहिमाम’ नहीं हो रही है बल्कि जिन लोगों के कारण ‘त्राहिमाम’ का शोर मच रहा था अब उन्हीं के सफाए की आवाज उठने लगी है। यह बहुत बड़ा परिवर्तन है, जिसे हम वैश्विक स्तर पर होता हुआ देख रहे हैं ।


ऐसा भी संभव है कि देर सवेर इस्लामिक आतंकवाद ही तीसरे विश्वयुद्ध में परिवर्तित हो जाए। अपनी इसी प्रकार की हरकतों को इस्लामिक आतंकवादियों ने कश्मीर में भी प्रकट किया है । जहां उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के तीन नेताओं को मौत के घाट उतार दिया है।
वास्तव में कम्युनिस्टों, कांग्रेसियों और सेकुलर लोगों ने भारत में इस्लाम को शांति का मजहब दिखाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है । परंतु सच यह है कि शांति के इस मजहब ने विश्व को आतंकवादियों ,लुटेरों और हत्यारों की एक लंबी श्रंखला दी है। जितने भी इस्लामिक बादशाह हुए हैं उन सबने खून की होली खेली हैं और आज भी उन बादशाहों को अपना आदर्श मानने वाले लोग उन जालिमों के द्वारा खेली गई खून की होलियों का गुणगान ऐसे करते हैं कि जैसे उन्होंने बहुत बड़ा काम किया है ? मानवता के हत्यारे होकर भी तथाकथित छद्म इतिहासकारों ने इनके जिस प्रकार गुणगान किए हैं उससे वर्तमान आतंकवादी प्रेरणा ग्रहण करते हैं। उन्हें लगता है कि जब तुम्हारे खून बहाने वाले पूर्वज आज महिमामंडित हो सकते हैं तो आने वाले कल में तुम भी इसी प्रकार महिमामंडित होओगे। इससे पता चलता है कि इतिहास की गलत व्याख्या और परिभाषा मानवता को किस प्रकार खून के आंसू रोने के लिए बाध्य कर देती है?
इस्लामिक जगत में कहीं भी शांति नहीं है । यदि इसे यूँ कहें कि आज भूमंडल पर इस्लाम के कारण कहीं भी शांति नहीं है तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। सारे भूमंडल पर एकछत्र इस्लामिक साम्राज्य का सपना साकार होते देखना इस अशांति के पीछे का मुख्य कारण है । इतना ही नहीं , ईसाइयत भी यही सपने देखती है कि सारे संसार में केवल ईसा का ही नाम दिखाई दे । इन दोनों की टक्कर में मानवता चाहे कितनी कराह ले और चाहे कितना ही उसका खून बह जाए – इन पर इस बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
आजादी के बाद के भारत के नेतृत्व ने इस्लाम और ईसाइयत की इस सच्चाई को समझकर भी इस ओर से आंखें मूंदे रखने का राष्ट्रघाती पाप किया । अब यह हमारे लिए बहुत ही प्रसन्नता का विषय है कि मोदी सरकार सच को सच के रूप में देख रही है और उसी रूप में उसे प्रस्तुत भी कर रही है। यह बहुत बड़ी बात है कि वर्तमान भारतीय नेतृत्व फ्रांस में हुई घटना के साथ आतंकवादियों के साथ खड़ा न होकर वहां की सरकार के साथ खड़ा है । सचमुच यह किसी मोदी के द्वारा ही संभव है कि वह अन्याय करने वाले का साथ न देकर उस व्यक्ति का साथ दे रहा है जो अन्याय से लड़ रहा है । अभी तक की कांग्रेसी सरकारें मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते अन्याय का साथ देती हुई दिखाई देती थीं। अपनी इसी मूर्खतापूर्ण नीति के कारण कर्नल पठानिया जैसे महायोद्धा और देशभक्त सैन्य अधिकारी को भी तत्कालीन मनमोहन सरकार ने इसलिए उत्पीड़ित किया था कि उसने आतंकवादियों का सफाया करने का उत्कृष्ट कार्य किया था।
पर अब बहुत कुछ बदल चुका है। अब किसी भी कर्नल पठानिया का उत्पीड़न ना होकर उसका प्रोत्साहन होता है । जिससे हमारे सैन्यबलों का मनोबल देखते ही बनता है । यद्यपि इस समय भी बहुत कुछ किया जाना शेष है । जैसे हम चाहेंगे कि निकिता जैसी इस्लामिक लव जिहाद की शिकार धर्म भक्त बेटियों को ‘रानी पद्मिनी वीरांगना पुरस्कार’ से और ईसाई पादरियों या मिशनरियों की शिकार बेटियों को ‘रानी लक्ष्मीबाई वीरांगना पुरस्कार’ से सम्मानित किया जाए। यदि हमारा कोई युवा इस्लामिक आतंकवाद की भेंट चढ़ता है तो उसे ‘पृथ्वीराज चौहान पुरस्कार’ से सम्मानित किया जाए।
इस समय की परिस्थितियां बता रही हैं कि विश्व तेजी से तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ रहा है। इस्लामिक आतंकवाद अब अपने अंतिम चरण में प्रवेश कर चुका है। जहां इसका सफाया होना निश्चित है। आप तनिक कल्पना करें कि 1400 वर्ष पहले जो मजहब अरब की शुष्क रेत में जन्मा था, उसने विश्व के कितने बड़े हिस्से को अपनी गिरफ्त में ले लिया है? इसके तूफान ने कितने लोगों के घर उजाड़ दिये हैं, और इसकी नंगी तलवारों ने कितने लोगों का खून पिया है ? यदि इतिहास की निष्पक्ष जुबान से इसका ब्यौरा लिया जाने लगे तो लज्जा को भी लज्जा आ जाएगी । भारतीय संस्कृति की यह मान्यता है कि जो किया है उसका फल अवश्य मिलेगा , तो क्या वर्तमान परिस्थितियां इस्लाम को अपने किये का फल देने का संकेत नहीं कर रही हैं ? अब जब इसका ‘कुनबा’ बहुत बड़ा हो गया है, तब चारों ओर इसके कुनबे में आग लगी होने का अर्थ केवल यही है कि अब यह अपने जुल्मोसितम का फल पाने की तैयारी में है।
ईंन सबके चलते हमे5 नहीं लगता कि महबूबा मुफ्ती और अब्दुल्ला परिवार जम्मू कश्मीर में धारा 370 वापिस ला पाएंगे। वह जो कुछ भी कर रहे हैं केवल हताशा और निराशा के भाव में कर रहे हैं । उन्हें केवल अपनी राजनीति बचानी है और अपने आपको कहीं सुर्खियों में दिखाते रहना है। इसके अतिरिक्त वह कुछ नहीं कर पाएंगे।
यहां तक कि देश के अन्य धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल चाहकर भी उनकी सहायता नहीं कर पाएंगे, क्योंकि 5 अगस्त 2019 को जब धारा 370 संविधान से हटाई गई थी , अब उस घटना को बीते बहुत समय हो चुका है और तब से लेकर अब तक गंगा – यमुना में बहुत सा पानी बह चुका है। देश के सभी छद्म धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल अब यह भली प्रकार जानते हैं कि यदि उनमें से किसी ने धारा 370 को वापस लाने की वकालत की तो देश की जनता उनका क्या हाल बनाएगी ? अतः हमारा मानना है कि धारा 370 का शोर राजनीतिक गलियारों में चाहे सुनाई देता रहे ,लेकिन अब यह कभी संविधान के पृष्ठों पर नहीं आ पाएगी।
हमें यह समझ लेना चाहिए कि पेरिस और कश्मीर में जो कुछ हो रहा है उसे इस्लाम का मूलतत्ववाद अथवा फंडामेंटलिज्म ही भोजन पानी की आपूर्ति करता है। इस मूलतत्ववाद के चलते ‘काफिर और कुफ्र’ की अवधारणा हर उस तथाकथित सच्चे मुसलमान को हथियार उठाने के लिए प्रेरित करती है जो इनमें गहराई से विश्वास रखता है।
इस्लाम ने भारत की धरती पर आकर भारत से ही भोजन पानी लिया और फिर यहां की ही हवाओं को खराब करना आरंभ किया। एक देश के कई टुकड़े किए । उसने यही खेल दूसरे देशों में भी खेला है। यदि बात फ्रांस की करें तो वहां भी जो लोग कभी शरणार्थी के रूप में गए थे अर्थात जो वहां के टुकड़ों पर पल रहे थे, उन्होंने ही समय आने पर वहां के लोगों को आंखे दिखानी आरंभ कर दीं। अब यूरोप के वे देश इस्लाम के सच को समझ रहे हैं जो कभी भारत जैसे देशों की बातों को अनसुना किया करते थे और इस्लामिक कट्टरता को समझने का प्रयास नहीं करते थे। अब उन्हें गुरु गोविंद सिंह जी का यह कथन भी समझ में आने लगा है कि इस्लाम को मानने वाला व्यक्ति चाहे जितनी बार आपका होने की कसम खा ले परंतु उसकी बातों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए अर्थात वह कभी आपका नहीं हो सकता।
हमारी जिन बहन बेटियों को ‘लव जिहाद’ के नाम पर फंसाया जा रहा है और फंसाने के बाद जिस प्रकार उनकी हत्याएं हो रही हैं, उनके अनेकों उदाहरण हमारी इस बात को सत्यापित करते हैं । क्योंकि उन्हें भी बहला-फुसलाकर और उनका होने की कसमें खाकर ही कोई मुस्लिम युवा अपने साथ लेकर जाता है।
भारत में मोदी सरकार ने आतंकवाद से लड़ने की अपनी परंपरागत नीति में परिवर्तन किया है। अब से पूर्व की कांग्रेसी सरकारें आतंकवादियों के वित्तपोषक के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं करती थीं । इतना ही नहीं, कितने ही आतंकवादियों को तो वीआईपी सुविधाएं देकर उन्हें पाला व पोसा जाता था। परंतु अब ऐसे लोगों को भी आतंकवादी ही माना जा रहा है जो भारत की सरकार से सुविधाएं पाकर कहीं ना कहीं आतंकवादियों को समर्थन देते हुए दिखाई देते हैं । इस दृष्टिकोण से अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार भी एक आतंकवादी और देशद्रोही परिवार की श्रेणी में खड़ा हो चुके हैं । इनके विषय में कश्मीर के मुस्लिम लोगों का भी दृष्टिकोण बदल चुका है।
आतंकवादियों के लिए मानव अधिकारों के नाम पर अपनी ओर से बयान जारी करने वाले लोगों में इस समय हताशा का भाव है। वह अब सोच समझकर बोलने लगे हैं । नहीं तो यही लोग होते थे जो आतंकवादियों के भी मानव होने के नाम पर उनके बचाव में उतर आते थे और इस प्रकार एक उस असहाय व्यक्ति की आवाज को हम सुनकर भी सुन नहीं पाते थे जो इन दानवों की दानवता का शिकार होता था। अब मोदी सरकार ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए ) के माध्यम से 28 – 29 अक्टूबर को सीमा पार से आतंकवाद के के वित्तपोषण के विरुद्ध बड़ी कार्यवाही करते हुए जम्मू कश्मीर के 9 स्थानों सहित दिल्ली – बंगलुरु के एक स्थान पर भी छापेमारी की है । जिसमें स्थानीय समाचार पत्र सहित छह स्वयंसेवी संगठनों के कार्यालय भी सम्मिलित रहे हैं । जिन छह स्वयंसेवी संगठनों के कार्यालय पर छापा मारा गया उनमें दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष जफरुल इस्लाम खान की अध्यक्षता वाला चैरिटी अलायंस भी सम्मिलित रहा है। ध्यान रहे यह जफर वही व्यक्ति है जिन्होंने इसी वर्ष 28 अप्रैल को सोशल मीडिया पर लिखा था कि जिस दिन मुसलमानों ने अरब देशों से अपने खिलाफ जुल्म की शिकायत कर दी, उस दिन जलजला आ जाएगा।
अब उन्हें पता चल गया होगा की जलजला क्या होता है, और यह भी कि अब भारत में देश के विरोध में बोलने का परिणाम क्या हो सकता है?
भारत के पास इस समय श्री एस.जयशंकर जैसे विदेश मंत्री हैं जो सौम्य और शांत रहकर अपने कार्य में लगे हुए हैं। मोदी जी ने उनका बहुत सही ढंग से चयन किया है। इसी प्रकार श्री अजीत डोभाल जैसे कुशाग्र बुद्धि वाले अनेकों देशभक्त अधिकारी हैं जो पीछे से रहकर बहुत मजबूती से कार्य कर रहे हैं । इन जैसे अधिकारियों और देशभक्त लोगों की भूमिका इस समय बहुत निर्णायक दौर में प्रवेश कर चुकी है। जिससे आतंकवादियों में और देशद्रोहियों में हड़कंप मचा हुआ है। देश के लोगों के लिए इस समय यह बहुत आवश्यक है कि वह अपनी सरकार और इन देशभक्त अधिकारियों या मौन रहकर कार्य करने वाले देशभक्तों के साथ और अपनी सेना के साथ, अपने सैन्यबलों व सुरक्षा बलों के साथ मजबूती से खड़े रहें। अफवाहों पर ध्यान ना दें और आतंकवाद के विरुद्ध चल रही निर्णायक लड़ाई में अपना मौन या सक्रिय किसी भी प्रकार का सहयोग प्रदान करते रहें।
हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि अब पाकिस्तान को कश्मीर लेने की उतनी चिंता नहीं है , जितनी गिलगित और बालटिस्तान के अपने हाथों से जाने की चिंता है। इतना ही नहीं , इमरान खान इस समय इस बात को लेकर भी बहुत परेशान हैं कि उनके रहते कहीं पाकिस्तान कई टुकड़ों में न बिखर जाए ? क्योंकि बलूचिस्तान इस समय पाकिस्तान के हाथ से निकलने ही वाला है । अभी पाकिस्तान की संसद में जिस प्रकार मोदी के समर्थन में नारे लगे हैं ,उससे हमें बहुत कुछ पता चल जाता है कि पाकिस्तान में क्या होने जा रहा है ? इस सबके बीच हमारा मानना है कि पाकिस्तान में इमरान खान की सत्ता को अभी कोई खतरा नहीं है । इसमें निश्चित रूप से ‘मोदी का हाथ’ है । जिसके लिए इमरान खान को उनका शुक्रगुजार होना चाहिए । मोदी की नीतियों का ही परिणाम है कि अभी वहां कोई सैन्य अधिकारी तख्तापलट करने की सोच भी नहीं सकता। क्योंकि पाकिस्तान की सेना चाहेगी कि यदि देश बिखरता है या कश्मीर हाथ से निकलता है तो इतिहास में इसका कलंक इमरान खान के माथे पर लगना चाहिए , न कि वहां की सेना के । इसलिए वर्तमान नाजुक दौर में सेना चाहती है कि इमरान खान को काम करने दिया जाए।
मियां इमरान खान इस समय बुरे फंस चुके हैं। उनको हमारे प्रधानमंत्री ने एक बार ‘नियाजी’ कहा था। जी हां, वहीं जनरल नियाजी जिन्होंने 1971 में अपनी पराजित सेना की तलवार हमारे तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल अरोड़ा को सौंपी थी। उसी नियाजी परिवार से संबंध रखने वाले इमरान खान अपने आपको नियाजी कहने में संकोच करते हैं। पर वह समय उनके रहते ही आ सकता है जब वह गिलगित और बालटिस्तान को भारत को वैसे ही सौंपेंगे जैसे जनरल नियाजी ने हमारे जनरल अरोड़ा के हाथों में अपनी पराजित सेना की तलवार सौंपी थी। इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति से इमरान खान बचना चाहते हैं पर सेना है कि उन्हें बलि का बकरा बनाने के लिए पाल रही है। पाकिस्तान की सेना अब यह भली प्रकार जान गई है कि इस्लामिक आतंकवाद के विरूद्ध सारी दुनिया इस समय कमर कस चुकी है और अब उसके नेतृत्व में पाकिस्तान का इस्लामिक देशों का मुखिया होने का सपना भी बहुत शीघ्र चूर -चूर होने वाला है।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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