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इतिहास के पन्नों से

जब महात्मा गांधी ने अपने बेटे मणिलाल से पूछा था : फातिमा से भी वह अधर्म है, तुम्हारे बच्चों का धर्म क्या होगा?

 

तनिष्क के विवादित वीडियो ने लव-जिहाद, हिन्दू-मुस्लिम विवाह, इनके पीछे छुपे नैरेटिव आदि विषयों को बहस का विषय बना दिया। ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि देश के विचारकों ने किसी भी बहस के बीच महात्मा गाँधी का जिक्र न किया हो। इसी कड़ी में सेक्स और टीनएज कॉलेज रोमांस की फिक्शन कथाएँ लिखने वाले चेतन भगत ने भी लगे हाथ एक ट्वीट कर कहा कि आज अगर महात्मा गाँधी होते तो वो इस विषय पर क्या कहते? 

वास्तव में, महात्मा गाँधी खुद भी अपने हिन्दू बेटे मणिलाल का विवाह दूसरे मजहब की फातिमा से करने के खिलाफ थे। ख़ास बात यह थी कि मणिलाल फातिमा के प्रेम में पागलपन की हद तक डूबे हुए थे।

मोहनदास करमचंद गाँधी के बेटे मणिलाल और फातिमा का प्रेम सम्बन्ध तकरीबन 12 वर्षों तक चला। गाँधी के बेटे मणिलाल फातिमा से शादी करना चाहते थे। लेकिन जब उन्होंने अपने पिता से ‘परमिशन’ माँगी तो उन्होंने कई तर्क देते हुए इस शादी से स्पष्ट रूप से मना कर दिया और फ़ौरन मणिलाल का विवाह अपनी ही जाति में करवाकर मामले को ‘शांत’ कर दिया था।

गाँधी अंतरधार्मिक या अंतरजातीय विवाह के खिलाफ थे इस बात का प्रमाण अपने बेटे मणिलाल को लिखा गया उनका एक पत्र है। उनका मानना था कि ये उचित नहीं है। इससे सामाजिक संरचना और धार्मिक सदभावना को ठेस लगेगी, लिहाजा हिंदू धर्म में अंतरजातीय और अंतरधार्मिक शादियों पर प्रतिबंध उचित है।

मणिलाल करना चाहते थे ‘टिम्मी’ उर्फ़ फातिमा से विवाह

मणिलाल ने 1926 में अपने से छोटे भाई रामदास के जरिए पिता एमके गाँधी को संदेश भेजा कि वो टिम्मी (फातिमा) से शादी करना चाहते हैं। दरअसल फातिमा और उसके परिवार से एमके गाँधी के परिवार का दक्षिण अफ्रीका में रहने के दौरान गहरा रिश्ता था। इसी कारण मणिलाल को यकीन था कि उनके पिता इस शादी के लिए मान जाएँगे। लेकिन मणिलाल के पिता ने जवाब में जो पत्र भेजा, वो उनके लिए आशा के विपरीत था।
मोहनदास करमचंद गाँधी के इस पत्र में उन्होंने अपने पुत्र मणिलाल को संबोधित करते हुए लिखा था। इस पत्र को एमके गाँधी ने ‘एक मित्र के रूप में’ मणिलाल की इच्छा को ‘धर्म के विपरीत इच्छा’ कहते हुए शुरू किया! पत्र में उन्होंने जो लिखा, वह एक ‘आज्ञाकारी बेटे’ के लिए और अधिक चौंकाने वाला था। उसका सपना चकनाचूर हो गया।
एमके गाँधी इस पत्र में लिखते हैं-
“यदि तुम हिंदू होकर फातिमा के इस्लाम से जुड़े रहते हो, तो यह एक म्यान में दो तलवारें डालने जैसा होगा; या तुम अपनी आस्था से विमुख हो जाओगे। और फिर तुम्हारे बच्चों का धर्म क्या होना चाहिए? वे किस धर्म और आस्था के प्रभाव में बड़े होंगे? यह धर्म नहीं है, लेकिन केवल धर्म है, अगर फातिमा सिर्फ तुमसे शादी करने के लिए धर्मांतरण के लिए सहमत है। विश्वास एक परिधान जैसी चीज नहीं है जिसे हमारी सुविधा के अनुरूप बदला जा सकता है।”
“…धर्म के लिए एक व्यक्ति वैवाहिक जीवन को त्याग देगा, अपने घर को त्याग देगा, क्यों? यहाँ तक ​​कि अपने जीवन को भी त्याग देगा।…ये धर्म नहीं अधर्म होगा, अगर फातिमा केवल शादी के लिए अपने धर्म को बदलना भी चाहे तो भी ठीक नहीं होगा। आस्था कोई कपड़ा नहीं, जो आप इसे कपड़े की तरह बदल लें। अगर कोई ऐसा करता है तो धर्म और घर से बहिष्कृत कर दिया जाएगा। ये कतई उचित नहीं..।”
“…ये रिश्ता बनाना समाज के लिए भी हितकर नहीं। ये शादी हिंदू मुस्लिमों पर अच्छा असर नहीं डालेगी। अंतरधार्मिक शादी करने के बाद तुम देश की सेवा के लायक नहीं रह जाओगे और शायद फीनिक्स आश्रम में रहकर ‘इंडियन ओपिनियन’ वीकली निकालने के लिए सही व्यक्ति नहीं रह सकोगे। तुम्हारे लिए भारत आना मुश्किल हो जाएगा। मैं ‘बा’ से तो इस बारे में कह भी नहीं सकता, वो तो इसकी अनुमति देने से रहीं। उसकी जिंदगी में यह हमेशा के लिए ही सबसे कड़वा अनुभव होगा।”
एमके गाँधी ने अपने बेटे को इस पत्र में लिखा, “तुम क्षणिक सुख के लिए ही ऐसी शादी के बारे में सोच रहे हो, जबकि तुम्हे मालूम नहीं कि वास्तविक सुख क्या है।”
दिलचस्प बात यह है कि मणिलाल की फातिमा से शादी तो नहीं हुई लेकिन एमके गाँधी के सबसे बड़े बेटे हरिलाल ने आगे चलकर 1936 में इस्लाम धर्म अपनाया और अपना नाम बदलकर अब्दुल्ला रख लिया था।
हैरानी की बात है कि एमके गाँधी ने कभी भी अपने परिवार से बाहर दूसरों के मामले में हिंदू-मुस्लिम विवाह के बारे में यही नजरिया नहीं अपनाया और खुलकर उन्हें समर्थन दिया। उन्होंने ऐसे ही दो विवाह- हुमायूँ कबीर (एक मुस्लिम की हिंदू बंगाली लड़की से शादी) और बीके नेहरू (जवाहर लाल नेहरू के चचेरे भाई की हंगरी की एक यहूदी से शादी) को संरहतन दिया और इन विवाहों पर कोई आपत्ति नहीं जताई।
बात 1945 की है, जिस सन तक हर वर्ष दिल्ली में बकरा ईद पर सदर बाजार में गौ-हत्या को लेकर दंगा होता था, लेकिन उस वर्ष सदर बाजार का चर्चित लोटन पहलवान ने गऊ को बचाने हत्यारों से लोहा लेने के अपराध में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। पिताश्री किसी पारिवारिक काम से करोल बाग़ से वापस अपने निवास आते समय पुलिस के खुले ट्रक में लहूलुहान लोटन को देखा था, घर आकर मौहल्ले में सबको लोटन को देखने की बात बताई। उन दिनों सांयकाल वाल्मीकि मंदिर से महात्मा गाँधी के प्रवचन रेडियो पर प्रसारित होते थे। अफ़सोस ! गाँधी ने गौ-रक्षक को इस तरह बताया, “आज दिल्ली शांत रही, बस पुलिस ने एक दंगाई को गिरफ्तार कर लिया है।”
ये वही एमके गाँधी है, जिसने अपने मुस्लिम प्रेम की खातिर देश को अनेक निर्णय धरने की धमकियों से बदलने को मजबूर किया था। बंटवारे के समय मुस्लिमों के हाथों मरने को कहा था। लेकिन अपने परिवार को किसी मुस्लिम लड़की से विवाह करने को मना किया। जब मुस्लिमों द्वारा आर्य समाजी स्वामी श्रद्धानन्द की हत्या करने पर महात्मा गाँधी ने उनका बचाव करते कहा था कि “ये मेरे भाई हत्या नहीं कर सकते।” आखिर महात्मा गाँधी ने दोगली नीति क्यों अपनाई? 
तनिष्क के विज्ञापन से शुरू हुआ विवाद
तनिष्क के जिस विज्ञापन से में एक हिंदू महिला की गोदभराई की रस्म को दिखाया गया था। इस लड़की की शादी मुस्लिम परिवार में हुई थी। इसमें हिंदू संस्कृति को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम परिवार सभी रस्मों रिवाजों को हिंदू धर्म के हिसाब से करता दिखाया गया था।
विज्ञापन को लव जिहाद को बढ़ावा देने के आरोप लगने और सोशल मीडिया पर तनिष्क के बहिष्कार की अपीलों के बाद कंपनी ने विज्ञापन को वापस ले लिया। कुछ इसी तरह का विवाद होली के दौरान सर्फ एक्सेल के एक विज्ञापन को लेकर भी हुआ था।

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