शाहीन बाग मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का ‘ सुप्रीम फैसला ‘

नीरज कुमार दुबे

दिल्ली के शाहीन बाग में चले आंदोलन के दौरान ‘आंदोलन’ शब्द की परिभाषा ही बदल दी गयी थी। सरकार के एक फैसले के विरोध के नाम पर शुरू हुआ यह आंदोलन पूरी तरह सरकार विरोधी और फिर धीरे-धीरे देश विरोधी तत्वों के हाथ में आ गया था।

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में चले धरना-प्रदर्शन के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय ने जो ऐतिहासिक फैसला दिया है वह आगे के लिए नजीर साबित होगा। शाहीन बाग मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा है कि विरोध प्रदर्शन के लिए शाहीन बाग जैसे सार्वजनिक स्थलों पर कब्जा करना स्वीकार्य नहीं है और इस प्रकार के स्थानों पर ‘‘अनिश्चितकाल’’ के लिए कब्जा नहीं किया जा सकता। उल्लेखनीय है कि इन प्रदर्शनों के कारण कई महीनों तक राष्ट्रीय राजधानी के शाहीन बाग इलाके में मुख्य सड़क बाधित हो गई थी। न्यायमूर्ति एसके कौल की अगुवाई वाली पीठ ने कहा है कि सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चितकाल तक कब्जा नहीं किया जा सकता, जैसा कि शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन के दौरान हुआ।

वाकई शाहीन बाग में चले आंदोलन के दौरान ‘आंदोलन’ शब्द की परिभाषा ही बदल दी गयी थी। सरकार के एक फैसले के विरोध के नाम पर शुरू हुआ यह आंदोलन पूरी तरह सरकार विरोधी और फिर धीरे-धीरे देश विरोधी तत्वों के हाथ में आ गया था। कभी असम को देश से अलग करने की धमकी दी गयी तो कभी नफरत भरे भाषण दिये गये। शाहीन बाग प्रदर्शकारियों की बात करें तो ऐसी बहुत-सी रिपोर्टें रहीं कि यह लोग दिन के 500 रुपए लेकर धरने पर बैठते थे और सरकार को बदनाम करते थे। सरकार के विरोध में यह लोग तीन महीने से ज्यादा समय तक दिल्ली-एनसीआर के बड़े लोगों की नाक में दम किये रहे क्योंकि आने-जाने के महत्वपूर्ण मार्ग पर इन्होंने कब्जा कर लिया था और महिलाओं को आगे रख कर अपनी राजनीति कर रहे थे। महिलाओं को आगे रख कर पुलिस कार्रवाई से बचते रहे शाहीन बाग के षड्यंत्रकारियों ने भले किसी को टाइम मैगजीन की सूची में स्थान दिला दिया हो लेकिन देश को पीछे धकेलने का काम जिस शिद्दत के साथ इन्होंने किया वह भारत की जनता याद रखेगी।

शाहीन बाग के धरने प्रदर्शन के कारण भीषण सर्दियों के मौसम में छोटे-छोटे बच्चों को स्कूल के लिए दो घंटे पहले निकलना पड़ता था और छुट्टी के बाद वह दो-तीन घंटे देरी से घर पहुँचते थे क्योंकि काफी घूम कर आना पड़ता था। शाहीन बाग के इर्दगिर्द कई बड़े अस्पताल हैं, धरना प्रदर्शन के कारण यहाँ आने वाले मरीजों को भी तमाम तकलीफें सहनी पड़ीं क्योंकि बहुत घूम कर आना पड़ता था। कितने ही निजी क्षेत्र के कर्मचारी पूरे महीने देरी से कार्यालय पहुँचे और महीने के अंत में आधी तनख्वाह मिली क्योंकि हॉफ डे लग गया था। ऐसी पता नहीं कितनी तमाम परेशानियां हैं जो लोगों ने उठाईं। घंटों जाम में फँसे रहना जैसे नियती ही बन गयी थी। इसके अलावा दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले राजधानी के हालात बिगाड़ने और अपने चुनावी हित साधने का साधन बन गया था शाहीन बाग का आंदोलन। प्रधानमंत्री ने सही ही कहा था कि शाहीन बाग का आंदोलन संयोग नहीं प्रयोग है।

दरअसल जो लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2019 के लोकसभा चुनावों में नहीं हरा पाये उन्होंने सरकार को हिलाने और झुकाने के नये प्रयोग के तहत शाहीन बाग आंदोलन की जो रूपरेखा बनाई उससे आम जनता सर्वाधिक प्रभावित हुई। शाहीन बाग के धरने प्रदर्शन से परेशान हो रहे लोगों की मुश्किलें सुलझाने के लिए सरकार की तरफ से स्वयं गृहमंत्री अमित शाह ने प्रस्ताव किया कि जो लोग नागरिकता संशोधन कानून पर बात करना चाहें उनका स्वागत है तो शाहीन बाग के कथित आंदोलनकारियों ने नया ड्रामा रच दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने मध्यस्थ भेजे तो उन्हें भी इन लोगों ने उलटा लौटा दिया। जब कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से फैला और दुनिया के कई देशों में पूरी तरह लॉकडाउन हो गया, तब भी शाहीन बाग के प्रदर्शनकारी जमे हुए थे वो तो जब भारत में भी लॉकडाउन लगा तब इन अराजकतावादियों को जबरन हटाया गया।

यही नहीं दिल्ली की पुलिस और प्रशासन इन लोगों से पूरी तरह परेशान हो चुका था। जब भी पुलिस व प्रशासन के अधिकारी इन लोगों को समझाते तो यह उनसे तीखी बहस करने पर उतर आते थे। कहा जा सकता है कि जो लोग नागरिकता धर्म ही नहीं निभा रहे थे, जो लोग अपने आसपास के लोगों की दिक्कतें ही समझने को राजी नहीं, जो लोग खुलेआम दूसरों के अधिकारों का अतिक्रमण करते हैं, जो लोग देशविरोधी हाथों में खेलते हैं उन्हें तो संविधान और कानून की बात करने का अधिकार ही नहीं होना चाहिए। नागरिकता संशोधन कानून के नाम पर शाहीन बाग के अराजकतावादियों ने जो तमाशा किया उसे आम जनता शुरू से ही समझ रही थी लेकिन इन अराजकतावादियों को शह इसलिए मिल रही थी क्योंकि कांग्रेस समेत कई दलों के नेता और कुछ कथित बुद्धिजीवी, अर्बन नक्सली और कुछ पिटे हुए बॉलीवुड कलाकार आकर इन लोगों के समर्थन में खड़े हो रहे थे।

बहरहाल, घर की महिलाओं को प्रदर्शन पर बैठा कर खुद रजाई में छिप कर टीवी पर तमाशा देखने वाले अराजकतावादियों ने धर्म के नाम पर हंगामा तो बहुत किया लेकिन इनको अपने सियासी चश्मे से मानवीयता शब्द नजर नहीं आ रहा था। शाहीन बाग को प्रयोगशाला बनाने वालों को उच्चतम न्यायालय के फैसले से करारा तमाचा लगा है। अब पुलिस और प्रशासन को भी चाहिए कि जब भी अराजकतावादी शाहीन बाग जैसा आंदोलन करें तो बलपूर्वक उसे खत्म कराया जाना चाहिए क्योंकि शाहीन बाग के आंदोलन के समय जिस तरह सरकार, प्रशासन पर दबाव बनाने के अलावा इन लोगों ने मामला सुलझाने के न्यायालय के प्रयासों को भी विफल किया उससे सही संदेश नहीं गया था। उच्चतम न्यायालय की पीठ ने सही ही कहा है कि शाहीन बाग इलाके से लोगों को हटाने के लिए दिल्ली पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए थी। अदालत का यह कहना कि प्राधिकारियों को इस प्रकार के हालात से निपटने के लिए खुद कार्रवाई करनी होगी और वे अदालतों के पीछे छिप नहीं सकते, भविष्य में पुलिस और प्रशासन के बेहद काम आने वाली चीज है।

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