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घरेलू राजनीति से केरन सेक्टर की ओर देखो

जम्मू कश्मीर के केरन सैक्टर में पाकिस्तानी आतंकवादियों की घुसपैठ देशवासियों के लिए चिंता का विषय है। इस दौरान हमारी राजनीति कहीं राजनीति के नौसिखिए राहुल गांधी की ‘बकवास’ की क्षतिपूर्ति करने में लगी है, कहीं मोदी-आडवाणी की मिटती दूरियों को देखने में लगी है तो कहीं पांच राज्यों के आसन्न चुनावों से निपटने की रणनीति में लगी है। तात्कालिक और सबसे महत्वपूर्ण संकट केरन सेक्टर में उपस्थित पाक आतंकियों की ओर किसी का ध्यान नही है।

देश का प्रधानमंत्री अमेरिका यात्रा से लौटा है। वहां पी.एम.  को पाक प्रधानमंत्री से क्या कहा, और यू.एन. की मीटिंग में उन्होंने क्या कहा? इस पर चिंतन मंथन कुछ नही हुआ और देश ने पी.एम. की यात्रा को ‘पिकनिक’ से अधिक कुछ नही माना है। ऐसी निराशा या उपेक्षा पहली बार किसी पी.एम. की इतनी महत्वपूर्ण यात्रा के उपरांत देखी जा रही है। दुख की बात ये है कि स्वयं पी.एम. को भी अपनी इस ‘उपेक्षा’ से कोई आपत्ति नही है।

डा. मनमोहन सिंह को राष्टरपति प्रणव मुखdownload (6)र्जी की भांति पाक पी.एम.  को स्पष्ट करना चाहिए था कि भारत में आतंकवाद पाक प्रायोजित है और भारत इस प्रकार के प्रायोजित आतंकवाद को मिटाने का काम करना भी जानता है। लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ ना कहकर हल्की बातें की और अपनी परंपरागत विनम्रता के वशीभूत होकर अपने पाकिस्तानी समकक्ष से आतंकवाद मिटाने में सहयोग करने की बात कह दी। यहीं पाक पी.एम.  को भारतीय पी.एम. की बातों में ‘चूड़ियों की खनखनाहट’ सुनाई दे गयी और उन्होंने हमारे पी.एम.  को ‘देहाती औरत’ कह दिया।

पाकिस्तान के विषय में हमें जान लेना चाहिए कि उसके यहां जो आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर चलाये जा रहे हैं, वे केवल भारत की क्षेत्रीय अखण्डता को क्षत-विक्षत करने के लिए ही चलाए जा रहे हैं। हमें जो इतिहास नही पढ़ाया जाता वो इतिहास पाकिस्तान में पढ़ाया जाता है और भारत में रहने वाले ‘नापाक’ पाक समर्थकों को प्रसन्न करने के लिए यहां वो इतिहास पढ़ाया जाता है जो नही पढ़ाया जाना चाहिए। नि:संदेह वह इतिहास ये है कि इस्लाम ने भारत से सदियों से लड़ाई लड़ी है, और बड़ी सफलता हासिल की है। पाक में बताया जाता है कि इस्लाम को पूरी तरह फेलाकर हिंदुत्व को और हिंदुस्तान को पूरी तरह बर्बाद कर देना इस लड़ाई का अंतिम उद्देश्य है। पाक में यह भी समझाया जाता है कि ईरान (आर्यन) प्रांत भारत से कटा तो यह इस्लाम की पहली सफलता थी, इसी सफलता ने अगली सफलता की बुनियाद रखी और हमें अफगानिस्तान मिल गया। बाद में हमने अफगानिस्तान को अपनी लड़ाई का अड्डा बनाया तो हमें पाकिस्तान मिल गया। अब पाकिस्तान के बाद सारे हिंदुस्तान को लेने की तैयारी है।

इधर हमारे नेता हमें बताते हैं कि भारत की गंगा-जमुनी सांझा-संस्कृति रही है। दानवता अब बीते जमाने की बातें हो गयी हैं। भारत पाक दोनों भाई हैं, और दोनों देशों की जनता भाईचारा चाहती है, इसलिए अब हम भाईचारे के साथ रहेंगे। परंतु सत्य कुछ और है। हमें मई 2004 में मुजफ्फराबाद में आयोजित शहादत सभा में पाक अधिकृत कश्मीर के नेता शेख जमील-उर रहमान के भाषण के इन अंशों पर ध्यान देना चाहिए-‘पाकिस्तान की ओर से भारत के साथ दोस्ती की बात करने वालों को यह जान लेना  चाहिए कि वे एक ऐसे अपराधी से दोस्ती कर रहे हैं जो अपराधी है-बाबरी मस्जिद के विध्वंस का, जो अपराधी है कश्मीरी जनता की हत्या का….ऐसे बेरहम हिंदुओं के साथ दोस्ती की बात। अगर भारत के साथ दोस्ती जरूरी थी तो पाकिस्तान बनाया ही क्यों गया था? नही, भारत से दोस्ती मुमकिन नही है। कुरान-ए-पाक इसके खिलाफ है। क्या पैगंबर की बात झूठी है? नही, पैगंबर की बात कभी झूठी नही हो सकती। हिंदुओं के साथ दोस्ती नामुमकिन है। अगर आपका पैगंबर की बातों में विश्वास है, तो आप उनकी दोस्ती में विश्वास कैसे करते हैं? पाकिस्तान में कार्यरत आतंकी संगठनों की सबकी सोच का केन्द्र बिंदु यही है। सभी के झंडे अलग अलग हो सकते हैं,परंतु एजेंडा सभी का एक है। पाकिस्तान की सरकार इस एजेंडा को जानती है। नवाज अपनी शराफत को कायम रखने का प्रयास करते दिखते हैं, परंतु उनकी ‘शराफत’ पर आतंक की हुकूमत का साया साफ नजर आता है। इसलिए उनकी शराफत भारत के लिए केवल एक छलावा सिद्घ होगी। जब शत्रु के इरादे पढ़ने में आ रहे हों और जब शत्रु अपने इरादों को अमलीजामा पहनाने के लिए सरहदों पर गंभीर उत्पात मचा रहा हो, तब उसकी ओर से निश्चिंत रहना या उसकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना सिवाय नादानी के और कुछ नही है। सचमुच हमारी यह नादानी ही रही है जिसने हमें सदियों के ‘वैर’ से कोई सबक नही लेने दिया है और हम बार-बार गच्चा खाते रहे हैं। अब तनिक विचार करें उपरोक्त उदाहरण के इस अंश पर कि अगर भारत के साथ दोस्ती जरूरी थी, तो पाकिस्तान बनाया ही क्यों था? बात साफ है कि दोस्ती परंपरागत नही है अपितु पाक की नजरों में दुश्मनी परंपरागत है। यह अंश भारत के मुस्लिमों के लिए भी विचारणीय है। वे भी सोचें कि पाकिस्तान से होने वाली किसी भी जंग में केवल हिंदू ही नही मारे जाएंगे अपितु मरने वालों में मुस्लिम भी शामिल होंगे-दोनों कुल मिलाकर हिंदुस्तानी के रूप में मरेंगे। इसलिए पाकिस्तान की परंपरागत शत्रु भावना हिंदुओं के प्रति ही नही अपितु हिंदुस्तानियों के प्रति है। इसलिए हिंदुस्तानी मुस्लिमों को पाक को सबक सिखाने के लिए भारत सरकार से खुली मांग करनी चाहिए। साथ ही भारत सरकार को भी यह समझना चाहिए कि पाकिस्तान से यदि दोस्ती ही करनी थी तो उसे बनाया ही क्यों था? विष की औषधि विष है। युद्घ की तैयारी जिस स्तर पर शत्रु कर रहा हो उसी स्तर से अधिक पर की जानी अपेक्षित होती है। केरन सेक्टर में जो घुसपैठ हुई है उसे गंभीरता से लेते हुए देश की राजनीति को घरेलू संघर्षों से अपना ध्यान हटाकर उस ओर ध्यान देना चाहिए। सीमाओं की ओर से आती आवाज को सुना जाए अथवा अनर्थ हो जाएगा।

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