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स्वर्णिम इतिहास

‘गुर्जर वंश का गौरवशाली इतिहास’ – पुस्तक का विमोचन होगा आगामी 17 जुलाई को

आदरणीय मित्रो ! आगामी 17 जुलाई को मेरी पुस्तक “गुर्जर वंश का गौरवशाली इतिहास” का विमोचन होने जा रहा है । यह पुस्तक ‘डायमंड पॉकेट बुक्स’ द्वारा प्रकाशित की गई है । जिसका मूल्य ₹350 रखा गया है । पुस्तक की पेज संख्या लगभग 325 है । आशा है आपको मेरा यह प्रयास अवश्य ही रुचिकर लगेगा । आपके आशीर्वाद का अभिलाषी हूँ। उपरोक्त पुस्तक को आप अपने स्वयं के लिए और अपने इष्ट मित्र बंधुओं के लिए मंगाएं और लाभ उठाएं । इस विनम्र अनुरोध के साथ इस पुस्तक की प्रस्तावना मैं यहां पर सादर प्रस्तुत कर रहा हूं।

गुर्जर वंश का गौरवशाली इतिहास
लेखकीय निवेदन

वीरता और देशभक्ति का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है । जहाँ वीरता है , वहाँ देशभक्ति है और जहाँ देशभक्ति है वहाँ वीरता है । वीरता का अभिप्राय क्रूरता नहीं है और ना ही किसी पर अत्याचार करने का नाम वीरता है । वीरता हमें पूर्ण सात्विकता का बोध कराती है । कहने का अभिप्राय है कि वीरता सात्विकता के भाव से ही जन्म लेती है । सात्विकता एक ऐसा भाव है जो हमारे क्रोध को नियंत्रित रखता है । उसे किसी के विनाश के लिए प्रयुक्त नहीं होने देता । हमें इतना संयमित , गंभीर और सन्तुलित बनाए रखता है कि हम दूसरे व्यक्ति के द्वारा अपने प्रति कहे गए किसी वचन या किए गए किसी कार्य का उसे उसके द्वारा कहे गये वचन या किए गए कार्य के अनुपात में ही दण्ड देने की क्षमता बनाए रखते हैं।
कुछ लोगों के लिए हमारा ऐसा कहना कुछ हास्यास्पद सा हो सकता है , क्योंकि समाज में अधिकतर लोगों का मानना यह हो गया है कि वीरता सदा क्रोध से जन्म लेती है और क्रोध तथा सात्विकता का कोई मेल नहीं है । भारतीय चिन्तनधारा में सात्विकता समाज की गतिशीलता को बनाए रखने के लिए परमावश्यक तत्व है । सात्विकता के प्रवाह में चिन्तन करते व्यक्ति के मानस से ही संसार की उन्नति , प्रगति और विकास की त्रिवेणी निकलती है । जिसमें संसार के लोग नहा – नहाकर आत्मिक शांति का अनुभव करते हैं ।सात्विकता प्रवाहित करे रगों में ऐसा जोश ।
शत्रु भूले दाव सब उड़ जाएं उसके होश ।।सात्विकता का निर्माण पूर्ण संयम , धैर्य , विवेकशीलता , सहनशीलता और ऐसे सभी मानवीय मूल्यों से होता है जो धर्म की व्यवस्था को बनाए रखने में सहायक होते हैं । समाज में ब्राह्मण वर्ण के लोग इन मूल्यों का निर्माण करते हैं , जबकि क्षत्रिय लोग इन मूल्यों की रक्षा करते हैं तो वैश्य इन मानवीय मूल्यों के संरक्षण में रहते हुए समाज के भरण – पोषण की व्यवस्था करते हैं। इस प्रकार सात्विकता से ही समाज का निर्माण होता है ।

भारत ने राजसिक व तामसिक मूल्यों को इसीलिए दूसरे और तीसरे स्थान पर रखा है , क्योंकि राजसिक और तामसिक मूल्यों को अपनाने से मानव समाज का पतन होने लगता है।
भारत ने अपने सात्विक मूल्यों की रक्षा के लिए पूरा का पूरा एक वर्ण तैयार किया । जिसे हम क्षत्रिय वर्ण के नाम से जानते हैं। क्षत्रिय वर्ण ने समाज में शान्ति व्यवस्था बनाए रखने के लिए ऐसे लोगों को समाज की मुख्यधारा से चुन-चुन कर दूर करने का प्रयास किया जो अपने क्रियाकलाप से या कार्यशैली से या किसी भी प्रकार से समाज की मुख्यधारा को या तो प्रभावित कर सकते थे या दूषित – प्रदूषित करने की क्षमता रखते थे।
गुर्जर समाज इसी क्षत्रिय वर्ण का प्रतिनिधि रहा है। जिसने समाज के सात्विक परिवेश को दूषित – प्रदूषित करने वाले तत्वों को न केवल दूर करने का प्रयास किया , अपितु समाज की सात्विक गति को बनाए रखने के लिए ऐसे विदेशी आक्रमणकारियों का विरोध और प्रतिरोध भी किया जो अपने देश से उठकर किसी दूसरे देश में जाकर अशान्ति और अव्यवस्था फैलाने का कार्य कर रहे थे। इस प्रकार गुर्जरों ने इस देश की उस मौलिक संस्कृति का प्रतिनिधित्व किया जो क्षत्रियों को नैतिक व्यवस्था को लागू किए रखने की कार्यपालिका शक्ति प्रदान करती है । अतः हम यह कह सकते हैं कि गुर्जरों ने इतिहास में जो कुछ भी किया , समझो वह लोकतन्त्र में कार्यपालिका की शक्तियों के अनुरूप किया । इनकी तलवार किसी निरपराध को समाप्त करने के लिए नहीं उठी अपितु निरापराधी , असहाय और बेसहारा को समाप्त करने वाली तलवार को ही काट देने के लिए उठी । भारत में वीरता की परिभाषा भी यही है कि जो असहाय , निरपराध और दुर्बल पर अत्याचार करे ,उसका सामना करो और उसे समाप्त करो । समकालीन इतिहास में यदि गुर्जरों के काल को भारत की इसी संस्कृति की रक्षा के लिए काम करने वाले महापुरुषों के काल से जाना जाए तो हमारा मानना है कि इसमें लेशमात्र भी अनुचित नहीं होगा।क्रूरता के दम्भ में ,
और दम्भ के पाखण्ड में ,
जो दुर्बल को दण्ड दे ,
क्षत्रिय मर्यादा कहती यही ,
तेरे लिए है सही ,
ना क्षणिक देर कर ,
तू उसे कुचल दे ,
और यथाशीघ्र दण्ड दे।बस , अपने इस एक महान गुण के कारण ही संसार का सबसे बलशाली और देशभक्त समाज होने का गौरव गुर्जर जाति ने प्राप्त किया। इस जाति के भीतर देशभक्ति और ईशभक्ति दोनों का समन्वय मिलता है । आज भी इस जाति के लोग इन दोनों गुणों से भरपूर मिलते हैं । इससे पता चलता है कि भारत की सात्विक ऋषि परम्परा को बनाए और बचाए रखने का गुरुतर दायित्व गुर्जर समाज ने ही निभाया है । भारत की ऋषि परम्परा का अभिप्राय है कि भारत अध्यात्म और भौतिकवाद के समन्वय से समाज को आगे लेकर चलने का काम करता है । जो लोग भारत की मौलिक चेतना को जानते हैं , वे शस्त्र और शास्त्र के समन्वय को भली प्रकार जानते हैं । वह एक हाथ में माला तो दूसरे हाथ में भाला लेकर चलते हैं । इसका कारण केवल यही होता है कि वह सन्त और सिपाही दोनों की भूमिका में रहना जानते हैं । जब समय आए तो उन्हें देश की रक्षा के लिए सन्त बनने में देर नहीं लगती और जब समय आए तो वह अपनी अध्यात्म चेतना में डूबकर अपने जीवन को मुक्ति की ओर लेकर चलने के लिए सिपाही से सन्त बनने में भी देर नहीं करते ।
इस्लाम या दूसरी जातियों के लोगों ने सन्तत्व को प्राप्त नहीं किया । वह सिपाही बने , लेकिन लूटने – पीटने काटने और दूसरे लोगों का संहार करने के अमानवीय गुणों के सिपाही बने , जबकि गुर्जर समाज ने या भारत की क्षत्रिय परम्परा में पल्लवित पोषित होने वाले लोगों ने संसार के लोगों को ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ और ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ का संदेश निःसृत किया।
इस प्रकार भारत में गुर्जर समाज और इस समाज के लोग प्राचीन काल से ही एक गुरुत्तर उत्तरदायित्व को निभाते चले आए हैं । यह गुरुत्तर दायित्व देशसेवा , धर्मसेवा , राष्ट्रसेवा , जनसेवा और संस्कृति सेवा का दायित्व था । स्पष्ट है कि इन्हीं दायित्वों के निर्वाह से किसी भी देश ,धर्म व संस्कृति का निर्माण होता है । इस प्रकार भारत की महान संस्कृति के निर्माण में गुर्जर समाज का महत्वपूर्ण योगदान है । इसे किसी भी दृष्टिकोण से नकारा नहीं जा सकता। भारत में गुर्जर समाज को गुर्जर , गूजर , गुज्जर , गोजर , और वीर गुर्जर आदि के नाम से लोग सम्बोधित करते हैं । शब्द एक ही है , पर उच्चारण थोड़ा अलग – अलग है , परन्तु इस सबके उपरांत भी प्रत्येक उच्चारण से कुछ ऐसा जातिबोध होता है जो कहीं गुरुत्तर दायित्व की ओर ही संकेत करता है। प्रत्येक शब्द जातिबोध ही नहीं कराता , अपितु धर्मबोध भी कराता है । धर्मबोध का अभिप्राय है कि मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पित रहकर अपने देश , धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए उत्कृष्ट और मानवीय कार्यों को पूर्ण तन्मयता के साथ संपादित करते रहना।
अपने दिव्य और भव्य गुणों के कारण गुर्जर समाज ने अपने दिव्य और भव्य इतिहास का निर्माण किया है । भारत में ही नहीं , अपितु हम संसार के अनेक देशों में गुर्जर जाति के नाम पर पड़े अनेक शहरों के नाम देखते हैं । जिनसे पता चलता है कि इस जाति के पूर्वजों ने किसी क्षेत्र विशेष तक ही अपने आपको बांधकर नहीं रखा , अपितु इसने देशसेवा के अपने गुरुत्तर दायित्व का निर्वाह करते हुए विश्व के अनेकों स्थानों पर रह-रहकर अपने पवित्र कार्यों का सम्पादन किया । जहाँ – जहाँ समाज के भीतर अशान्ति व्याप्त हुई या जहाँ – जहाँ भी असामाजिक लोगों ने समाज के शान्तिप्रिय लोगों को सताना आरम्भ किया , वहीं पर गुर्जर जाति के लोगों ने असामाजिक तत्वों का सफाया करने का महानतम और श्रेष्ठतम कार्य सम्पादित किया । अफगानिस्तान , पाकिस्तान या उससे आगे अन्य देशों में जहाँ – जहाँ पर भी गुर्जर जाति के ध्वंसावशेष हमें अभी तक प्राप्त होते हैं , उन – उन ध्वंसावशेषों को हमें इस जाति के अतीत के उन प्रकाश स्तम्भों के रूप में देखना व समझना चाहिए जहाँ कभी दुष्टों , आतंकियों और समाज विरोधी लोगों का संहार करने के लिए इस जाति ने अपना गौरवपूर्ण इतिहास रचा था ।
एक प्रकार से आर्यवर्तकालीन चक्रवर्ती साम्राज्य की सुरक्षा का पूरा उत्तरदायित्व क्षत्रिय लोगों के पास हुआ करता था । जिसे कभी पूर्ण गम्भीरता के साथ गुर्जर जाति ने निभाया था । इस प्रकार गुर्जर समाज किसी जाति विशेष की संकीर्णता से बंधा हुआ समाज नहीं है , अपितु यह उन देशभक्तों का एक समाज है जो दीर्घकाल तक इस देश के धर्म व संस्कृति की रक्षा करते रहे हैं । भारतीय इतिहास में इसे भारत की छत्रिय परम्परा कहा जाता है। भारत की क्षत्रिय परम्परा में आस्था रखने वाले इस गुर्जर समाज को किसी भी प्रकार की संकीर्णता से न तो बांधा जा सकता है और न बांधने का प्रयास करना चाहिए । इसके उपरान्त भी जो लोग ऐसा प्रयास करते हैं ,उन्हें नहीं पता कि भारत की वर्ण व्यवस्था का अभिप्राय क्या था और गुर्जर किस प्रकार उस वर्ण व्यवस्था की एक आवश्यक कड़ी के रूप में स्वयं को ढालकर चलने के अभ्यासी बन गए थे ? किस प्रकार इस देश की रक्षा करने को ही वे अपना महानतम और पवित्रतम कार्य समझते रहे थे ? याद रहे कि गुर्जरों ने कभी किसी जाति विशेष या क्षेत्र विशेष के लिए कार्य नहीं किया । उनके चिंतन में समग्रता थी और सम्पूर्ण देश की रक्षा का दायित्व इन्होंने सम्भला था । इन्होंने किसी जाति विशेष के साथ कोई दुर्भाव नहीं रखा , अपितु एक योग्य शासक के रूप में समग्र शांतिप्रिय समाज को अपने साथ लेकर चलने में और भारत के आर्य राजाओं की परम्परा का निर्वाह करने को ही उचित समझा।
हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि गुर्जर समाज के लोग आज भी संसार के जिन – जिन देशों में मिलते हैं उन – उन देशों का अपना कोई स्वतन्त्र और प्राचीन इतिहास नहीं रहा है । एक समय था जब ये देश स्वयं भी भारत का ही एक अंग थे । यदि भारत से बाहर के अन्य देशों में गुर्जर समाज के लोग या उनकी उपस्थिति से जुड़े कुछ स्थान या नगर हमें आज भी मिलते हैं तो इन्हें ऐसे ही समझना चाहिए जैसे कोई नदी किन्हीं दुर्गम क्षेत्रों से निकलती चली जाती है और किसी समय विशेष पर बाढ़ आने से या किसी भी कारण से जब वह अपना बहाव बदलती है तो वहाँ पर वह गड्ढों के रूप में तालाब आदि छोड़ती चली जाती है । गुर्जर समाज के लोग पाकिस्तान व अफगानिस्तान में ही नहीं बसे हैं , अपितु उससे आगे के अन्य अनेकों देशों ब स्थानों पर भी इनके बसे होने के प्रमाण मिलते हैं । अफगानिस्तान के तो राष्ट्रगान में भी गुर्जर नाम आता है । जिससे पता चलता है कि भारत के गौरवपूर्ण अतीत में गुर्जर समाज का कितना महत्वपूर्ण योगदान और स्थान था ?
चाहे भारत का गुजरात हो चाहे पाकिस्तान का गुजरात हो , चाहे पाकिस्तान से आगे अफगानिस्तान में गुर्जरों से जुड़े ऐतिहासिक स्थल हों और चाहे रावलपिंडी व गुजरांवाला जैसे पाकिस्तानी शहर व कस्बे हों , चाहे तजाकिस्तान , कजाकिस्तान , रूस चीन आदि देशों में बिखरे गुर्जरों के अस्तित्व के प्रमाण हों , ये सभी एक बात को स्पष्ट कर रहे हैं कि भारत की छत्रिय परम्परा में आस्था रखने वाले गुर्जर समाज के लोगों ने कभी यहाँ रहकर भारतीय धर्म , संस्कृति और राष्ट्रीय सीमाओं की रक्षा करने के लिए अपने उत्कृष्टतम कार्यों का सम्पादन किया था । यह हमारे लिए सचमुच सौभाग्य की बात है कि इन देशों में रहने वाले गुर्जर लोग चाहे आज धर्मांतरण के पश्चात इस्लाम में भी दीक्षित हो गए हों , परन्तु इसके उपरान्त भी उनके भीतर अपने अतीत को समझने की प्रबल इच्छा है।
प्रस्तुत पुस्तक में हमने वीर गुर्जर वंश की गौरव गाथा को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। जिससे यह स्पष्ट हो सके कि इस समाज के द्वारा राष्ट्र सेवा के कैसे कीर्तिमान स्थापित किए गए हैं ? किसी जाति विशेष के लिए नहीं लिख रहे हैं । गुर्जर वंश के शासकों ने अपने जो भी कार्य किए , वह राष्ट्र सेवा के उत्कृष्ट भाव से प्रेरित होकर किए थे । अतः उनके उन महान कारियों को राष्ट्र के इतिहास की पवित्र गंगा के साथ जोड़ना और उसमें इस प्रकार समाविष्ट कर देना कि किसी अन्य को कोई तनिक भी कष्ट न हो , यही हमारा लक्ष्य है। हम चाहते हैं कि जिन इतिहास लेखकों या विद्वानों ने भारत के राष्ट्रीय गौरव से द्वेष भाव रखते हुए इस समाज के गौरवपूर्ण इतिहास को मिटाने और उसे राष्ट्रीय इतिहास से दूर रखने का अपराध किया है , उनके उस अपराध का भंडाफोड़ होना चाहिए। जिससे इस देश को पता चले कि आबू पर्वत पर हुआ यज्ञ इस देश की संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए किया गया ऐसा यज्ञ था जिसमें गुर्जर समाज के तत्कालीन क्षत्रिय योद्धाओं ने अपने आपको यज्ञ – आहुति के रूप में समर्पित कर दिया था। राष्ट्रवेदी के लिए सजाए गए उस यज्ञ में अपने आपको आहुति के रूप में समर्पित कर देना , अपने दिए गए वचन के अनुसार 300 वर्षों तक भारत की उत्कृष्ट सेवा करना , शत्रुओं को देश के भीतर प्रवेश करने से रोक देना और सिन्ध व उससे लगे हुए दूर-दूर तक के क्षेत्र में से चुन – चुन कर मुसलमानों को भगाना , साथ ही जो अपने हिन्दू भाई बलात मुसलमान बना लिया गए थे , उन्हें फिर से शुद्ध कर अपने समाज में लाना , यह सारे के सारे ऐसे महान कार्य हैं , जिन्होंने उस समय देश की संस्कृति और धर्म की रक्षा करते हुए राष्ट्र के लिए अनुपम कीर्तिमान स्थापित किए। ऐसे गौरवपूर्ण कार्य करने वाले गुर्जर समाज को भारत के राष्ट्रीय इतिहास में समुचित स्थान दिलवाना ही इस पुस्तक के लेखन का मेरा उद्देश्य है।
पुस्तक लेखन में ईश्वरीय अनुकम्पा , बड़ों के आशीर्वाद और आपके प्रेमपूर्ण सहयोग व मार्गदर्शन को मैं विशेष कारण मानता हूँ अपने सारे परिश्रम को आप सभी को सादर समर्पित करता हूँ ।आशा है आपको मेरा यह प्रयास सार्थक लगेगा ।भवदीयडॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : ‘उगता भारत’
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5 replies on “‘गुर्जर वंश का गौरवशाली इतिहास’ – पुस्तक का विमोचन होगा आगामी 17 जुलाई को”

अति उत्तम आदरणीय श्री राकेश कुमार आर्य जी। समाज के बहुत उपयोगी पुस्तक सिद्ध होगी यह पुस्तक।
बहुत-बहुत बधाई और आभार।

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