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भारतीय संस्कृति

दरगाह में लगी पाबंदी पर महिलाओं का विरोध

मुम्बई का हाजी अली दरगाह बरसों से धार्मिक आस्था का प्रतीक रहा है। रोज यहां हजारों पर्यटक और आस्थावान लोग आते हैं। लेकिन हाजी अली दरगाह ट्रस्ट के एक फैसले पर भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने आपत्ति जताई है। करीब छह महीने पहले ट्रस्ट ने दरगाह के पास महिलाओं के जाने पर पाबंदी लगा दी थी। महिलाएं केवल दरगाह परिसर में घूम व प्रार्थना कर सकती है लेकिन पवित्रम स्थल जहां 15वीं शताब्दी के सूफी संत पीर हाजी अली शाह बुखारी की कब्र है वहां महिलाओं के जाने पर पाबंदी लगा दी गई है। इस फैसले पर भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने आपत्ति जताते हुए कहा है कि महिलाएं वहां सालों से जाती रही हैं इस तरह से पाबंदी लगाना सही नहीं है। भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की सदस्य रुबीना ने बताया कि जब उन्होंने ट्रस्टी से मुद्दे पर बात की तो कुछ मौलवियों ने महिलाओं के सही तरीके से कपड़े न पहन कर आने का मुद्दा उठाया। यह सही है कि कुछ महिलाएं इस तरह की हो सकती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं की सभी महिलाओं पर पाबंदी लगा दी जाए। एक अन्य सदस्य नूर जहां सफीहा नियाज ने कहा की मैं वहां बचपन से जाती रही हूं। यहां तक की मैंने कब्र को छूआ भी है। पहले इस तरह का कोई मसला नहीं था। जहां तक बात आध्यात्मिक और सामाजिक मुद्दों की आती है तो महिला और पुरुष को समान अधिकार दिए गए हैं। मैं अल्लाह में विश्वास करती हूं। जब वे ही महिला और पुरुष को समान रूप से देखते हैं तो यह ट्रस्टी कौन होते हैं महिलाओं को रोकनेवाले। हाजी अली दरगाह के ट्रस्टी रिज्वान मरचेंट का पूरे मसले पर कहना है कि इस्लामी विद्वान शरीयत कानून के तहत दरगाह में महिलाओं के आने पर फतवा जारी करते हैं। हमने केवल इसमें सुधार किया है। उन्होंने कहा कि महिलाएं दरगाह के परिसर में नमाज अदा कर सकती हैं। लेकिन मैं बहनों से गुजारिश करता हूं कि वे दरगार के अंदर न जाए। मौलवियों के मुताबिक शरीयत कानून में महिलाओं के कब्र के पास जाने पर पाबंदी है। महिलाओं का कब्र के पास जाना गैर इस्लामी और पाप है। यह फैसला मुम्बई के सात अन्य दरगाहों पर भी लागू हुआ है। हाजी अली दरगाह साउथ सेंट्रल मुम्बई के वर्ली कोस्ट के अरब सागर में 500 यार्ड समुंद्र में स्थित है। यहां हजारों लोग रोजाना प्रार्थना करने और घूमने आते हैं। ट्रस्ट का कहना है कि जब से यह बात लागू की गई है कोई खास विरोध नहीं हुआ है। कई लोगों का मानना है कि यह निर्णय निहायत भेदभावपूर्ण और प्रतिगामी है। लेकिन अब महिलाओं के एक मुस्लिम संगठन ने इस पर आपत्ति जताई है।

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