Categories
राजनीति

लॉक डाउन में चूक : सरकार को जहां ‘प्रहार’ करना चाहिए था वहां नहीं किया

अमित सिन्हा

21 दिनों की लॉक डाउन के साथ, कलम के नोक की एक झटके के आदेश से भारत के तमाम कत्लखाने व बूचड़खाने बंद हो जाने चाहिए थे, चीन के एक सामान्य मांस बिक्रेता की दुकान पर आपको 112 प्रकार के पशु-पक्षियों का मांस मिलेगा, जहां पशु-पक्षियों को बड़ी ही क्रूरता और निर्दयता से मारा जाता है। कुत्तों की जीवित खाल निकाल ली जाती है, चूहों के छोटे-छोटे बच्चों को इस प्रकार गरम तेल में भूना जाता है कि वो अधमरे से रहते हैं, इन बच्चों को जीवित ही ग्राहक की थाली में परोस दिया जाता है, जिन्हें चाइनीज चटनी के साथ जीवित अवस्था में ही ग्राहक खा जाते हैं, इन मनुष्यों की दरिंदगी की अनंत कथा है, इसी दरिंदगी की कोख से निकला है कोरोना या वुहान वायरस.

अतः भारत सरकार द्वारा मानवता की ओर बढ़ाया गया पहला कदम होता, पशु पक्षियों पर होने वाले अत्याचार को खत्म करना !

फिर धीरे-धीरे सरकार को इन विषयों पर काम करना था :–

1. सारे वेश्यालय और रेड लाइट एरियों पर तत्काल प्रतिबंध।
2. गुरुकुल की स्थापना की घोषणा।
3. जितने अश्लीलता और व्यभिचार के केंद्र है उस पर लगाम।
4. धर्मांतरण पर प्रतिबंध। (क्योंकि धर्म परिवर्तन का अर्थ हैं मनुष्य का अधर्म की ओर झुकाव)
5. शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय की नि:शुल्क व्यवस्था आदि.
6. भारत को स्वदेशी तकनीक से विकसित करना.

वुहान वायरस से तो हम निश्चित ही निपट लेंगे! किन्तु उसके बाद के संकट से हम और हमारी सरकार निपटने को तैयार हैं? देखो प्रकृति ने कैसे एक झटके में मनुष्य को पिंजरे में कैद कर दिया! विश्व के सारे वायुयान बंद पड़े हैं, सनातन व्यवस्था की धज्जियां उड़ाने वालों, देखो! बैलगाड़ी का युग आने वाला है। किंतु भगवान शिव की सवारी नंदी को तो तुमने क़त्लखानों में कटवा दिया। अब कृषि और परिवहन के लिए नंदी कहां से लाओगे? मत मानो सनातन को, सनातन अपनी व्यवस्था खुद खड़ी कर लेगा। अभी पूरे विश्व के भौतिकवादियों की दृष्टि विलासिता पूर्ण वस्तुओं से दूर हैं. संपन्नता और वैभव कोने में पड़ी है और लोगों को सिर्फ अपना पेट भरने की चिंता है, संसार के किसी भी सरकार ने अन्नदाता किसानों की चिंता नहीं की, पूंजीपतियों के बिछायें हुए जाल में फंसकर कृषि के सारे प्राकृतिक संसाधनों को लूट लिया गया, बैलों को खेतों से दूर कर किसानों के हाथों में ट्रैक्टर थमा दिया तथा खेतों में रासायनिक खाद्य व कीटनाशक छिड़ककर गोवंश को क़त्लखानों में पहुंचा दिया, अब प्रकृति ने कुपित होकर सारे मार्ग बंद कर डाले हैं तो अब गोवंश के अभाव में खेती कैसे करोगे? खेती नहीं होगी तो अन्न कैसे उपजेगा और बिना अन्न के कोई जिएगा कैसे ?

जिस समाज की संवेदनशीलता मर चुकी हो उसकी रक्षा भला कौन करेगा? जब कोई समाज दानव बनने की ओर बढ़ता है, तो प्रारंभिक अवस्था में सभ्य लोगों का यह कर्तव्य है कि वह दानवी शक्तियों का बहिष्कार करें. किंतु पूरे विश्व के सभी तथाकथित सभ्य समाज ने चीन का भरपूर पोषण किया और भारत उसका सबसे बड़ा बाजार बना. यह जानते हुए भी कि पाकिस्तान में आतंकवाद का सबसे बड़ा संरक्षक चाइना ही है. आज चीन का राक्षसी तंत्र बुहान वायरस बनकर पूरे विश्व को डरा रहा है. पूरा विश्व भयभीत और कम्पित है. क्या मानवता की बात करने वाले इस दुर्घटना से कुछ सबक लेंगे?

क्योंकि कोरोना बीमारी से यदि हम बच भी गए तो किसी अन्य प्राकृतिक आपदा में मारे जाएंगे, पिछले 20 वर्षों में मनुष्य जाति ने पूरे विश्व में सर्वाधिक भूकम्प, बाढ़, तूफान, सूखा, भूस्खलन, अकाल तथा सुनामी जैसे महाविनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं को झेला है, किन्तु इसके पीछे का कारण जानने का किसी ने प्रयास नहीं किया। आज भारत की मीडिया रावण, दुर्योधन और कंस की भूमिका में है वह जनता के सामने सत्य का उजागर होने ही नहीं देती.

प्रकृति का कोप काल बनके एक न एक दिन हमें निगल ही जाएगा। अभी तो केवल प्रकृति ने भौएं ही सिकोड़ी है, जब पूरा नेत्र खोलेगा तब कैसा भीषण परिणाम होगा? एक दरिंदा समाज आखिर कब तक बचेगा? उसके पापों और अधर्मों का मूल्य सबको चुकाना होगा। सनातन नियम से दूर हो जाने वालों को प्रकृति का श्राप स्वयं लगा है, उन्हें अन्य किसी श्राप की आवश्यकता ही नहीं!

आखिर कैसे लोग हैं हम! सुधरने का नाम तक नहीं लेते, इतनी बड़ी त्रासदी के बाद भी हम पत्थर दिल लोगों का ध्यान उन निरीह पशु पक्षियों के ऊपर नहीं गया, जिनकी चित्कारों से पल-प्रतिपल ब्रह्मांड रोता है, जिनकी चीखों और क्रंदन ने हमारे पूर्वजों और पितरों को भी लज्जित कर दिया। जिनके राक्षसी कृत्यों को देखकर देवी-देवता भी शर्मसार है कि हाय! यह मैंने क्या किया; “मनुष्य रूपी दानव की यह मैंने कैसी रचना कर दी? जिसने 84 लाख योनियों के जीवन को त्राहिमाम करके रखा है। ना खुद जीता है, ना किसी प्राणी को जीने देता है.

सनातन का यह सिद्धान्त है कि मनुष्य जब विवेकहीन और दिशाहीन हो जाता है तो वह अपने मन की कल्पना से विकास को परिभाषित और क्रियान्वित करने लगता है, जिसके परिणाम स्वरूप उसके विकास के गर्भ से विस्फोट उत्पन्न होता है। पिछले 200 वर्षों में विश्व के समस्त राजनेताओं ने यही गलती की जिसके कारण आज धरती माँ कुपित है.

भागवत पुराण का छठा स्कंध उठाकर पढ़िए। सतयुग काल में भी धरती कुपित थी, यम-नियम आदि व्रतों का पालन न करने वाले दुराचारी लोग ही धरती के संसाधनों का उपभोग कर रहे थे, इसलिए धरती माता ने कुपित होकर अन्न, धान्य, वनस्पति, औषधि आदि को उत्पन्न करना बंद कर दिया था, तब राजा पृथु ने धरती माता से समाधान मांगा, धरती देवी ने राजा पृथु से कहा कि “ऋषि_मुनियों ने इससे पूर्व धरती के कल्याण के लिए कृषि_अग्निहोत्र आदि बहुत से उपाय निकालें और काम में लिए हैं, उन प्राचीन ऋषि-मुनियों के उपायों का अनुसरण कीजिए राजन..!

कृषि और अग्निहोत्र के मूल में गोवंश है। आजादी के बाद से अब तक की सरकार ने करोड़ों गोवंशों को क़त्लखानों में कटवा कर भारत की पूरी संस्कृति का कबाड़ा ही बना डाला। आज हमारे पास हवन और यज्ञ करने के लिए देसी गायों के दूध से बने देसी घी तक उपलब्ध नहीं है! यदि उपाय सामने दिख भी जाए तो भी हम उसे क्रियान्वित करने में स्वयं को असमर्थ पाएंगे क्योंकि लोलुपता के कारण मनुष्यों ने उन तत्वों का नाश कर दिया जो धरती के धारक थे, यज्ञ के संपादक थे, यज्ञ में डाले गए जितने भी तत्व थे वह धरती को धारण करने वाले थे।

पहले घर घर में चूल्हा था, गोयठा (कंडा) जलाकर खाना बनाया जाता था, सुबह शाम गोयठे के निकलने वाले धुएं से जानलेवा मच्छर कस्बों से भाग जाया करते थे, समस्त हानिकारक बैक्टीरिया व वायरस का प्रभाव लगभग खत्म हो जाता था,
फिर सरकार के संरक्षण से टीवी पर दिखाया गया कि चूल्हे से निकलने वाले धुएं से महिलाओं को फेफड़े संबंधित समस्याएं हो जाती है, रसोई से चूल्हे को निकालकर हमने हर घर में सिलेंडर रूपी बम रख दिया, प्राणवायु (ऑक्सीजन) गाय के गोबर में सर्वाधिक मात्रा में पाया जाता है, बचपन में यह बात हमें मालूम नहीं थी लेकिन जब कोई पक्षी करंट लगकर धरती पर आ गिरता तो मां कहती कि उसे गोबर सुंघा दो, हम यही करते और पक्षी थोड़ी देर बाद उठ खड़ा होता था, अब तो ऑक्सीजन भी सिलेंडर में भरकर बेचा जाता है, प्रकृति प्रदत नि:शुल्क चीजों का भी हमने सौदा कर डाला, किसी भी क्षेत्र को हमने नहीं छोड़ा जिसे आदर्श रूप से दुनिया के सामने प्रस्तुत कर सके,

गुरुकुल जो संस्कार और नैतिकता के केंद्र थे, जहां से निकलने वाले छात्र धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते थे। अंग्रेजों ने उन 7 लाख से भी अधिक गुरुकुलों को नष्ट कर दिया, हद तो तब हो गई जब स्वतंत्रता के समय 39 हजार के आसपास गुरुकुल भारत में थे, जो 2019 आते-आते मात्र 3 दर्जन से भी कम के संख्या पर पहुंचा दिया गया।

मनुष्य शुतुरमुर्ग हो चूका हैं, जो शिकारी को देख यह सोच अपना मुंह बालू के अंदर दबा लेता है की शिकारी उसे नहीं देखेगा, लेकिन वह बचता नहीं अंततः शिकारी का निवाला बन ही जाता है. हमारी नियति भी ऐसे ही लिखी है।

स्कंदपुराण पढ़िए..! उसमें धरती को धारण करने वाले सात तत्वों की चर्चा की गई है, गोवंश, ब्राह्मण, वेद, सती, सत्यवादी, अलोभी तथा दानी व्यक्ति. क्या स्वतंत्रता पश्चात किसी भी शासन तंत्र ने इन 7 तत्वों की रक्षा के लिए कुछ किया ? उनका सम्मान किया ? आजादी के बाद किसी भी सरकार ने इन सात तत्वों के अस्तित्व को बनाए रखने की पहल नहीं की और सर्वत्र अधर्म फैलता गया.

महाभारत उठाइए ! देखिए कि उसमें वेदव्यास ने क्या लिखा है, नदी, पर्वत और जंगल इन तीनों को भूधर कहा गया है. भूधर यानि तीनों ने धरती को धड़कर या पकड़कर रखा है, इन तीनों के क्षीण होने से धरती पर भूकंप, बाढ़, महामारी, ज्वालामुखी, सुनामी आदि आएंगे, किन्तु स्वार्थी मानव ने नदी, पर्वत और वनों का सफाया कर दिया, आज दक्षिण भारत की सभी नदियां प्राय: मृत है, उत्तर भारत की नदियां भी विलुप्त होने के कगार पर हैं, जंगल के जंगल हमने काट डाले और पर्वतों के सीनो को छलनी कर दिया.

हमारे पूर्वजों ने नदियों को मां कहा था, वनों की पूजा की थी, और पर्वतों के ऊपर मंदिर बनाए थे ताकि ये तीनों सुरक्षित रह सके परंतु विकास के नाम पर हमने इन तीनों को बर्बाद कर दिया।

आखिर धरती माता की वेदना कौन सुनेगा? पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश इनमें से हमने किसी को भी नहीं छोड़ा। सबको दूषित, विकृत, और क्षुब्द कर दिया। जब यही पंचमहाभूत दूषित हो गए तो इन पांच तत्वों से बना हमारा शरीर भला शुद्ध कैसे रहेगा?

दूर हो जाइए आप सनातन से! मत मानिए सनात न को! किंतु सनातन अपना मार्ग स्वयं प्रशस्त कर लेगा, आज कोरोना वायरस के डर से हम एक दूसरे से हाथ मिलाना तो दूर, एक दूसरे के पास आने से भी डर रहे हैं, क्या इसे छुआछूत कहेंगे? विधर्मियों ने ऐसे ही आचार व्यवहार को छुआछूत कहा, जबकि सनातनी ऋषियों ने इसे शौचाचार की श्रेणी में रखा था. यह शौचाचार प्राचीन भारत में ठीक वैसे ही था जैसे आज कोरोना वायरस के डर से लोग एक दूसरे को छूने तक से डर रहे हैं, शौचाचार को भेदभाव का नाम दिया गया. पिछले 100 वर्षों में बार-बार इसी भेदभाव या छुआछूत जैसे शब्दों का सहारा लेकर दुष्टों ने भारतवासियों के हृदय में एक दूसरे के प्रति घृणा व नफरत का भाव भर दिया और राष्ट्रीय एकता के अभाव में हम कमजोर होते चले गए. जिसका परिणाम देश विभाजन के रूप में सामने आया, आजादी से लेकर आज तक किसी भी सरकार ने यह दूरी कम करने का कार्य नहीं किया, परिणाम यह हुआ कि लोग सनातनी सदाचार और संस्कृति से विमुख होकर अधर्म के मार्ग पर चलने लगे. अपने ही धर्म छोड़ धर्मांतरित होकर विधर्मी बन गए. स्वतंत्रता के बाद भारत कभी भी चैन से नहीं सोया. धर्म और मजहब की आग में यह देश झुलसता रहा, किंतु सांस्कृतिक एकता की दिशा में किसी भी सरकार ने पहल नहीं की. ऐसे में भला कौन इस देश का तारणहार बनेगा?

पौराणिक ग्रंथों को उठाकर पढ़िए, भारतवर्ष का इतिहास बताता है कि जब भी धरती पर अत्याचार बढ़ा, तो दो व्यक्तियों के सामंजस्य ने ही अत्याचारियों और अराजक तंत्रों से ना सिर्फ लोहा लिया बल्कि उनका दमन भी किया. यह दो थे, पहला व्यासपीठ और दूसरा शासन तंत्र, त्रेता युग में स्वयं नारायण के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम को भी रावण जैसे राक्षस को दमन करने के लिए ऋषि वशिष्ठ का मार्गदर्शन लेना पड़ा था. द्वापर युग में कौरवों का सर्वनाश करने के लिए श्री कृष्ण को वेदव्यास की शरण लेनी पड़ी थी.
कलियुग में चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य के गठजोड़ से ही घनानंद जैसे वेद विरोधी शासक को सत्ता से हटाया गया और अलक्षेंद्र (sikandar) जैसे लुटेरें को भारत भूमि से खदेड़ दिया गया. दक्षिण भारत के हरिहर और बुक्का जो पूर्व में इस्लामिक आक्रांताओं के भय से मुसलमान बन गए थे, बाद में शंकराचार्य विद्यारण्य के प्रभाव में आकर हिंदू बने, फिर मुस्लिम आतताईयों से दक्षिण भारत की रक्षा की और विजयनगर के महान हिंदू साम्राज्य “संगम वंश” की स्थापना की. अत्याचारी औरंगजेब की सत्ता को चुनौती देने के लिए छत्रपति शिवाजी को समर्थ गुरु रामदास की शरण लेनी पड़ी थी.

अतः हे आदरणीय यशस्वी प्रधानमंत्री जी ! शासन तंत्र पर तो पिछले 6 वर्षों से आप विराजमान है किंतु व्यास पीठ पर कौन है ? आप भारत के जनता की अंतिम आस हो। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा साक्षात भगवान शिव के द्वारा बनाई हुई भारत की सर्वश्रेष्ठ आचार्य परंपरा आचार्य शंकर की परंपरा के शरण में चले जाइए, आचार्य शंकर ही भारत में अधर्मियों को हराकर दिग्विजयी हुए थे अतः विश्व विजेता के नाते वह जगतगुरु हुए, इस नाते वह धर्म सत्ता के सम्राट हुए, इस प्रकार उनके द्वारा भारत के चार कोनों में स्थापित चार मठ के आचार्य जो कि शंकराचार्य कहलाते हैं, भारतवर्ष के सर्वोच्च सार्वभौमिक धर्मगुरु हुए. इन चार आचार्यों से ऊपर सनातन धर्म के लिए निर्णय लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है. अतः प्रधानमंत्रीजी से अनुरोध है कि वह शंकराचार्य के मार्गदर्शन में जायें और उनसे धरती पर आने वाले संकट से उबरने का उपाय पूछे. जिस प्रकार राजा पृथु ने धरती देवी से पूछा था फिर धरती देवी के परामर्श का पालन कर राजा पृथु के जनकल्याणकारी कार्यों के कारण धरती का नाम पृथ्वी पड़ा

अतः हे यशस्वी प्रधानमंत्री ! जाइए ! पूरी पीठ गोवर्धन मठ की शरण में जाइए, जहां विश्व में वैदिक गणित के एकमात्र मूर्धन्य विद्वान आचार्य शंकर की परंपरा में शंकराचार्य के रूप में विद्यमान हैं, जिनके 0/1 पर लिखे दर्जनों ग्रंथों पर विश्व की टॉप यूनिवर्सिटियों सहित विश्व के 110 देशों में शोध हो रहा है, जिनसे नासा, संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष भी परामर्श लेता हो. जिनके चरणों में बड़े-बड़े वैज्ञानिक ज्ञान की लालसा में घंटों बैठते हैं. कैंब्रिज,ऑक्सफोर्ड नासा के प्रोफेसर सहित विश्व के सर्वोच्च वैज्ञानिक जिनसे मार्गदर्शन प्राप्त करते हो, ऐसे विद्वान से भारत सरकार का दूर होना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण हैं. जो सन्यासी पिछले 28 सालों से बिना किसी लालच और भय के भारतवर्ष की सुरक्षा हेतु सत्ता तंत्र को लगातार चेतावनी दे रहा हो, वह कोई सामान्य मानव तो नहीं हो सकता!

अतः हे यशस्वी प्रधानसेवक! जाइए ! संसार की समस्त समस्याओं का समाधान आपको पूरी पीठ के गोवर्धन मठ में ही मिलेगा।
जाइए! इतिहास में अमर हो जाइए। व्यासपीठ और शासन तंत्र के गठजोड़ से ही भारत को अराजक तंत्रों से मुक्ति मिलेगी. तभी भारत सोने की चिड़िया कहलाएगी तभी भारत विश्वगुरु भी बनेगा. ॐ

Comment:Cancel reply

Exit mobile version