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धर्म बना कोरोना महामारी का संकट

प्रमोद भार्गव

कोरोना महामारी के सामुदायिक स्तर पर फैलने का संकट बढ़ गया है। देश में संपूर्ण बंदी के बावजूद राजधानी दिल्ली के निमामुद्दीन क्षेत्र की एक मस्जिद में मजहबी पैगाम देने आए तब्लीगी जमात मरकज (केंद्र) ने यह खतरा बढ़ाया है। विदेश से आए इन तब्लीगी कार्यकताओं की संख्या 2100 बताई जा रही है। 12 मार्च के बाद ये संदेशवाहक सिलसिलेवार समूहों में निकलकर पूरे देश में गए और मस्जिदों में इस्लाम का धार्मिक संदेश दिया। 22 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई संपूर्ण देशबंदी और दिल्ली में लगे कर्फ्यू के बावजूद बड़ी संख्या में कार्यकर्ता मस्जिद में रुके रहे। कई कार्यकर्ता दिल्ली से निकलकर तेलंगाना पहुंचे, यहां इसी जमात के छह लोगों की कोरोना से मौत हुई। दिल्ली और देश के अनेक राज्यों में इनके दखल के बाद कोरोना पाॅजिटिव की संख्या का सूचकांक एकाएक बढ़ गया। यदि इस महामारी ने संक्रमित कार्यकर्ताओं से सोशल ट्रांसमिशन का रूप ले लिया तो देश के चिकित्सा संस्थानों को कोरोना प्रभावितों का उपचार करना कठिन हो जाएगा। इस घटना ने जता दिया है कि बंदी को ठेंगा दिखाते हुए धार्मिक समुदाय कैसे महामारी फैलाने का देशव्यापी कारण बन रहे हैं।

निजामुद्दीन मरकज मस्जिद में पुलिस कार्रवाई के दौरान करीब 2100 लोग मिले थे, जिनमें से 281 विदेशी नागरिक हैं। ये विदेशी 16 देशों से आए हुए हैं। इनमें इंडोनेशिया से 72, श्रीलंका 34, म्यांमार 33, किर्गिस्तान 28, मलेशिया 20, नेपाल 9, बांग्लादेश 9, थाईलैंड 7, फिजी 4, इंग्लैंड 3, अफगानिस्तान, अल्जीरिया, जिबूती, सिंगापुर, फ्रांस और कुवैत से एक-एक नागरिक आए हुए थे। बाकी लोग भारत के ही विभिन्न राज्यों से आए थे। इस पूरे मामले में हैरानी है कि पूरे मार्च लगभग 2000 से भी ज्यादा लोगों का जमावड़ा इस मस्जिद में रहा लेकिन गृह मंत्रालय व अन्य देशी-विदेशी खुफिया तंत्र से जुड़े जिम्मेवार अधिकारियों को इसका पता नहीं चला। पल-पल की खबर देने वाले मीडिया की आंख भी इस मस्जिद तक नहीं पहुंची। जबकि यह मस्जिद दिल्ली के केंद्रीय स्थल निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के बिल्कुल निकट है। यह मजमा तब जुटा, जब कोरोना संकट के चलते इन दिनों दूसरे देशों से आने वाले प्रत्येक विदेशी-देशी नागरिक की निगरानी की जा रही है। बावजूद विदेशी न केवल इस मस्जिद में पहुंचे बल्कि लंबे समय तक टिके रहे और फिर देश की चारों दिशाओं में फैलकर कोरोना पाॅजिटिवों की संख्या बढ़ाने का कारण भी बन गए। दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री ने इस खतरनाक स्थिति के बारे में बताया कि जमात में शामिल 700 लोगों को अलग किया है, जबकि 335 को विभिन्न सरकारी अस्पतालों में भर्ती कराया है। 24 लोगों के संक्रमित होने की पुष्टि हुई है। जब देश के सभी हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख धर्मस्थलों के पट श्रद्धालुओं के लिए बंद हैं, तब कानूनी पाबंदियों को धता बताते हुए यह धार्मिक अनुष्ठान देश के लोगों के जीवन से खिलवाड़ का पर्याय तो बन ही गया है, विवाद और संदेह के घेरे में भी आ गया है। जमात के विदेश से आए लोगों को मानव-बम तक कहा जा रहा है।

टीवी चैनल पर शिया बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने कहा है कि ‘तब्लीगी जमात दुनिया की सबसे खतरनाक जमात है। यह आतंकवादियों के लिए ‘मानव-बम’ तैयार करती है। जमात ने अपने ही लोगों को संक्रमित कर भारत में कोरोना वायरस फैलाने का काम किया है, जिससे भारत में अधिकतम मौतें हों? इन्हें मौत की सजा मिलनी चाहिए।’ जमात के बचाव पक्ष में आए मौलाना खालिद रशीद फरंगी का कहना है, ‘जमात एक धार्मिक संगठन है, जो दुनियाभर में फैला हुआ है। ये लोग प्यार का पैगाम दुनिया में पहुंचाने की कोशिश करते हैं। इस संदेश को प्रचारित करने के लिए भारत में तशरीफ लाते हैं और मरकज निजामुद्दीन में रहते हैं।’ निजामुद्दीन स्थित मरकज इस संगठन का अंतराष्ट्रीय मुख्यालय है। यह प्रत्यक्ष रूप में दुनियाभर में संचालित गतिविधियों का समन्वय करता है। आधिकारिक रूप से यह मुख्यालय ऐसे इस्लामी स्वयंसेवकों के समूह बनाता है, जो खुद धन खर्च करने में सक्षम हों। 10-12 की संख्या में बने यही समूह (जमात) अनेक देश व नगरों में जाकर लोगों को अल्लाह के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। ये समूह और धर्म-उपदेशक इस मिशन से जुड़े लोगों को आर्थिक मदद भी करते हैं। इस संवाद-संप्रेषण में इस्लाम से जुड़ी धर्म संबंधी किताबों में उल्लेखित संदेशों की बजाय व्यक्तिगत संवाद को महत्व दिया जाता है। इनका भारत में रह रहे विभिन्न धार्मिक समुदायों से समन्वय व समरसता कायम करने के लिए न तो कोई सार्वजनिक कार्यक्रम होता है और न ही इनके पैगाम में यह कोशिश शामिल रहती है। नतीजतन इतने विशाल संगठन की वास्तव में किन-किन मकसदों की पूर्तियों के लिए गतिविधियां चलाई जा रही हैं, उनको जानना मुश्किल होता है।

व्यक्तिगत वार्तालाप की यही गोपनीयता मरकज को संदेह के कठघरे में खड़ा करती है। इस तथ्य की पुष्टि तब्लीगी जमात दिल्ली के प्रमुख मौलाना मोहम्मद साद के आपत्तिजनक वीडियो से भी होती है। मरकज के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर साद ने इन संदेशों में लोगों को कोरोना संक्रमण के दौरान भारत सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के खिलाफ मस्जिद में जमा होने के लिए उकसाया था। हालांकि देश के अन्य इस्लामी विद्वानों ने हिदायत दी थी कि ‘लोग अपने घरों में नमाज पढ़ें और मस्जिदों में भीड़ जमा न करें।’ जबकि मरकज के जिम्मेवारों ने ऐसा कोई बयान जारी नहीं किया। बल्कि जब दिल्ली पुलिस इन लोगों को मस्जिद से बेदखल कर रही थी, तब ये लोग टीवी पत्रकारों को बोल रहे थे कि जीवन और मौत तो अल्ला की मर्जी है, वायरस क्या बिगाड़ लेगा?

इस अल्पज्ञात तब्लीगी जमात इस्लामी मिशनरी आंदोलन की स्थापना 1920 के दशक में हरियाणा के मेवात में हुई थी। मुहम्मद इलियास अलकंथवली ने देवबंदी आंदोलन की शाखा के रूप में इसे स्थापित किया था। यह संगठन देश के बंटवारे के संक्रमण काल 1946-47 में दिल्ली की निजामुद्दीन बस्ती में आ गया। तभी से यह सदस्य संख्या की दृष्टि से बड़ा आकार लेता चला गया और इसने अपने संदेशों को भारत समेत पूरी दुनिया में फैलाना शुरू कर दिया। राजनीति और मीडिया से समान दूरी बनाए रखने वाले इस संगठन के वर्तमान में करीब 15 करोड़ निष्ठावान अनुयायियों के रूप में सदस्य हैं और 200 देशों में यह फैला हुआ है। भारत विभाजन के बाद इस संगठन ने 1971 में पाकिस्तान और बंगलादेश में प्रवेश किया और फिर दक्षिण-पश्चिम एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ अफ्रीका में दखल दिया। संयुक्त अरब अमीरात के सभी देशों के साथ अब इस संगठन की मौजूदगी यूरोप, अमेरिका और रूस में भी है। यूरोपीय महाद्वीपों में फ्रांस में इसकी मजबूत पकड़ है। संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रसिद्ध संघीय आपराधिक खुफिया जांच ऐजेंसी ‘फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन’ (एफबीआई) का दावा है कि अमेरिका में तब्लीगी जमात के करीब 50 हजार सदस्य सक्रिय हैं। इसका एक सदस्य अमेरिका में हुए 9/11 की बमबारी से जुड़ा था। प्यू रिसर्च सेंटर की धर्म और सार्वजनिक जीवन परियोजना इकाई का अनुमान है कि इस संगठन के डेढ़ करोड़ से लेकर 8 करोड़ तक लोग पूरी दुनिया में फैले हुए हैं।

वास्तव में धर्म-चर्चा का जो मर्म है, वह जीवन को सकारात्मक ढंग से जीने के सूत्र देता है। राजनीतिक, शैक्षिक, आर्थिक व धार्मिक लक्ष्यों में समरसता बिठाने का काम करता है। किसी भी प्रकार की धार्मिक कट्टरता को उदारता में बदलता है। यह सब परस्पर सामूहिक वैचारिक संवाद से ही संभव हो पाता है। किंतु वर्तमान में कोरोना संकट के चलते सामूहिकता के घातक परिणाम देखने में आ रहे हैं। आज कोरोना महामारी के चलते इटली की गिनती सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में है। 12000 से भी ज्यादा लोगों की वहां मौत हो चुकी है और एक लाख के करीब कोरोना संदिग्ध हैं। इटली की यह हालात यहां फरवरी माह में खेले गए फुटबाॅल मैच के कारण हुई। इसमें 40 हजार दर्शक जुटे थे। खेल समाप्ति के बाद ये लोग पूरे देश में फैलते चले गए और देखते-देखते समूचे इटली को कोरोना संक्रमण ने अपनी गिरफ्त में ले लिया। यह स्थिति सामुदायिक संक्रमण का परिणाम थी। भारत में फिलहाल देशबंदी के चलते कोरोना सामाजिक स्थानांतरण का रूप नहीं ले पाया है। लेकिन इस धार्मिक आयोजन ने यह आशंका पैदा कर दी है कि कहीं यह खतरा अब सामुदायिक संक्रमण में न बदल जाए?

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