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भारतीय संस्कृति

उपनिषदों की शिक्षाएं और उनका महत्व

उपनिषद् भारतीय वैदिक वांग्मय के महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं । इनका प्रमुख विषय ब्रह्मविद्या तथा आत्मा और परमात्मा के संबंध के बारे में है । स्थूल से सूक्ष्म की ओर चलने की शिक्षा भी हमें उपनिषदों के माध्यम से ही प्राप्त होती है। ब्रह्म, जीव और जगत्‌ का ज्ञान पाकर आत्मा का परिष्कार करना और अपने जीवन को संसार के विषय भोगों से विरक्त कर ब्रह्म की प्राप्ति के लिए समर्पित करने की शिक्षा भी हमें उपनिषदों के द्वारा ही प्राप्त होती है । उपनिषदों का यह चिंतन हम भारतवासियों को इनके रचना काल से ही प्रभावित करता आया है ।

उपनिषदों के चिंतन ने भारत वासियों को संसार की ऐषणाओं से मुक्त होने का अवसर प्रदान किया । यही कारण है कि भारतवर्ष के लोग आज भी संसार के अन्य देशों के लोगों की अपेक्षा कम आपराधिक प्रवृत्ति के होते हैं । उनमें एक दूसरे के साथ समन्वय स्थापित कर चलने की एक ऐसी पवित्र भावना होती है जो उन्हें दूसरों के प्रति सहज , सरल ,उदार और सहिष्णु बनाती है । यही कारण है कि गीता जैसे ग्रंथ पर भी उपनिषदों की छाया पड़ी है । गीताकार जितना भी हमें सांसारिक विरक्ति का पाठ पढ़ाता है , वह सब इसी बात का प्रमाण है कि गीता पर उपनिषदों की छाया है ।

उपनिषदों ने प्राचीन काल से ही भारत के लोगों को यह शिक्षा देने का काम किया है कि संसार का माया मोह निरर्थक है । इसमें फंसने का अभिप्राय है कि व्यक्ति अपने आप को ही मार रहा है । उपनिषदों ने संसार को एक घोर घना जंगल माना है । जिसमें व्यक्ति आकर अपने वास्तविक ध्येय से अथवा मार्ग से भटक जाता है । इस भटकन को समाप्त कर अपने ध्येय पर ध्यान देना उपनिषदों की शिक्षा है । यही कारण है कि भारत के लोग भौतिकवादी चकाचौंध को अपने लिए कभी भी उचित नहीं मानते । आज जब भारत पश्चिम की भौतिकवादी चकाचौंध में चुंधियाया हुआ है तब भी भारत में अन्य देशों से अधिक लोग ऐसे हैं जो ईश्वर को याद रखते हैं और अपने कामों को बहुत अधिक ईमानदारी के साथ निष्पादित करने का प्रयास करते हैं । उपनिषदों की शिक्षा का ही प्रभाव है कि भारत के लोग भौतिकवादी चकाचौंध को अपने लिए उपयुक्त नहीं मानते । भारत के लोगों की ऐसी सोच का कारण उपनिषदों की दार्शनिक विचारधारा ही है।

उपनिषदों की एक बड़ी विशेषता यह है कि इनमें कथाओं के माध्यम से बड़ी बात को बहुत सरल ढंग से समझाने का प्रयास किया गया है । जिससे भारतीय जनमानस पर इनका अमिट प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है । यह अलग बात है कि लोग संस्कृत नहीं जानते पर संस्कृति की स्वाभाविक रूप से पालन करने की अद्भुत कला भारतीय लोगों में देखी जाती है। जिसे वे परम्परा से एक दूसरे से सीखकर , समझकर या सुनकर अपना लेते हैं और उसके अनुसार अपने जीवन को ढाल लेते हैं। भारत के हिन्दुओं की यह भी एक विशेषता है कि यहाँ लोगों को किसी भी अनैतिक , वेद विरुद्ध , शास्त्रविरुद्ध ( जिसे आज की भाषा में कानून और संविधान के विरुद्ध कहा जाता है ) बात को यदि एक बार समझा दिया जाए तो उसे न करने की ये सौगंध उठा लेते हैं ।

भारतीय लोग समाज से डरते हैं

यदि एक बार भारत में हिन्दुओं के मस्तिष्क में यह बात बैठ जाए कि अमुक कार्य के करने से पाप होता है तो उसे यह नहीं करते। क्योंकि इनको इस बात का भली प्रकार ज्ञान है कि किए हुए गलत कार्य का परिणाम आज नहीं तो कल यहाँ तक कि अगले जन्म में भी जाकर भोगना पड़ेगा । तब ऐसे कार्य से समय रहते बचने में ही लाभ है । इसे पश्चिम के लोग भारत के लोगों की ‘ धर्मभीरुता ‘ कहते हैं । कई इसे पाखण्ड या भारतवासियों का अंधविश्वास कह कर भी संबोधित करते हैं । माना कि इनमें कुछ चीजें ऐसी जुड़ी हुई हों जो अंधविश्वास आदि को दर्शाती हैं , परंतु वास्तविकता यह है कि यह धर्मभीरुता न होकर भारतीयों के भीतर अनैतिक कार्यों से डरने की भावना है । भारत के लोग न केवल धर्म से डरते हैं अपितु वह समाज से भी डरते हैं । क्योंकि समाज धर्मानुकूल आचरण करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति पर दबाव डालता है और उसके कार्य व्यवहार की समीक्षा भी करता रहता है। जो लोग धर्मानुसार आचरण न करके अनैतिक कार्य करते हैं , उन्हें समाज बहिष्कृत करने का दंड भी केवल और केवल भारत में ही दिया जाता है । निश्चित रूप से यह दण्ड संसार के अन्य सभी दण्डों से कहीं अधिक कठोर है । यही कारण है कि भारत के लोग समाज की मान – मर्यादाओं से भी भय खाते हैं । उन्हें पता है कि समाज के लोग उनके किसी भी अनैतिक कार्य का समर्थन नहीं करेंगे । उपनिषदों की दार्शनिकता का ही यह प्रभाव है कि भारत के लोग समाज नाम की एक संस्था को चलाते हैं । जिसका कहीं कोई कार्यालय नहीं , जिसका कोई सदस्य नहीं पर इसके उपरान्त भी हर घर में उसका कार्यालय है और हर व्यक्ति उसका सदस्य है ।

भारतीय संस्कृति के इस उज्ज्वल पक्ष को उजागर कर उबारने की आवश्यकता है । जिससे भारतवासियों के बारे में शेष संसार को सही ज्ञान हो सकता है कि ये लोग अनैतिक कार्यों को करने से स्वाभाविक रूप से बचते हैं ।

किस्से – कहानियों को भारत के लोग आज भी बड़े चाव से सुनते हैं और उनके निहित अर्थों को समझने के लिए भी प्रयास करते हैं। गांव – देहात में आज भी कई – कई लोग समूह बनाकर किस्से – कहानियों के माध्यम से गम्भीर बातें करते देखे जा सकते हैं । यह सारा का सारा प्रभाव भारत के जनमानस पर उपनिषदों के माध्यम से पड़ा हुआ ही दिखाई देता है। उपनिषदों में ऋषि लोग अपने ब्रह्मचारियों को या जिज्ञासु साधकों को किस्से – कहानियों या कथाओं के माध्यम से अपने ज्ञान को प्रदान करते थे । वही परम्परा आज भी बड़े – बुजुर्ग भारत के समाज में अपनाए हुए हैं।

कर्इ सुन्दर आख्यानों और रूपकों के माध्यम से उपनिषदों की विषय वस्तु को हमारे विद्वान ऋषियों ने बहुत ही रोचक और ज्ञानप्रद बना दिया है । यही कारण है कि विश्व के कई दार्शनिक उपनिषदों को सबसे उत्तम ज्ञानकोश मानते हैं।

आज भी गूढ़ प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए भारतीय समाज में लोग किसी श्रेष्ठ महात्मा के पास जाते हैं। यह परम्परा भी भारत के समाज में उपनिषदों के माध्यम से ही आई है। क्योंकि उपनिषदों में अनेकों ऋषियों ने अपने शिष्यों की जिज्ञासाओं का अपने आख्यानों में समाधान किया है । जिससे उपनिषद भारतीय आध्यात्मिक दर्शन के स्रोत और ब्रह्मविद्या के सरोवर बन गये हैं। इस ज्ञान – सरोवर में हमें ऐसा लगता है जैसे यहां आकर अपनी – अपनी प्यास को हर एक जिज्ञासु और ज्ञानपिपासु आकर बड़ी सहजता और सरलता से बुझा रहा है। इतना सरल लेकिन गहरा ज्ञान उपनिषदों में छुपा हुआ है कि व्यक्ति यदि उनकी शिक्षाओं को हृदयंगम कर ले तो वह आप्तकाम हो जाता है।

अज्ञात और अनन्त की खोज

ऋषियों ने अपने हृदय की बातों को काव्यमय शैली के माध्यम से बड़ी सुन्दरता से अभिव्यक्ति प्रदान की है । काव्यमय अभिव्यक्ति के माध्यम से ये ऋषि लोग अपने शिष्यों को अज्ञात और अनन्त की खोज कराने की प्रेरणा देते हैं और उस परमपिता परमेश्वर के निराकार , निर्विकार , असीम औअपरम्पार स्वरूप को प्रकट कराने में सफल होते दिखाई देते हैं ।

अपनी अद्भुत शैली में ऋषियों ने उपनिषदों में मुख्य रूप से ‘आत्मविद्या’ , ब्रह्म और आत्मा के स्वरूप, उसकी प्राप्ति के साधन और आवश्यकता को बहुत ही सुन्दर शैली में प्रकट किया है। उपनिषदों के भीतर हम आत्मज्ञानी के स्वरूप, मोक्ष के स्वरूप आदि अवान्तर विषयों के साथ ही विद्या, अविद्या, श्रेयस, प्रेयस, आचार्य आदि पर हम ऐसा ज्ञान प्राप्त करते हैं जो जीवन भर हमारे लिए उपयोगी हो सकता है और हमारे इहलोक और परलोक दोनों को सुधार सकता है। तत्सम्बंधी विषयों पर भी भरपूर चिन्तन उपनिषदों में उपलब्ध होता है।

भारत का यह अत्यन्त प्राचीन संस्कार है कि ऋषियों के माध्यम से इन सभी विषयों पर यदि कहीं चर्चा हो रही हो तो लोग उसे आज भी बड़े ध्यान से सुनते हैं। यह इस बात को प्रकट करने वाला प्रमाण है कि भारत के लोगों में आध्यात्मिक चेतना आज भी है और यह उन्हें परम्परा से एक संस्कार के रूप में प्राप्त हुई है । यही आध्यात्मिक चेतना लोगों को आज भी किसी भी प्रकार का कोई भी अनैतिक या गलत कार्य करने से रोकती है। यही आध्यात्मिक चेतना है जो कि भारत के लोगों को ऐसा कुछ करने के लिए प्रेरित करती है जो समाज , राष्ट्र और प्राणीमात्र के हित में हो।

उपनिषदों में समन्वय की भावना सर्वत्र फैली हुई दिखाई देती है , मानव और प्राणीमात्र के बीच समन्वय का अमृतोपम रस सा घुलता हुआ दिखाई देता है। यह अमृतोपम रस ही वह प्रेम है जो हम सब को एक दूसरे से बांधता है , जोड़ता है और एक दूसरे के प्रति संवेदनशील होने की प्रेरणा देता है ।

भारत के लोग सात्विक प्रवृत्ति के होते हैं । इसका कारण यह है कि वह सभी प्राणियों के जीवन का सम्मान करते हैं । मांसाहार से घृणा करते हैं और मांसाहार को ईश्वरीय व्यवस्था के लिए भी खतरनाक मानते हैं । यदि भारत के लोग मांसाहारी होते तो अब तक अनेकों जीवधारियों को संसार से समाप्त कर चुके होते । संपूर्ण भूमण्डल पर अधिकांश प्राणधारियों का जीवित या अस्तित्व में बचे रहने का कारण यही है कि भारतवासियों ने प्राचीन काल से उनके जीवन का सम्मान किया है । हिन्दुत्व की चेतना का यह स्वर संपूर्ण भूमण्डल के सभी जीवधारियों को जीने का अधिकार देता है । जिन लोगों ने मनुष्य को जीने का संवैधानिक अधिकार देकर यह शोर मचाने का प्रयास किया है कि सबसे बड़े मानवतावादी वे ही हैं , उन्हें यह पता होना चाहिए कि भारत का मानवतावाद तो संपूर्ण भूमण्डल के सभी जीवधारियों पर लागू होता है । हिन्दुत्व की चेतना का यह स्वर सचमुच सबसे ऊंचा है । जो उसे अपने आर्षग्रंथों और विशेष रूप से उपनिषदों से प्राप्त हुआ है ।

उपनिषद हमें यह भी शिक्षा देते हैं कि जो एक दूसरे के पास गुण हैं उन्हें हम परस्पर आदान-प्रदान कर लें अर्थात गुणचोर होने की प्रेरणा उपनिषदों के माध्यम से ही हमें मिलती है । गुणचोर होने की यह भावना जीवन भर हमारे काम आती है । इससे व्यक्ति सद्गुणी होता जाता है और अपने अवगुणों को त्यागता चला जाता है। भारत के उपनिषदों में ज्ञानमार्ग और कर्ममार्ग, विद्या और अविद्या, सम्भूति और असम्भूति के समन्वय का भी उपदेश है। उपनिषदों में कभी-कभी ब्रह्मविद्या की तुलना में कर्मकाण्ड को बहुत हीन बताया गया है। र्इश आदि कर्इ उपनिषदें एकात्मवाद का प्रबल समर्थन करती हैं।

मुमुक्षुजन की अविद्या नष्ट हो जाती है

ब्रह्मविद्या का द्योतक है। जितने तार्किक और बुद्धिसंगत दृष्टिकोण से उपनिषदों में ब्रह्मविद्या को ऋषियों के द्वारा अभिव्यक्ति प्रदान की गई है उतनी सुंदर अभिव्यक्ति संसार के किसी अन्य ग्रंथ में हमें उपलब्ध नहीं होती । वैदिक आर्षग्रंथों में इस विद्या के अभ्यास से मुमुक्षुजन की अविद्या नष्ट हो जाती है । मुमुक्षुजन यह जान व समझ जाते हैं कि संसार की ऐषणाओं में फंसकर तो केवल जीवन को नष्ट करना मात्र है । वास्तविक आनन्द तो ब्रह्मविद्या की प्राप्ति कर आत्मा की तृप्ति करने में है । ऐसे जिज्ञासु और मुमुक्षुजन को वास्तविक ब्रह्मविद्या की प्राप्ति हो जाती है । जिससे मनुष्यों के सांसारिक दुख सर्वथा शिथिल हो जाते हैं अर्थात कट जाते हैं ।

उपनिषदों में देवता-दानव, ऋषि-मुनि, पशु-पक्षी, पृथ्वी, प्रकृति, चर-अचर, सभी को माध्यम बनाकर रोचक और प्रेरणादायक कथाओं की रचना की गयी है। इन कथाओं का उद्देश्य वास्तव में वेद के मन्तव्य को जिज्ञासु ब्रह्मचारी को हृदयंगम करा देना है । ऋषियों ने वेद की मान्यताओं , धारणाओं , सिद्धान्तों को कथाओं के माध्यम से अपने आख्यानों के द्वारा अपने शिष्यों के भीतर उतारने का प्रयास किया । उनके इस प्रकार के प्रयास से वेदों का गूढ़ ज्ञान थोड़ा सरल हो गया है । जिससे विद्यार्थी को समझने में सुविधा होती है । ऋषियों ने अपने शिष्यों को वेदों की गूढ़ बातों को समझाने के लिए ब्रह्मा, विष्णु, महेश, अग्नि, सूर्य, इन्द्र आदि देवताओं से लेकर नदी, समुद्र, पर्वत, वृक्ष तक को अपनी कथाओं का पात्र बना दिया है । जिससे कथाएं बहुत ही लोकप्रिय हो गई।

उपनिषद् गुरु-शिष्य परम्परा के द्वारा विभिन्न दृष्टान्तों, उदाहरणों, रूपकों, संकेतों और युक्तियों द्वारा आत्मा, परमात्मा, ब्रह्म आदि का स्पष्टीकरण बहुत ही उत्तमता और सफलता के साथ प्रस्तुत करने में सफल रहे हैं ।रयि की कथा , कार्तवीर्य की कथा, नचिकेता की कथा, उद्दालक और श्वेतकेतु की कथा, सत्यकाम जाबाल की कथा आदि ऐसी कई कथाएं हैं जो हमें जीवन और जगत के बारे में बहुत कुछ समझाती हैं।

डॉ राकेश कुमार आर्य , संपादक : उगता भारत

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