आर्य / हिंदुओ !पहचानो अपने अतीत को : यह थे धरती के साथ द्वीप और भरत खंड के नौ खंड

भारत के पुराण इतिहास की घटनाओं के बारे में हमें अच्छी जानकारी देते हैं । पुराणों के अनुसार धरती के सात द्वीप थे- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। इसमें से जम्बू द्वीप जिसे आजकल हम यूरेशिया के नाम से जानते हैं , इन सबके मध्य स्थित था। एक समय था जब इस सारे जंबूद्वीप पर आर्यों का शासन था । विधर्मी ईसाइयत और इस्लाम की जब आंधी चली तो सारे जंबू दीप को इन दोनों मजहबों की आंधी ने अपने रंग में रंगने का खूनी अभियान चलाया । आर्यों ने इन दोनों प्रकार की मजहबी आंधियों से लड़ने का भरसक प्रयास किया । परंतु यह खूनी आंधी खूनी क्रांति करने में सफल रही । इस प्रकार आज के यूरेशिया के सारे देश कभी हिंदुओं के ही देश हुआ करते थे । इस्लाम ने अपने नाम के 56 देश खड़े करने में सफलता प्राप्त की तो ईसाइयत ने भी लगभग 4 दर्जन देश मजहब के नाम पर खड़े कर लिये । दोनों ने खूनी संघर्ष के माध्यम से और आर्यों को क्षति पहुंचाते हुए इतना बड़ा भूभाग आर्य हिंदुओं से छीन लिया । हमको इस बात में उलझा दिया कि आर्य विदेशी थे । हम आज तक यह तय नहीं पाए कि आर्य विदेशी थे या हमारे ही पूर्वज थे ? इसी भूलभुलैयां में हम यह भी भूल गए कि हम कहां तक शासन करते थे और हम को काट – काटकर ही इस्लाम और ईसाइयत ने हमारे विशाल भूभाग को हमसे छीन लिया।

एक समय हम संपूर्ण जंबूद्वीप पर शासन करते थे तो एक समय फिर वह भी आया जब शासन घटकर भारतवर्ष तक सीमित हो गया। जम्बू द्वीप के 9 खंड थे :- इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भरत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय।

इसमें से भरत खंड को ही भारतवर्ष कहते हैं । भरतखंड से ही स्पष्ट है कि भारत जम्बूद्वीप का एक खंड था अर्थात एक टुकड़ा , एक भाग या एक हिस्सा था। जिसका नाम पहले अजनाभ खंड था। यह अजनाभ भरत के पूर्वज थे । भारत को कभी भरतखंड तो कभी अजनाभ खंड जैसे अलग-अलग नामों से क्यों जाना जाता रहा ? – इसको समझने के लिए एक उदाहरण दिया जा सकता है । भारत का सबसे प्राचीन क्षत्रिय राजवंश सूर्यवंश है । जिसे मनु महाराज द्वारा स्थापित किया गया। सूर्यवंश नाम इसे इसलिए दिया गया कि हम सूर्य अर्थात प्रकाश की उपासना करने वाले लोग हैं । आर्यों का शासन सूर्य के नाम से , ऊर्जा के नाम से , प्रकाश के नाम से शासन करेगा । क्योंकि उस का प्रमुख उद्देश्य संसार से अज्ञान के अंधकार को मिटाना होगा । इसलिए क्षत्रियों का यह सूर्यवंश शासन करने लगा ।

कालांतर में इसी वंश में इक्ष्वाकु नाम के प्रसिद्ध पराक्रमी सम्राट हुए तो उनके पराक्रम और यश को अमर रखने के लिए सूर्यवंश का नाम ही इक्ष्वाकु वंश हो गया । फिर इसी में रघु नाम के प्रतापी शासक हुए तो इसी कुल का नाम आगे चलकर रघुवंश हो गया। अब रामचंद्र जी सूर्यवंशी भी हैं , इक्ष्वाकु वंशी भी हैं , और रघुवंशी भी हैं । जब उनको इन तीनों नामों से पुकारा जाता है तो इससे एक ही वंश परंपरा स्पष्ट होती है । इसी प्रकार भारत के बारे में समझ लेना चाहिए कि अजनाभ खंड कहो या भरतखंड कहो या आर्यावर्त कहो या भारत कहो – यह सभी एक ही नाम परंपरा को स्पष्ट करते हैं ।

इस भरत खंड के भी नौ खंड थे- इन्द्रद्वीप, कसेरु, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप, सौम्य, गंधर्व और वारुण तथा यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उनमें नौवां है। इस संपूर्ण क्षेत्र को महान सम्राट भरत के पिता, पितामह और भरत के वंशों ने बसाया था।

आज अपने इस गौरवपूर्ण इतिहास को समझ कर उन षड्यंत्रों के प्रति सावधान , सचेत , सचेष्ट और उठ खड़े होने की आवश्यकता है जो आर्यों के या हिंदुओं के अस्तित्व को ही मिटा देना चाहते हैं। अपने गौरवपूर्ण अतीत को पहचानो और वर्तमान को संवार कर उज्जवल भविष्य की योजना पर विचार करो। भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति इसी उद्देश्य से कार्य कर रही है। उसके साथ जुड़िए और देश सेवा का अवसर प्राप्त कीजिए।

डॉ राकेश कुमार आर्य

संपादक : उगता भारत

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