गुरु ग्रंथ साहिब में मांस शराब नशे आदि का खंडन

दसों गुरू और भक्त जन जिनकी वाणी गुरू ग्रन्थ साहब में दर्ज है, मांस शराब आदि के सेवन को महापाप मानते थे। आइये हम सभी जन गुरुनानक देव जी के 550वें प्रकाशोत्सव के पावन पर्व पर उनकी शिक्षाओं पर चलते हुए अपने जीवन में मद्य मांसादि का सेवन कदापि न करने का संकल्प लें जिससे कि इस पर्व को मनाना वास्तव में सार्थक हो सके।

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मनुष्यपन इसी में है कि हम पाप की कमाई से अपना पेट न भरें। उस की प्रजा रूपी प्राणियों को दुःख देकर उनके प्राण लेकर या किसी का अधिकार छीन कर या चोरी ठग्गी आदि पाप कर्मों से पेट की आग को न बुझायें। न ही बुद्धि के नाश करने वाले तामसिक पदार्थों का सेवन करें। हमारा आहार सात्विक हो, जिस को खा कर संयम पूर्वक सादा और स्वस्थ जीवन व्यतीत करें। चूकि मांस शराब और दूसरे सब नशों का सेवन करना पाप, अधर्म और तमोगुण उत्पन्न करने वाला है, अतः इन का कभी सेवन न करें। प्राचीनवैदिक ऋषियों का आशय भी यही है कि मनुष्य शुभ कर्म करता हुआ कम से कम सौ वर्ष तक सुख पूर्वक जीने की इच्छा करे।

गुरू अर्जन देव जी ने भी साधु पुरुषों का यही लक्षण बताया है कि –

कोटि पतित जाकै संगि उधारI एक नरंकार जाकै नाम अधार।।
सर्व जियां का जानै भेओ। कृपा निधान निरंजन देओ॥३॥
(गोड़ी म०५)

अर्थात – साधु पुरुष वह है जो करोड़ों गिरे हुओं पतितों का उद्धार करता है और लाखों पापियों को सन्मार्ग पर लाता है। एक परमात्मा को अपना मित्र और आधार मानता है। प्राणीमात्र से प्रेम करता है, जो सब पर कृपा करता और निर्लोभ है।

ना को वैरी नहीं बिगाना, सगल संग हम को बन आई॥
(कानड़ा म०५)

परन्तु दुःख की बात है कि सिखों के नेता और उपदेशक मांस, शराब आदि नशों का खुला सेवन और प्रचार करने लग गए हैं। मांस को महाप्रसाद और जीवों का झटका (मारना) धर्म का अंग मानने लग गए हैं।

जबकि भाई गुरू दास जी ने भी वारों में लिखा किः-

आन महां परशाद वन्ड खुवाया ॥१०॥ ( वार २०)।

अब हम गुरूवाणी के कुछ प्रमाण भी लिखते हैं जो वेदानुकूल कथन की पुष्टी करने वाले हैं:-

कलि होई कुते मुहीं, खाज होआ मुरदार॥
कूड़ बोलि बोलि भोंकणा, चूका धर्म बीचार॥
(सारंग की वार म०१)

“अर्थात – अब तो मनुष्यों का स्वभाव कुत्तों जैसा हो गया है, क्योंकि लोग मुरदार खाने लग गए हैं। जिसको भक्षण कर झूठ बोलते, मानों कुत्तों की तरह भोंकते या बकवास करते हैं, धर्म का तो विचार ही उठ गया है।

हिंसा तो मन ते नहीं छूटी, जिया दया नहीं पाली॥
परमानन्द साध संगति मिलि, कथा पुनीत न चाली॥३॥
(सारंग म०५)

अर्थात – पापी लोगों ने हिंसा या प्राणी घात नहीं छोड़ा, जीवों पर दया नहीं करते और न ही यह साधु संग करते, या भले पुरुषों की संगत में जा कर धर्म की पवित्र कथा ही सुनते हैं।।

बेद कतेब कहो मत झूठे, झूठा जो न विचारै॥
जो सब में एक खुदाए कहत हो, तो क्यों मुर्गी मारै॥१॥
(प्रभाती बानी कबीर)

अर्थात – हे मनुष्यो ! वेदादि धर्म पुस्तकों को झूठा मत कहो। झूठा तो वह है जो इन पर विचार नहीं करता, यदि सब जगह और सब में परमात्मा को व्यापक मानते हो तो फिर मुर्गादि प्राणियों को क्यों मारते हो?

कबीर भांग, माछुली, सुरापानि जो जो प्राणी खांहि॥
तीरथ बरत नेम किये ते, सभै रसातल जांहि॥२३।।
(श्लोक कबीर जी)

अर्थात – जो लोग भांग, मछली आदि, नशे, मांस, शराब आदि अभक्ष्य भोजन करते हैं, उनके तीर्थ स्नान, व्रत और नित्य नियम सभी अकारथ जाते हैं।

अपने सिखों के लिये दशम गुरु की आज्ञा है कि:-

कुठा, हुक्का, चरस, तम्बाकू,
गांजा, टोपी, ताड़ी, खाकू,
इनकी ओर कभी न देखे।
रहत वन्त जो सिख विशेषे।।
(रहतनामा देसासिंह)

अर्थात – मेरे सिख जो विशेष रहत वाले हैं, वह मांस, चरस, तम्बाकू, गांजा, चिलम, ताड़ी शराब आदि का प्रयोग नहीं करते, वह इन गन्दी वस्तुओं की ओर आंख उठा कर भी नहीं देखते।

बकरा झटका बीच न करें, और मांस न लंगर बड़े।

अर्थात – लंगर या रसोई घर में बकरे का मांस, झटका तैयार न करें और न ले जाएं।

अच्छे गुरु सिख मांस, शराब, तम्बाकू, भांग को भक्षणवकरना तो एक ओर, इस अपवित्र वस्तुओं को छूते भी नहीं।
(पन्थ प्रकाश)

सब खावें लुट जहान नू, पी दारू खाएं कबाब।
(जन्म साखी पृष्ठ-१९७)

अर्थात – सब पापी मनुष्य संसार को लूट कर खाते, शराब पीते और मांसाहार करते हैं।

रोजा धरै मनावै अल्लाह, सुआदति जियां संघारै॥
आपा देखि अवर नहीं देखै, काहे को झख मारै॥१॥
(आसा कबीर जी)

अर्थात – हे मोमन ! तू ईश्वर को रिझाने के लिये रोजा.. या व्रत रखता है और अपनी रसना के सुवाद के लिये जीवों का घात करता है, तू अपना स्वाद देखता पर दूसरे के दुःख को अनुभव नहीं करता और इसको धर्म समझता है। अरे! क्यों झक मारता है।

जीआ वधहु सु धर्म कर थपिहु, अधर्म कहो कत भाई।।
आपस को मुनिवर कर थपिहु, का को कहहु कसाई॥२॥
(राग मारू कबीर जी)

ओ भोले मनुष्य ! प्राणी को मारना यदि तूने धर्म मान रखा है तो फिर पाप किस को कहा जायेगा? मांसहारी बगुला भक्त यदि मुनिवर कहलाने लगे, तो कसाई किन का नाम रखोगे?

जो करे इबादत बन्दगी, उस नू मांस न पाक।
सभना अन्दर रम रिहया, हर दम साहिब आप॥
(जन्म साखी पृ०२१५)

अर्थात् – ईश्वर भक्ति करने वालों के लिये हर प्रकार का मांस अपवित्र है। क्योंकि परमात्मा प्राणिमात्र में सदा और सर्वव्यापक है।

ऊपरोक्त प्रमाणों से साफ सिद्ध है कि दसों गुरू और भक्त जन जिनकी वाणी गुरू ग्रन्थ साहब में दर्ज है, मांस शराब आदि के सेवन को महापाप मानते थे। गुरू वाणी में और भी अनेक प्रमाण हैं। आशा है सत्य के प्रेमी सज्जन इन से ही लाभ उठायेंगे।

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स्रोत – गुरु ग्रन्थ का वैदिक पन्थ।
लेखक – स्वामी अमृतानन्द जी सरस्वती।
प्रस्तुति – आर्य रमेश चन्द्र बावा।

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