इस सेकुलरिज्म को अपनाएगी अब शिवसेना

भारत में धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा कांग्रेसियों और कम्युनिस्टों ने कुछ इस प्रकार की गढ़ी है कि भारत विरोध और हिंदू विरोध का नाम ही धर्मनिरपेक्षता है। इस पर हामिद दलवाई ने ” मुस्लिम पॉलिटिक्स इन सेकुलर इंडिया ” – नामक अपनी पुस्तक के पृष्ठ 47 पर बड़े पते की बात लिखी है ।इसको समझने की आवश्यकता है। वह अपनी उस पुस्तक में लिखते हैं :– ” भारत के मुस्लिम नेता रोषपूर्वक अपने को 100% भारतीय होने का दावा करते हैं। साथ ही साथ कश्मीर पर पाकिस्तान के दावे के पक्ष में तर्क देते सुने जाते हैं। आसाम में पाकिस्तानी घुसपैठियों को भारतीय मुसलमान मुस्लिम सिद्ध करते दिखाई देते हैं। कहने को उनका हिंदुओं से कोई मनोमालिन्य नहीं किंतु साथ ही साथ यह फतवा भी जारी करते हैं कि नेहरू की मृत्यु के उपरांत उनके सबके पास कुरान का पाठ इस्लाम के विरुद्ध है । क्योंकि काफिर के शव पर कुरान नहीं पढ़ी जा सकती। वह जाकिर हुसैन को भारत का राष्ट्रपति तो देखना चाहते हैं , किंतु अच्छा मुसलमान होने के नाते उनके हिंदी में शपथ और शंकराचार्य से आशीर्वाद लेने पर आपत्ति करते हैं। ”

कहने का अभिप्राय है कि यह धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा केवल हिंदुओं पर लागू होती है कि वे किसी मुस्लिम मौलवी के कहने से टोपी पहन लें , पर कोई भी मुसलमान तिलक नहीं लगाएगा । क्योंकि यह उसका अपना मजहबी मामला है।

‘ शिव ‘ और ‘ शिवाजी ‘ के नाम पर अब तक राजनीति करने वाली शिवसेना अपनी चिर परिचित स्पष्टवादी और देशप्रेमी राजनीति को त्याग कर इसी देशघाती राजनीति और ” सेकुलरिज्म ” को अपनाएगी ,- – – – अंजामे गुलिस्तां क्या होगा ?

डॉ राकेश कुमार आर्य

संपादक : उगता भारत

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