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आज का चिंतन

देशभक्त वैज्ञानिक डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा की जयंती के पवित्र अवसर पर

अपने घरेलू कलह से दुखी होकर फारस से कुछ व्यापारी भारत पहुंचे तो उन्होंने यहां के सिंध के शासक से व्यापार आदि की अनुमति मांगी ।

सिंध के तत्कालीन हिंदू शासक ने उक्त प्रतिनिधिमंडल के नेता से कहा कि आपको शरण भी दी जा सकती है और व्यापार की अनुमति भी दी जा सकती है , परंतु यह बताइए कि भारत में आप कैसे रहना चाहेंगे ?

तब उस प्रतिनिधिमंडल के नेता ने खड़े होकर कहा कि – ” महाराज ! एक दूध से भरी हुई हांडी दरबार में मंगवाने का कष्ट करें । ”

राजा ने ऐसा ही आदेश अपने लोगों को दिया और हांडी दरबार में उपस्थित कर दी गई । तब फारस के उन व्यापारियों के नेता ने कहा कि – ” इसके लिए एक किलो शक्कर भी मंगवाई जाए । ”

राजा के आदेश के अनुसार दरबार में शक्कर भी लाकर प्रस्तुत कर दी गई । इसके उपरांत उस व्यापारी ने खड़े होकर उस शक्कर को दूध में मिला दिया। तब उसने कहा कि- ” महाराज ! जैसे यह शक्कर दूध में मिल गई है और इसमें मिलकर मिठास उत्पन्न कर रही है , वैसे ही हम भारत के मूल समाज के साथ मिलकर मिठास उत्पन्न करते हुए यहां के निवासियों के साथ रहने का आपको वचन देते हैं । ”

तब से लेकर आज तक पारसी समुदाय भारत में अपने दिए हुए वचन का पालन करते हुए भारत की एकता , अखंडता , समृद्धि , विकास और उन्नति के सभी क्षेत्रों में शांतिपूर्ण ढंग से भाग ले रहा है । इस देश को उसने अपना समझा है , और जिन लोगों ने यहां का खाकर भी इस देश को अपना नहीं समझा अपितु इसके विपरीत नींबू धर्म का पालन करते हुए इसके मूल समाज के दूध को फाड़ने का कार्य किया है उन लोगों से पारसी लोग हर दृष्टिकोण से उत्तम हैं । यही कारण है कि भारत भी अपने पारसी भाइयों को पूरा सम्मान देता है ।

इसी पारसी समुदाय में जन्मे डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा की देशभक्ति से कौन परिचित नहीं है ? हम आज अपने उसी महान वैज्ञानिक की जयंती मना रहे हैं।

30 अक्टूबर 1909 को मुंबई के एक संभ्रांत पारसी परिवार में जन्मे होमी जहांगीर भाभा भारत के एक प्रमुख वैज्ञानिक और स्वप्नदृष्टा थे । जिन्होंने भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना की थी। उन्होने मार्च 1944 में नाभिकीय उर्जा पर अनुसन्धान आरम्भ किया। यह वह काल था जब अविछिन्न शृंखला अभिक्रिया का ज्ञान नहीं के बराबर था और नाभिकीय उर्जा से विद्युत उत्पादन की कल्पना को कोई मानने को तैयार नहीं था। उन्हें ‘आर्किटेक्ट ऑफ इंडियन एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम’ भी कहा जाता है । भारत को परमाणु शक्ति बनाने के लिए उन्होंने 1945 में मूलभूत विज्ञान में उत्कृष्टता के केंद्र टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआइएफआर) की स्थापना की। डा. भाभा एक कुशल वैज्ञानिक और प्रतिबद्ध इंजीनियर होने के साथ-साथ एक समर्पित वास्तुशिल्पी, सतर्क नियोजक, एवं निपुण कार्यकारी थे। वे ललित कला व संगीत के उत्कृष्ट प्रेमी तथा लोकोपकारी थे। 1947 में भारत सरकार द्वारा गठित परमाणु ऊर्जा आयोग के प्रथम अध्यक्ष नियुक्त हुए। 1953 में जेनेवा में अनुष्ठित विश्व परमाणुविक वैज्ञानिकों के महासम्मेलन में उन्होंने सभापतित्व किया। भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के जनक का २४ जनवरी सन १९६६ को एक विमान दुर्घटना में निधन हो गया था।

डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा के अनुपम और अद्वितीय योगदान को मां भारती कभी भुला नहीं सकती ।हम भारतीयों पर उनके अतुलित उपकार है। आज भारत उनके कारण विश्व में सम्मानपूर्ण स्थान को प्राप्त किए हुए सगर्व आगे बढ़ रहा है । अपने ऐसे महान वैज्ञानिक और मां भारती के कल्याण एवं विकास के लिए समर्पित व्यक्तित्व के स्वामी डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा को उनकी जयंती के पावन अवसर पर हम सभी उन्हें हृदय से नमन करते हैं।

डॉ राकेश कुमार आर्य

संपादक : उगता भारत

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