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इतिहास के पन्नों से

नेहरू और जिन्ना थे गांधी के वास्तविक हत्यारे ?

जिस समय देश आजादी की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा था और देश का विभाजन अंग्रेज लगभग निश्चित करते जा रहे थे , उसी समय पाकिस्तान के विकल्प के रूप में गांधीजी ने एक अनोखा प्रस्ताव रखा ।

सार रूप में उन्होंने वायसराय को बताया कि —- ” आप वर्तमान मंत्रिमंडल को भंग कर दो और जिन्ना को सरकार बनाने का अवसर दीजिए । सरकार के सभी सदस्य मुसलमान हों या ना हों कोई अंतर नहीं पड़ता। यदि जिन्ना प्रस्ताव मान लेते हैं तो कांग्रेस उन्हें अपना पूर्ण सहयोग व समर्थन प्रदान करेगी। केवल एक प्रतिबंध है कि उनकी नीतियां सभी भारतीयों के लिए हितकारी होनी चाहिए । जिन्ना को चाहिए कि मुस्लिम नेशनल गार्डों को भंग कर दें तथा सांप्रदायिक सौहार्द बनाएं । वह सत्ता हस्तांतरण से पूर्व अपनी योजनाओं को व्यवहार में ला सकते हैं , इस प्रतिबंध के साथ ही बल प्रयोग का सहारा ना लें ।

यदि जिन्ना पीछे हटते हैं तो यही प्रस्ताव कांग्रेस के सामने रखा जाए। समग्र रूप से भारत के हित अहित के निर्णायक आप स्वयं होंगे । माउंटबेटन व्यक्तिगत विवेक और अधिकार से निर्णय करेगा । ”

कांग्रेस के नेताओं ने गांधी जी की इस योजना को सर्वथा अस्वीकार कर दिया । उनके इस प्रस्ताव की हत्या करने वाले सबसे पहले नेहरू ही बने । नेहरू ने कहा कि — ” गांधीजी बड़ी तेजी से केंद्र की घटनाओं से अनभिज्ञ होते जा रहे हैं। ”

अंत में गांधीजी के प्रस्ताव की जिन्ना ने ” दुष्टतापूर्ण प्रस्ताव ” कहकर निंदा की । इस प्रकार गांधी के दूसरे हत्यारे के रूप में जिन्ना ऊपर कर सामने आया । नेहरू और जिन्ना दोनों को सत्ता की जल्दी लग रही थी । दोनों चाहते थे कि जितनी जल्दी देश बंट जाए , उतनी जल्दी अलग-अलग देशों के वह मुखिया बन जाएं ।

उपरोक्त तथ्य का उल्लेख हो.वे .शेषाद्रि जी ने अपनी पुस्तक ” और देश बंट गया ” में किया है ।

गांधीजी उपहास और उपेक्षा का पात्र बन कर रह गये । जो व्यक्ति कभी अपनी हठ से कुछ भी कराने के लिए लोगों को बाध्य कर लिया करता था और जिस नेहरू के लिए सुभाष जैसे क्रांतिकारियों को गांधी जी ने रास्ते से हटाया और फिर सरदार पटेल की बलि ले ली उसी गांधीजी के लिए आज कैसी दुखदाई परिस्थितियां बन गई थीं कि अपने लोग ही उन्हें पूछ नहीं रहे थे ।

जिस समय माउंटबेटन भारत के लिए वायसराय के रूप में इंग्लैंड से चलकर आने की तैयारी कर रहे थे तो उन्होंने भारत के विषय में और यहां के नेताओं के विषय में स्टेफर्ड क्रिप्स से भी वार्ता की थी । तब उन्हें क्रिप्स ने गांधीजी के विषय में बताया था कि सभी सवालों के जवाब गांधीजी के पास हैं , पर माउंटबेटन की मान्यता बनी कि सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर था कि गांधी जी तहस-नहस कर सकते थे , कुछ बना नहीं सकते थे ।उनके पास कोई व्यावहारिक सुझाव नहीं था , लेकिन अनशन की युक्ति अवश्य थी । यदि वह कुछ करवाना चाहते तो अनशन आरंभ कर देते। लेकिन वह वहीं तक ठीक है जहां अनशन अच्छे उद्देश्य के लिए हो । ऐसे में गांधी जी अब हाशिये पर पड़ते जा रहे थे । इस बात को माउंटबेटन भी भली प्रकार जान गये थे ।

ऐसे असहाय और कमजोर गांधी को एक जिंदा लाश बना कर नेहरू व जिन्ना ने एक कोने में फेंक दिया था। उसी जिंदा लाश पर पाकिस्तान का निर्माण हो गया। कहीं तक गांधीजी ने ठीक ही कहा था कि पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा ।

विचारणीय तो यह है कि उन्हें जिंदा लाश बनाया किसने और यदि वह कोई अच्छा प्रस्ताव दे रहे थे तो उसे अस्वीकार किसने किया था ? कांग्रेसियों को व कांग्रेस के चाटुकारों को इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

डॉ राकेश कुमार आर्य

संपादक : उगता भारत

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