*रोहिंग्या-बांग्लादेशी डेमोग्राफी रोकेंगी भाजपा की रफ्तार*

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Rohingya refugees rest in a temporary shelter at the Pantai Labu District Office in Deli Serdang Regency, North Sumatra, Indonesia, on October 30, 2024. Based on data from the Secretary of the Pantai Labu District, Aziz states that the Rohingya refugees come from Bangladesh and are stranded in Indonesia. There are 153 Rohingya refugees accommodated this week and detained at the sub-district office. Since the initial arrival of Rohingya refugees until now, the local community still rejects their presence. (Photo by Panyahatan Siregar/NurPhoto via Getty Images)

राष्ट्र-चिंतन

आचार्य श्रीहरि

झारखंड विधान सभा चुनाव में सिर्फ एक मुद्दा उफान पर है, शेष मुद्दे गौण हो गये हैं, निपेथ्य में चले गये हैं। यह मुद्दा आखिर है क्या और इस मुद्दे को लेकर इतनी राजनीति गर्म क्यों हैं, शह-मात का खेल इस मुद्दे पर क्यों खेला जा रहा है? वास्तव में यह मुद्दा राहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियो का है। बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर भाजपा बहुत ही आक्रामक है और घोषणा कर रही है कि सत्ता में आने के बाद बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं को बाहर करेंगे, आदिवासियों की लूटी गयी जमीन को वापस करेंगे और इस्लाम के नाम पर इनकी गुंडागर्दी को समाप्त करेंगे। जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भाजपा की इस राजनीति को धर्म की राजनीति बताया है और इसे मानवता के खिलाफ भी बताया है, इतना ही नहीं बल्कि रोहिंग्याओं और बांग्लादेशी घुसपैठियों के नाम पर मुसलमानों का उत्पीड़न करने का आरोप भी लगाया है। सच तो यह है कि भाजपा शायद ही अपनी घोषणाओं को अंजाम दे पायेगी, क्योंकि ये घुसपैठिये तो हैं पर इनके पास सरकारी दस्तावेज हैं और सरकारी दस्तावेजों को खारिज कराना आसान काम नहीं है। फिर भी भाजपा ने चुनाव को आक्रमक जरूर बना दिया है। खासकर आदिवासी वोटरेां को अपनी ओर खिचनी का प्रयास किया है। आदिवासी वोटर ही झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के लिए वरदान के रूप में हैं और ये ही इन्हें सत्ता का अधिकार भी देते हैं। पिछले कई चुनावो से आदिवासी सीटों पर भाजपा की सफलता सीमित हो गयी है, आदिवासी सीटों पर कभी भाजपा का परचम लहराता था। लेकिन भाजपा अब आदिवासी क्षेत्रों मे जर्जर स्थिति में ही हैं। पिछले लोकसभा चुनावों मे भी भाजपा सभी पांच आदिवासी रिजर्व लोकसभा सीटें हार गयी थी।
जिस तरह से बिहार और उत्तर प्रदेश में मुसलमान और यादव यानी कि माई समीकरण काम करता है और सत्ता दिलाने का हथियार था। ठीक इसी प्रकार से झारखंड में आदिवासी और मुस्लिम समीकरण सत्ता की गारंटी बन गया है। बिहार और उत्तर प्रदेश में माई समीकरण फिलहाल जीवंत नहीं है, सत्ता का अधिकार दिलाने के लिए सक्षम नहीं है पर कई सालों तक यह समीकरण लालू और मुलायम जैसे मुस्लिम समर्थक राजनीति को चमकाने का काम किया था। झारखंड में पहले इस तरह का कोई समीकरण नहीं था। पर अब यह समीकरण खेल-खेलना शुरू कर दिया है। यह कहना गलत होगा कि इस समीकरण में सत्ता शक्ति नहीं है, यह समीकरण जींवत नहीं है, यह समीकरण सत्ता बनाने में सहायक नहीं है। पिछला विधान सभा चुनाव भी इसी समीकरण पर हुआ था और इसी समीकरण ने झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस को जीत दिलायी थी। भाजपा को मात्र दो ही आदिवासी क्षेत्रों पर जीत मिली थी। जिन दो आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा की जीत मिली थी वे दोनों विधान सभा सीटें रांची के आसपास की ही थी। संथाल परगना और कोल्हान क्षेत्र की सभी आदिवासी सीटों पर भाजपा हार गयी थी।
आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा की हार क्यों हो रही है और आदिवासी क्षेत्रों के राजनीतिक समीकरण क्या है? आदिवासी क्षेत्रों में राजनीतिक समीकरण ईसाई और कसाई गठजोड़ है। ईसाई और कसाई एक मत होकर भाजपा से लडते हैं और भाजपा की राजनीति को जमींदोज करते हैं। ईसाई और कसाई दोनो भाजपा के दुश्मन है। ईसाई चर्च का आधार पाकर मजबूत हो गये। चर्च की शक्ति बढी है, उनके साथ सत्ता रही है। जब सत्ता होगी तो फिर उनका दबदबा भी बढेगा। यही कारण है कि चर्च अपने धर्मातंरण के खेल में आगे रहे हैं और बडे पैमाने पर धर्मातंरण कराते रहे हैं। आदिवासियों के धर्मातंरण के कारण भाजपा और संघ के घटक संगठन कमजोर हो गये हैं। ईसाइयों और कसाइयों के डर से संघ के घटक संगठन भी भाग खडे हुए हैं। विकास भारती और इसके प्रमुख अशोक भगत गुमला से भाग कर रांची में रहने लगे हैं, इसी प्रकार से अन्य संघ संगठन भी आदिवासी क्षेत्रों से बोरिया-विस्तर बाध कर शहरी क्षेत्रों मे शरण ले चुके है। कहने का अर्थ यह है कि अब आदिवासी क्षेत्रों में ईसाई और कसाइयों की मनमर्जी चलाने की पूरी छूट मिली हुई है, चुनौती देने के लिए कोई हिन्दूवादी संगठन नहीं है।
सबसे बडी बात यह है कि चुनाव जीत कर विधायक बनने वाले ईसाई और कसाई पूरी तरह से अपने-अपने मजहब के साथ खडे होते हैं और अपने लोगों के लिए रक्षाकवच बन जाते है। जबकि भाजपा के विधायक और सांसदों की ऐसी मानसिकता नहीं है। ये धर्म के नाम पर वोट पाते हैं, चुनावों के समय जयश्रीराम जरूर बोलते हैं, चर्च और मस्जिदों की गुंडागर्दी और वर्चस्व के खेल को रोकने की बात तो जरूर करते हैं पर विधायक और सांसद बन कर उदासीन हो जाते हैं और धर्मनिरपेक्ष बन जाते हैं। यही कारण है कि बचे-खूचे हिन्दू आदिवासी और हिन्दू वर्ग के अन्य लोग अब भाजपा के पक्ष में खुल कर सामने नहीं आते हैं। भाजपा के पक्ष मे खुल कर सामने आने का अर्थ ईसाई और कसाई संगठनों और इनकी गुंडागर्दी का शिकार बनना, जब कोई ईसाई और कसाई गुंडागर्दी का कोई हिन्दू शिकार होता है तो उसके संरक्षण और सहायता के लिए कोई भाजपा विधायक और सांसद सामने नहीं आता है।
झारखंड की डेमोग्राफी तेजी से बदली है। झारखंड अब पश्चिम बंगाल की राह पर है। जहां तक रोहिंग्या और बांग्लादेश घुसपैठिये की बात है तो यह प्रश्न बहुत ही जहरीला हो चुका है, खतरनाक हो चुका है और यह कहना भी सही होगा कि आदिवासियों के लिए भी आत्मघाती जैसा हो गया है। खासकर संथाल परगना पूरी तरह से रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों के चंगुल में फंस चुका है। सिर्फ संथाल परगना ही नहीं बल्कि धनबाद और गिरिडीह का इलाका भी अक्षूत नहीं रहा है। झारखंड की राजधानी रांची और छोटानागपुर क्षेत्र में भी घुसपैठ हुआ है। एक स्वतंत्र विश्लेषक का कहना है कि सभी विधान सभा सीटों पर रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों का असर है। संथाल परगना की स्थिति बहुज ही ख्तरनाक है। अब रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों के पास सत्ता और राजनीति की शक्ति भी आ गयी है। रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिये अब सत्ता भी बनाते हैं और हिन्दुओं को पलायन भी करते हैं, आदिवासी युवतियों को लव जिहाद के लिए भी बाध्य करते हैं और आदिवासी युवतियों को दूसरी-तीसरी और चौथी बेगम बनने के लिए बाध्य करते हैं। ये आदिवासी युवतियों से शादी कर आदिवासी आरक्षण का लाभ भी ले रहे हैं। सबसे बडी बात यह है कि आदिवासी युवतियों से शादी करने के बाद आदिवासी जमीन पर भी इनका कब्जा हो जाता है। जानना यह जरूरी है कि आदिवासी जमीन पर किसी अन्य का कब्जा हो ही नहीं सकता है, लेकिन आदिवासी युवती के साथ शादी करने के बाद यह बाध्यता समाप्त हो जाती है। अब दंगे भी खूब हो रहे हैं। घुसपैठिये पहले जमीन कब्जाये और अब इज्जत पर डाका डाल कर हिंसा भी कर रहे हैं।
म्यांमार से दस लाख रोहिंग्या मुसलमान भाग कर बांग्लादेश आये थे। बांग्लादेश ने इन्हें शरण दिया था। लेकिन बांग्लादेश को जल्दी ही अहसास हो गया कि ये आत्मघाती हैं और नरभक्षी संस्कृति के हैं, इनसे भला होने वाला नहीं है। कारण यह था कि राहिंग्या मुसलमान कोई प्रशिक्षित तो थे नहीं, ये कोई सभ्य तो थे ही नहीं, ये हिंसक और जाहिल प्रबृति के लोग थे जो म्यांमार की राष्ट्रीय एकता और शांति के लिए दुश्मन के तौर पर थे। बौद्ध भिक्षू असीन विराथु ने इन्हें म्यांमार से भागने के लिए विवश कर दिया था। बांग्लादेश ने इनसे अपना जान छुडाना चाहता था। दस लाख की आबादी को संभाल कर रख्ना उसके लिए मुश्मिल हो गयी थी। उसने रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में घुसाने की रणनीति बनायी। बांग्लादेश ने अप्रत्यक्ष तौर पर रोहिंग्या मुसलमानो को भारत में घुसाने का कार्य किया है। सिर्फ झारखंड में ही नहीं बल्कि देश की राजधानी दिल्ली में भी रोहिंग्या मुसलमानों ने अपना कब्जा जमाया है और रोहिंग्या मुसलमानो का घुसपैइ जारी है। राजधानी दिल्ली की केजरीवाल सत्ता को भी रोहिंग्या मुसलमान नियंत्रित करने का काम करते है।
झारखंड में भाजपा की रफ्तार को रोकने में रोहिंग्या-बांग्लादेशी घुसपैठिये तत्पर है। अगर इनके खिलाफ हिन्दुओं की गोलबदी सुनिश्चित हो गयी है और बटेंगे तो कटेंगे का सिद्धांत काम कर गया तो फिर भाजपा की किस्मत चमक भी सकती है। लेकिन इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सिर्फ झारखंड ही नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल, केरल, असम, त्रिपुरा, दिल्ली, छत्तीसगढ और महाराष्ट्र आदि राज्यों में भाजपा की रफ्तार को रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमान थामने की स्थिति में आ गये हैं। भारत में पन्द्रह करोड से अधिक रोहिंग्या, बांग्लादेशी और पाकिस्तानी घुसपैठिये मुसलमान हैं जो भाजपा से दुश्मनी रखते हैं और हिन्दुत्व का संहार चाहते हैं।

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