हिन्दुत्व को ‘इन्दुत्व’ कहकर उसे इण्डियननैस (भारतीयता) के समानार्थक बनाकर अपनाने की बात देश के एक प्रसिद्घ पत्रकार ने अपने हाल ही में प्रकाशित लेख के माध्यम से उठायी है। पत्रकार महोदय हिन्दुत्व के ‘हि’ अक्षर को इन्दुत्व के ‘इ’ अक्षर में परिवर्तित कर देने मात्र से सारी मान्यताओं को बदल देना चाहते हैं। उन्हें हिन्दुत्व साम्प्रदायिकता का तथा ‘इन्दुत्व’ भारतीयता का पर्यायवाची जान पड़ता है।
वस्तुत: ऐसी मानसिकता के पीछे कुछ ठोस कारण हैं। हमने भारत में धर्म को सम्प्रदाय अथवा मजहब का पर्यायवाची शब्द माना है। ऐसा मानना हमारी भूल है। यह धर्म शब्द एक जीवन प्रणाली का नाम है। पूरी की पूरी विश्व व्यवस्था को मर्यादा और संतुलन बनाकर चलाने की एक अति उपयोगी जीवन व्यवस्था का नाम है। दुर्भाग्य से इस धर्म के साथ भारत में हिंदू शब्द को भी जोड़ा गया। इसी हिन्दू से उदभूत हिन्दुत्व को भी इसी हेय दृष्टि से देखा गया। यद्यपि भारत का सर्वोच्च न्यायालय हिन्दुत्व को एक जीवन शैली सिद्घ कर चुका है। किंतु इसके उपरांत भी देश में इस पवित्र और राष्ट्रीयता वाचक शब्द को साम्प्रदायिक मानने वालों की संख्या है। मानवता विखण्डन की नही अपितु एकता की प्यासी है। मानव भी सच्चा मानव वही है जो मानव को मानव से जोड़े इसे ही उसकी मानवता कहते हैं, उसका धर्म कहते हैं। हमारी जाति मानव है और धर्म मानवता। वेद उपनिषद और भारत के अन्य धार्मिक ऐतिहासिक ग्रन्थ भारत की अन्तरात्मा की इसी मौलिक चिंतन धारा से ओत-प्रोत है। वह मानवता के लिए जिन जीवन मूल्यों को आदर्शों का, मान्यताओं का और परंपराओं का निर्धारण करते हैं उन्हें ही आप हिन्दुत्व का नाम देते हैं। यह हिन्दुत्व किसी सम्प्रदाय को मिटाने की बात नही करता। जो लोग इस हिन्दुत्व को इस रूप में दिखाने का प्रयास करते हैं, वो भारतीयता के शत्रु हैं। इस हिन्दुत्व के अमरत्व का कारण यही है कि इसकी अन्तरात्मा सभी लोगों को साथ लेकर चलने की है। इसकी कार्यशैली समन्वयवादी है।
एक फ्रांसीसी युवक विद्यार्थी जीन ली ने लिखा है-‘प्राचीन लोगों ने अपने आपको अमर बनाने के लिए बहुमूल्य पत्थरों और टिकाऊ सामग्री-सोना, चांदी, कांसा, संगमरमर, गोमेदक रत्न, भवन निर्माण के लिए उपयोगी कठोर पत्थरों-का प्रयोग किया था। प्राचीन वैदिक ऋषियों ने वैसा नही किया, उन्होंने अपना ध्यान दिया मुंह से बोले जाने वाले शब्दों पर, जो देखने में विनाशशील और ठोसपन की सामग्री से रहित हैं।”…मिश्र के पिरामिड, रेगिस्तानी हवाओं द्वारा उखाड़ दिये गये, संगमरमर, भूचाल क्षरा तोड़ दिया गया, सोने को लुटेरे चुरा ले गये। किंतु वेदों को, शिष्यों की वा विद्वानों की न टूटने वाली एक श्रंखला द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी नित्य प्रति गाया जाता है और एक विशाल धारा की भांति जीवित मस्तिष्कों के तत्व के माध्यम से निरंतर प्रवाहित है।’फ्रांसीसी विद्यार्थी का यह उपरोक्त निष्कर्ष सर्वथा सत्य ही है। स्वामी विवेकानंद ने हिंदुत्व के विषय में अपने विचारों को बड़ी विद्वता से प्रकट किया था। एक स्थान पर उन्होंने भी लिखा है कि हिंदुत्व में भारत की जीवन शक्ति विद्यमान है और जब तक हिंदू जाति अपने पूर्वजों की विरासत को नही भूलती तब तक धरती की कोई भी शक्ति उन्हें नष्ट नही कर सकती। हमारे लिये पूर्वजों की महान विरासत हमारे लिए वही वैदिक निधि है जिसे उक्त फ्रांसीसी विद्यार्थी ने न टूटने वाली श्रंखला कहा है।
इसी श्रंखला को स्वामी विवेकानंद ने भारत की जीरव शक्ति कहकर हिंदुत्व के नाम से महिमामंडित किया है। इस प्रकार हिंदुत्व में भारत की जीवन शक्ति तथा भारत की जीवन शक्ति में हिन्दुत्व का विराट स्वरूप एकाकार है। इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि हिंदुत्व भारत की राष्ट्रीयता का ही पर्यायवाची है। इस शब्द के नीचे हमारे सभी सम्प्रदाय, मत, पंथ, वर्ग, समुदाय आदि स्वयं ही समाहित हो जाते हैं, उन्हें आश्रम मिल जाता है, अपनी सुरक्षा की स्वाभाविक अनुभूति होती है। हिंदुत्व आक्रामक नही हो सकता किंतु वह छदम तुष्टिकरण और राष्ट्र को दुर्बल करने में लगी शक्तियों को सहन भी नही कर सकता। कुछ लोग हिंदुत्व के इसी स्पष्ट और बेलाग स्वरूप को इसे सम्प्रदायिक कहकर कोसने का प्रयास करते हैं। इस हिंदुत्व को इस्लामिक आतंकवाद तो असहनीय है ही राजठाकरे का उग्र भाषावाद और प्रांतवाद भी असहनीय है। क्योंकि राष्ट्र सबका होता है, उसे आप किसी एक की बपौती नही कह सकते हैं। हमें हिंदुत्व के संदर्भ में महात्मा गांधी के इन शब्दों पर भी ध्यान देना चाहिए ‘हिंदुत्व सत्य की चिरन्तन खोज का नाम है, और आज यदि वह मृतप्राय, अग्रगतिशील दिखती है तो मात्र इसलिए कि हम थके हुए हैं। जैसे ही यह थकावट दूर होगी, विश्व के समक्ष अकल्पनीय तेजस्विता से हिंदुत्व का विस्फोट होगा।’आज इस थकावट को दूर करने की आवश्यकता है। गांधीजी हिंदुत्व को सत्य की चिरंतन खोज कहते हैं। सत्य यदि हिंदुत्व है या हिंदुत्व यदि सत्य है तो वह झूठ का प्रतिपादक नही हो सकता। धर्म सत्य है और सम्प्रदाय झूठ है। मृत्यु के समय हम जिस अनंत में विलीन होते हैं उसे सत्य कहा जा सकता है। तब हम हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, न होकर एक इंसान के रूप में दुनिया को छोड़ते हैं। और जब हमारा जन्म होता है तो उस समय भी हम केवल एक इंसान ही होते हैं। हम इन दोनों समयों में इंसान होते हैं किंतु इनके बीच में कई बार शैतान हो जाते हैं। मजहब के नाम पर। हिंदुत्व हमें शिक्षा देता है इंसान बने रहने की क्योंकि वह सत्य है। क्योंकि वह हमारा कल्याण करता है इसलिए वह शिव भी है और क्योंकि वह हमारे जीवन को उच्चता प्रदान करता है, भव्यता प्रदान करता है इसलिए वह सुंदर भी है। इस प्रकार गांधी जी के कथन की व्याख्या करें तो हिंदुत्व सत्यम शिव सुंदरम की साक्षात अभिव्यक्ति है। इसीलिए एनीबीसेंट ने कहा था-‘विश्व के विभिन्न धर्मों का लगभग चालीस वर्ष अध्ययन करने के पश्चात मैं इस निष्कर्ष पर पहुंची हूं कि हिंदुत्व जैसा परिपूर्ण वैज्ञानिक, दार्शनिक एवं आध्यात्मिक धर्म और कोई नही। इसमें कोई भूल न करें कि बिना हिंदुत्व के भारत का कोई भविष्य कही।’ हिंदुत्व ऐसी भूमि है जिसमें भारत की जड़ें गहराई तक पहुंची हैं, उन्हें यदि उखाड़ा गया तो यह महावृक्ष निश्चय ही अपनी भूमि से उखड़ जाएगा। हिंदू ही यदि हिंदुत्व की रक्षा नही करेंगे तो और कौन करेगा? यदि भारत के सपूत हिंदुत्व में विश्वास नही करेंगे तो कौन उनकी रक्षा करेगा भारत ही भारत की रक्षा करेगा। भारत और हिंदुत्व एक ही है।”
इस प्रकार के कितने ही विद्वानों के लेख हैं जिनमें हिंदुत्व और भारतीयता को एक ही माना गया है। इसलिए आज हिंदुत्व को नयी व्याख्या देने की या नई परिभाषा देकर उसे भारतीयता के समानार्थक सिद्घ करने की आवश्यकता नही है। आवश्यकता उसके स्वरूप को सही अर्थों संदर्भों एवं मान्यताओं के अनुरूप समझने की है। इसकी परिभाषा को विकृति प्रदान करना तो गलती है ही इसे किसी सम्प्रदाय से जोड़कर देखना और भी बड़ी गलती है।

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