सोनिया की चिट्ठी की पिटी मिट्टी

राजनीति के शोर में दुर्गाशक्ति नागपाल का मामला उलझ कर रह गया है। वैसे तो ये दुनिया ही स्वार्थों पर टिकी है, पर जब बात राजनीति की की जाए, तो वह तो कतई स्वार्थों पर चलती है। अब यदि राजनीति भी गठबंधन की हो तो ‘मजबूरियां’ और भी बढ़ जाती हैं और हम देखते हैं कि राजनीति को इन मजबूरियों के चलते ‘अनचाहे कत्ल’ भी करने पड़ते हैं। जब आग लग रही हो तो हर आदमी पहले अपनी दाढ़ी बचाता है। सो कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी ने महिला आई.ए.एस. अधिकारी दुर्गाशक्ति नागपाल को यूपी की अखिलेश सरकार द्वारा निलंबित करने के प्रकरण को जितनी गंभीरता से लिया उतनी गंभीरता ज्यादा देर कायम नही रह सकी। ‘खाद्य सुरक्षा बिल’ को पास कराने की मजबूरी क्या आयी कि सोनिया और संप्रग सरकार को नानी ही याद आ गयी। इसलिए शस्त्र ढीले पड़ गये और अब हम देख रहे हैं कि दुर्गाशक्ति नागपाल का मामला ठंडे बस्ते में चला गया है। खंडित जनादेश से गठबंधन सरकारों का जन्म होता है और खंडित जनादेश मतदाता की भटकी हुई (खण्डित) मानसिकता का परिचायक होता है। अत: सब कुछ खंडित है अब यहां, अखण्ड कुछ नही, इसलिए सोनिया और मनमोहन सरकार को सपा के प्रो. रामगोपाल ने यह कह दिया कि यूपी से सारे आईएएस केन्द्र वापस बुला ले, हम अपने आप सरकार चला लेंगे। बस इतना सुनकर ही सोनिया की चिट्ठी की मिट्टी पिट गयी, क्योंकि सरकार ने उस चिट्ठी पर कोई भी संज्ञान लेने में असमर्थता प्रकट कर दी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नागपाल निलंबन मामले में कहा है कि बच्चे (छात्र) यदि गलती करते हैं तो उन्हें विद्यालय में अध्यापक तो घर में अभिभावक दण्डित कर सकते हैं। इसी प्रकार यदि अधिकारी ने गलती की है तो उसे दण्ड देने का अधिकार सरकार को है।
बात तो मुख्यमंत्री सही कह रहे हैं, लेकिन विचारणीय बात ये है कि एल.आई.यू. की रिपोर्ट एस.डी.एम. सदर को नही अपितु एस.डी.एम. जेवर को धर्म स्थल की विवादित दीवार ढहाने का दोषी बता रही है और डी.एम. गौतमबुद्घ नगर भी एस.डी.एम. सदर को निर्दोष मान रहे हैं-तो फिर दुर्गाशक्ति नागपाल का दोष क्या रहा? किस बात पर उन्हें दण्डित किया गया?
यह तो वही बात हुई कि एक नदी के बहाव की ओर एक मेमना पानी पी रहा था, उसके ऊपर की ओर (जिधर से पानी बहकर आ रहा था) एक शेर ने आकर पानी पीना आरंभ कर दिया। तब शेर उस मेमने पर गुर्राया और कहने लगा कि तूने मेरा पानी झूठा कर दिया है। अब तुझे मैं सजा दूंगा। तब मेमने ने साहस करके जवाब दिया कि महोदय, पानी आपकी ओर से बहकर आ रहा है। इसलिए पानी तो आपने मेरा झूठा किया है, मैंने आपका नही। शेर झुंझलाकर चुप रह गया। पर अपने शेरपन के अहंकार में पुन: बोला कि तूने तीन दिन पहले मुझे गाली भी दी थी। तब भी मेमने ने कह दिया कि महोदय! तीन दिन पूर्व तो मेरा जन्म भी नही हुआ था। अब शेर की खींझ और बढ़ गयी थी। तब उसने पूरे गुस्से में आकर कहा कि तूने गाली नही दी थी तो तेरे बाप ने दी होगी और यह कहकर वह मेमने को चट कर गया।
बस यही स्थिति दुर्गाशक्ति के साथ पैदा हो रही थी। दुर्गाशक्ति से राजशक्ति टकरा रही थी, दुर्गा बेचारी चुपचाप अपना कार्य निष्ठा से कर रही थी और राजशक्ति थी कि उसे वह ‘निष्ठा’ रास नही आ रही थी, सो उसे ‘चट करने का नाटक रचा और सारे तथ्यों की उपेक्षा कर वह काम कर दिया, जिससे सारे देश में अखिलेश सरकार की किरकिरी हुई है। सारे देश में सहानुभूति दुर्गाशक्ति के साथ जुड़ी है। बेशक जनता कुछ समय तक ही सच को ध्यान में रखती है लेकिन ऐसा भी नही है कि जनता कतई भूल ही जाती है। गलतियों की सजा बच्चों को स्कूल में अध्यापक और घर पर अभिभावक देते हैं तो राजनीतिज्ञों को उनकी गलतियों की सजा जनता देती है। यह अलग बात है कि अध्यापक या माता-पिता को गलती पर दण्ड देने का अवसर जल्दी मिल जाता है तो जनता को यह अवसर पांच साल में एक बार मिलता है। पर जब मिलता है तो अच्छों अच्छों के ताज यह जनता हवा में उछाल देती है, इसीलिए जनता को जर्नादन कहा जाता है। सोनिया को तो सपा ने धमका लिया है पर जनता को धमकाने की कोशिश ना करे। 2014 का चुनाव नजदीक है। ‘बच के रहियो रे बाबा-तुझ पे नजर है’।

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