सर्वोच्च न्यायालय ही है पुरोहित विदुर

vidurराकेश कुमार आर्य
एक सामाजिक संगठन प्रवासी भलाई संगठन की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक नेताओं के भड़काऊ भाषणों पर रोक लगाने की मांग को लेकर केन्द्र सरकार से जवाब तलब किया है। प्रधान न्यायाधीश अल्तमश कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने चुनाव आयोग से भी इस विषय में जवाब देने को कहा है। इस जनहित याचिका में कहा गया है कि धर्म, क्षेत्र, जाति अथवा जन्मस्थान को लेकर दिये गये भाषण संविधान की मूल भावना के विपरीत है।
याचिका कर्ता की बात में दम है, हमारा संविधान जाति, पंथ, संप्रदाय और लिंग के आधार पर समाज में व्याप्त विद्वेष की भावना को, घृणा को, ऊंच नींच को और छुआछूत को मिटाकर भारतीयता का राष्ट्रबोध कराते हुए राष्ट्रीय एकता को बलवती करना चाहता है संविधान की इस भावना को और इस पवित्र उद्देश्य को देश की सामासिक संस्कृति की स्थापनार्थ एक अति उत्तम भावना के रूप में अभिहित किया गया है।
हमारा कर्त्तव्य था कि देश का प्रत्येक निवासी संविधान की इस भावना का सम्मान करता और दिव्य एवं भव्य भारत बनाने के लिए आयोजित महाअभियान में अपना सहयोग देता। दुर्भाग्यवश देश की राजनीति इस पवित्र उद्देश्य को प्राप्त करने से भटक गयी। उसने देश में जातीय और साम्रदायिक संगठनों को बढ़ावा देना आरंभ कर दिया। यहां तक कि ऐसे राजनीतिक दल भी देश में बने जो किसी क्षेत्र विशेष, जाति विशेष, या सम्प्रदाय (मजहब) विशेष की राजनीति करते हैं।
देश की राजनीति ने संविधान की इस भावना मखौल उड़ाया और देश का संविधान जिस राष्ट्रीय एकता की स्थापनार्थ सामासिक संस्कृति को देश के लिए आवश्यक मानता है उसकी पैरोकारी करने वालों को यहां देशद्रोही माना जाने लगा है, जबकि जाति, पंथ, सम्प्रदाय, क्षेत्र और भाषा की राजनीति करने वालों को ‘फूलों के हार ‘पहनाए जाने लगे। जिन्हें संविधान अपने सिर पर लेकर चल रहा था, वही लोग संविधान को ‘कंधा देने लगे’।

इस स्थिति का परिणाम यह निकला कि देश में कई संगठन और उनके बहुत से नेता बेलगाम हो गये। ऐसी परिस्थितियों में प्रवासी भलाई संगठन की ओर से प्रस्तुत याचिका स्वागत योग्य है। याचिका में मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन के नेता द्वारा अभी हाल ही में दिये गये आपत्तिजनक भाषण का भी उल्लेख किया गया है। साथ ही मनसे प्रमुख राजठाकरे के भाषणों की ओर भी इस याचिका में न्यायालय का ध्यान आकृष्ट किया गया है। संविधान की मूल भावना का अपमान करने वाला हर व्यक्ति दोषी है, अपराधी है। कार्य इसी बात को लक्षित करके किये जाने की आवश्यकता है।
हमारा मानना है कि देश में भड़काऊ भाषण देने वालों को ही अपराधी नही माना जाए, अपितु जो संगठन जाति, पंथ, संप्रदाय, भाषा, क्षेत्र आदि को लेकर भी देश में कार्य कर रहे हैं उन सब पर भी रोक लगायी जानी आवश्यक है। इन सारी पहचानों को राष्ट्र की पहचान में विलीन करने का ‘संवैधानिक, पवित्र और मानवोचित’ कार्य किया जाना चाहिए। राष्ट्र निर्माण के लिए आवश्यक संवैधानिक, पवित्र और मानवोचित संस्कार देने में हम असफल सिद्घ हुए हैं। इसीलिए समाज में ईर्ष्या, घृणा और द्वेष का वातावरण बन रहा है। शिक्षा को इस प्रकार लागू किया गया कि हर व्यक्ति हर क्षेत्र में एक अनजाने से और अजीब से ‘कंपीटीशन’ की आग में झुलस रहा है। इसलिए हर व्यक्ति सशंकित और आतंकित सा है। उसी के तनाव में उसका जीना दूभर होता जा रहा है। कंपीटीशन ने ईर्ष्या को और ईर्ष्या ने समाज में घृणा को जन्म दिया है। यह कंपीटीशन अब तो जातीय, पंथीय, साम्प्रदायिक, भाषाई और क्षेत्रीय संगठनों दबाव गुटों और राजनीतिक दलों की उपस्थिति के कारण और भी अधिक ईर्ष्यात्मक और घृणात्मक होता जा रहा है। लोग अपने अपने संगठनों, दबावगुटों या राजनीतिक दलों के माध्यम से अपने अपने लिए सुविधाएं मांग रहे हैं, आरक्षण मांग रहे हैं, और राजनीति गुटों को खरीदने के लिए नई जागीरदारी व्यवस्था को देश में आगे बढ़ा रही है। मानो किसी एक संगठन, दबावगुट या राजनीतिक दल का नेता पुराने समय का कोई जागीरदार हो। जो वसूली के रूप में सत्तारूढ़ दलों को अपने अपने स्तर पर वोट दिलाने की हैसियत रखता है। जितनी जिसके साथ वोट होती हैं वह उतनी ही बड़ी ‘जागीर’ का मालिक माना जाता है और उसकी उतनी ही बड़ी हैसियत राजनीति के गलियारों में लोकतंत्र के खरीददारों की नजरों में होती है।

फलस्वरूप समाज में आज एक अजीब से बेचैनी है। संविधान हमसे बहुत पीछे छूट गया लगता है। सपा नेता मुलायम सिंह यादव का यह कहना एकदम सही है कि राजनीति में अब लोग एम.एल.ए., एम.पी, या मंत्री बनने आते हैं। पर यह बात भी विचारणीय है कि ये लोग राजनीति में आते किस प्रकार हैं? निश्चय ही ये लोग अपनी अपनी जाति, अपने अपने संप्रदाय, अपनी अपनी भाषा और अपने अपने क्षेत्र के कथित जागीरदारों के कंधों पर सवार होकर ही राजनीति में आते हैं। यही कारण है कि एम.एल.ए., एम.पी. या मंत्री बनने के बाद फिर कथित जागीरदारों के ओहदों में वृद्घि करना और उन्हें खुली लूट का खुला प्रमाण पत्र देना इन जनप्रतिनिधियों की मजबूरी होती है और जरूरत भी। इस प्रकार जनहित याचिका में उठाई गयी बात एक दम सही है कि भड़काऊ भाषणों से लोकतंत्र के तानेबाने को खतरा है। वास्तव में लोकतंत्र तो देश में हर चुनाव में निविदाओं के माध्यम से नीलामी पर बेचा जाता है। दुख की बात यह है कि इस नीलामी में जनता शामिल नही होती, बल्कि जनता नीलाम होने वाले माल में गिनी जाती है, और जागीरदार इस नीलामी में बोली लगाने वाले की हैसियत से सम्मिलित होते हैं। अब 2014 के आम चुनाव की आहट आने लगी है तो जागीरदारों का लाव लश्कर अपने अपने आकाओं के राजभावनों के इर्द गिर्द अभी से गिद्घ की भांति मंडराता दीखने लगा है। नीलामियों के लिए निविदाओं को आमंत्रित किया जा चुका है। अब निविदाकारों की अपने अपने आकाओं से गुफ्तगू चल रही है कि कैसे कैसे चुनाव में जीतें? इसी व्यवस्था को आजकल भारत में चुनाव प्रबंध कहा जाता है और यही चुनाव जीतने की तैयारियों में शुमार किया जाता है।
ऐसी स्थिति को देखकर तो लगता है कि देश की राजनीति ‘ब्लड कैंसर’ से ग्रसित है। इसलिए एक ही सवाल आता है कि जनहित याचिका में इंगित किये गये संगठनों पर प्रतिबंध लगाने के उपरांत भारत का सर्वोच्च न्यायालय क्या देश के लोकतंत्र के ‘गुप्त रोगों’ का भी कोई उपचार कर पाएगा?
ये गुप्त रोग रक्त कैंसर की उपरोक्त लाइलाज बीमारी की ओर ही हमारा ध्यान खींचते हैं। जिस देश में शिक्षा केवल जीविकोपार्जन का माध्यम बनकर रह जाए और आदर्श जीवन व्यवहार या जीवन व्यवस्था जिस शिक्षा प्रणाली से बहुत दूर की बातें हैं उसके रहते कैसे उम्मीद की जा सकती है कि देश में हम राष्टï्र बनाने की ओर सटीक कदम उठा रहे हैं।
आवश्यकता है कि बीते 65 वर्षों की पूरी पड़ताल की जाए, पूरा आत्मावलोकन किया जाए, पूरा आत्मनिरीक्षण किया जाए, व्यवस्था की गाड़ी की दिशा और संविधान के दिये गये निर्देशों में संतुलन स्थापित किया जाए। अच्छा होगा कि यदि भारत का सर्वोच्च न्यायालय उक्त याचिका का निस्तारण कुछ इसी प्रकार के दिशा निर्देशों के साथ कर दे। क्योंकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ही इस समय दिशाविहीन अंधे धृतराष्टï्रों के लिए पुरोहित विदुर का काम कर सकता है।
मैं भारत की बेटी हूं….
आजादी नही है, यहां हम बाहर घूम सकते हैं, लोगों से बात कर सकते हैं। ऐसी आजादी को हमसे छीनकर फिर नरक में डालने की बात मत कहो। गंगा का कहना था कि हमें दुख है कि पाकिस्तान में रहकर हमें शिक्षा नही मिली। भारत में रहकर कम से कम हम अपने महापुरूषों देवी देवताओं की कहानियां तो सुन ही रहे हैं। पाकिस्तान में हिंदू बहू बेटियों पर होने वाले अत्याचारों की बात पूछने पर गंगा पूरी तरह मौन हो गयी, लेकिन उसकी आंखों में छलके आंसुओं ने सारा माजरा साफ कर दिया।
एक यात्री हीरालाल का कहना था कि पाकिस्तान में उन्हें जीए सिंध से कुछ उम्मीदें हैं, बेनजीर भुट्टïो के शासन में भी थोड़ी सी राहत मिली थी। बाकी तो सभी का शासन एक सा दमनकारी रहा है। उसने हमें बताया कि 1992 में जब भारत में बाबरी मस्जिद गिरायी गयी थी तो पाकिस्तान के सिंध (जहां से ये लोग आये हैं) प्रांत में हिंदुओं का कोई मंदिर नही छोड़ा गया था। बीच में ही धर्मवीर ने कहा कि यदि भारत में विराट कोहली अच्छे रन बनाता है तो इसकी सजा हमारे गांव वासियों को 3 लड़कियों के उठाने के रूप में मिली थी। उसका कहना था कि उसके नाम के पीछे भी कोहली लगा है, इसलिए वह उस समय तीन दिन भूमिगत रहा था क्योंकि उस समय उसे अपनी जान का खतरा था।
इन लोगों का कहना था कि पाकिस्तान में हिंदू मजदूरों से सारे दिन बड़ी कड़ाई से काम लिया जाता है और शाम को कईयों को मुस्लिम लोग बड़ी बड़ी जंजीरों में बांध लेते हैं, ताकि कहीं भाग न जायें और अगले दिन उन्हें मजदूरों के लिए घूमना ना पड़े। उनका कहना था कि उनकी पाकिस्तान में स्थित जमीन जायदाद की लाखों करोड़ों की कीमत के बदले हजारों में कीमत दी जाती है और कई बार तो हम खुद भी अपने माल की हजारों में कीमत लेकर वहां से चल देते हैं कि किसी प्रकार भारत तो पहुंच जाएं। इन लोगों का कहना था कि हमें अपनी लाखों रूपये की कीमत की संपत्ति को छोड़कर भागने या इस्लाम कबूल करने के लिए डराया धमकाया जाता है। पहले मौहब्बत से फिर दौलत से और फिर दहशत से हमें अपना धर्म छोड़ने और इज्जत बेचने के लिए मजबूर किया जाता है। शिक्षा के लिए इन लोगों का कहना है कि उनके बच्चों को पहले दिन से ही इस्लामी शिक्षा दी जाने लगती हैं और भगवान राम या कृष्ण के बारे में या वेद उपनिषद आदि के विषय में एक शब्द भी निकालना असंभव है।
जब ‘उगता भारत’ की टीम के द्वारा इन लोगों से पूछा गया कि आप भारतीयों से या भारतीय सरकार से क्या अपेक्षा करते हैं? तो इनका उत्तर था कि हमें जैसे भी हो बचा लो, हम भूखे प्यासे रहकर और मजदूरी करके अपना पेट पाल लेंगे लेकिन पाकिस्तान नही जाएंगे। क्योंकि पाकिस्तान हमारे लिए बहुत बड़ी जेल है। हमारी पीड़ा को भारत सरकार समझे और विश्व मानवाधिकार आयोग पाकिस्तान जाकर वहां के हिंदुओं की पीड़ा को समझे और उन्हें उचित समाधान दे। हम भारत को मानवतावाद का मसीहा और अपना वतन मानते हैं, अब हम चाहेंगे कि हमारी राख भारत की पवित्र नदियों में ही प्रवाहित हो और वतन की सेवा में हमारा शेष जीवन गुजरे। हिंदुस्थान की सरकार हमें अपनाए या न अपनाए लेकिन हमने हिंदुस्थान को सदा अपना माना है, और मानते रहेंगे अब इस वतन में आ गये हैं, तो अब मर कर ही इससे जुदा होंगे।

Comment: