भारत की वास्तविक समस्या अशिक्षित समाज नही है जैसा कि कह दिया जाता है। वास्तव में भारत की वास्तविक समस्या शिक्षित समाज है। समस्या का निरूपण क्योंकि यह शिक्षित समाज करता है, इसलिए यह चोरी स्वयं करता है और कानून में दूसरों को फंसाता है। यह है इसकी शिक्षा का चमत्कार। वैसे हमारी व्यवस्था का यह एक बड़ा दोष है कि हम चोर से ही यह कहते हैं कि चोर को पकड़ो। हम भूल जाते हैं कि चोर कभी भी स्वयं को चोर नही कह सकता। अशिक्षित व्यक्ति के विषय में यह ध्यान रखना चाहिए कि वह कभी भी एक समस्या नही हो सकता। यह समाज की प्रगति के लिए एक बोझ हो सकता है, परंतु वह समस्या नही हो सकता। समस्या वह होती है जो कि व्यवस्था की प्रगति में अवरोध उत्पन्न करे। शिक्षित व्यक्ति विकास के ऊपरी पायदान पर खड़ा होकर निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति के उत्थान के लिए मिलने वाली धनराशि को हड़प रहा है, इसलिए वह व्यवस्था की प्रगति में बाधक है। अत: समस्या भी समाज के लिए वही है। जिस पर वह धनराशि पहुंच नही पा रही वह तो समाज के लिए और व्यवस्था के लिए एक बोझ है। यह जो बोझ की एक दुनिया है ना, इसमें रहने वाले व्यक्ति की तनिक आपराधिक प्रवृत्ति पर दृष्टिïपात करेंगे तो आप पायेंगे कि इनके लड़ाई झगड़े अक्सर होते हैं, गाली गलौच नित्य प्रति होती हैं, पर हत्याएं ये उनसे कम रहते हैं जो शिक्षित हैं और स्वयं को बहुत आगे बढ़ा हुआ मानकर चलते हैं। ऐसी ही बातें आप अन्य अपराधों के विषय में लगा सकते हैं। यदि कुछ अशिक्षित लोग अपराध की दुनिया में आये हैं तो उनकी जीवन कहानी का ज्ञान होने पर हम कह सकते हैं कि उनका सरगना कोई न कोई शिक्षित मिलेगा, या किसी शिक्षित, या किसी प्रकार से अगड़े व्यक्तियों के समुदाय के उत्पीडऩ के कारण वह इस लाइन में आ गये। झुग्गी झोंपडिय़ों में रहने वाले लोगों के विषय में कहा जा सकता है कि वहां कई प्रकार के अपराधी रहते हैं। ये लोग निस्संदेह कई बार ऐसी ही भ्रांति उत्पन्न करते हैं। परंतु उनके यहां हमारा आशय उस भारत से है जो भारत के सुदूर देहात में रहता है। यह झुग्गी झोंपडिय़ों का संसार उपभोक्तावाद महानगरीय संस्कृति का संसार है। यह हमारे चिंतन का केन्द्र नही है।
क्या है-मलीन बस्ती
अब आप थोड़ा सोचें कि मलीन बस्ती क्या है? जहां दिल के काले और तन से सफेद वस्त्र धारी लोग रहते हैं वह, या वो शांत गांव जो बिजली की चकाचौंध से दूर शांत माहौल में शांत लोगों का घोंसला होने का शांत स्थान है। तुलसीदास जी ने कहा है-
मन मलीन तन सुंदर कैसे।
विषरस भरा कनक घट जैसे।।
मन तो मलीन हो और सुंदर तन हो, तो उसे आप सौंदर्य नही कह सकते। क्योंकि यह अवस्था तो सोने के घड़े में विषरस भरे होने की अवस्था के समान है। शिक्षित समाज की स्थिति ऐसी ही है।
क्या उपाय है? इस स्थिति से उबरने के लिए हमें शिक्षित समाज में पैसा और भौतिकवाद की बढ़ती आग को शांत करना होगा। सरकारों को चाहिए कि वो शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य-मानव निर्माण घोषित करें। रोटी, कपड़ा और मकान शिक्षा का दूसरा उद्देश्य होना चाहिए। मानव निर्माण का अर्थ है व्यक्ति के विकास के लिए आवश्यक रक्षोपाय अपनाना और उसे सहृदयी बनाना कि वे निचले और पिछले लोगों के लिए सहायक बन जायें। उनका हाथ पकडऩे वाले बन जायें, हाथ छोडऩे वाले नही। अपनों का हाथ पकड़कर ऊपर को लेने वाले तो बहुत हैं मगर सबका हाथ पकड़कर ऊपर को लेकर चलने वालों का अभाव है। जो लोग ऊपर बैठकर अच्छा कार्य कर रहे हैं, वो वंदनीय हैं। ऐसे अपवादों को नमस्कार। हम अशिक्षित व्यक्ति को एक समस्या न मानें, उसे समाज के लिए एक बोझ मानें। उस बोझ को हम हल्का करने का प्रयास करें। साक्षरता अभियान कोई अच्छा माध्यम नही है। यह कुछ कुछ वैसा ही है जैसा कि आप किसी को एक रोटी तो दे दें, पर उसकी पूरी भूख का निदान न करें। संस्कारों से भरी शिक्षा न देना भी गलत है। इसे आप कुछ कुछ ऐसा मान सकते हैं कि किसी को आप गाड़ी चलाना तो सिखा दें पर उसका ड्राईबिंग लाइसेंस ना बनवायें और ब्रेक के बारे में भी उसे कोई जानकारी ना दें। इसीलिए पूरी रोटी दीजिए और डी.एल. भी दीजिए। तभी भारत आगे बढ़ पाएगा।

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