कान सुनें महिमा तेरी, जिह्वा से हो जाप

माता-पिता जहां देवें दुआ,
अतिथि का सम्मान।
महिला बाल जहां खुश रहें,
वो कुल होय महान ।। 57।।images-2

जिसके कोप से भय लगे,
शक्ति हो व्यवहार।
खरगोश की खाल में भेड़िया,
जाने कब कर दे प्रहार।। 58।।

वयोवृद्घ और ज्ञानवृद्घ का,
जो करता नही संग।
चंचल चित्त जाको रहे,
वो करै रंग में भंग ।। 59।

तीन व्यसन ही ठीक हैं,
विद्या, जाप और पुण्य।
ब्रह्मभाव में जी सदा,
रहो अहंकार से शून्य ।। 60।।

भाव अभाव, सुख दुख तो,
सब काहू को होय,
लाभ, हानि ,जीवन, मरण,
में मत धीरज खोय ।। 61।।

चिंतस से बल ज्ञान की,
होवै क्षति अपार।
इष्ट वस्तु मिलती नही,
रहने लगै बीमार ।। 62।।

गुरू की सेवा ज्ञान दे,
ज्ञान ही भय से छुड़ाय।
योग देय समभाव को,
तप तै ब्रह्म को पाय ।। 63।।

मन के संग मिल इंद्रियां,
करै ऊर्जा नाश।
टपका टपका घट रिसै,
बूंद रहै नही पास ।। 64।।

ज्ञान बिना मुक्ति नही,
और बिना ज्ञान के कर्म।
कर्म व्यर्थ बिन भाव के,
और बिना दया के धर्म।। 65।।

एक अकेले वृक्ष को,
आंधी देय उड़ाय।
जो मिल रहें समूह में,
आंधी भी सह जाएं ।। 66।।

सतजन अबला ज्ञातिषु,
पर जो बनता शूर।
आखिर एक दिन नष्ट हो,
कुदरत का दस्तूर।। 67।।

बालक, विधवा,वृद्घजन,
रोगी और मेहमान।
इनको मति सताइए,
धन-यश करै पयान ।। 68।।

क्रूर पुरूष की लक्ष्मी,
आंधी की तरह जाए।
सत्पुरूषों की लक्ष्मी,
फैले यश दिलवाय ।। 69।।

रोग खाय धन स्वास्थ्य को,
मृत्यु खावै प्राण।
चित्त के खावै चैन को,
अपयश रूपी बाण।। 70।।

श्रद्घाहीन को ज्ञान दे,
उदर भरे पै खिलाय।
मरूभूमि पर मेघ ज्यों,
बिन बरसे चल्यो जाए।। 71।।

कान सुनें महिमा तेरी,
जिह्वा से हो जाप।
चित्त रहै निर्मल सदा,
हो नही जावै पाप।। 72।।

सरिसि भरे नीर को,
वायु करै स्पर्श।
दूसरा कोना कीच में,
देख कै आवै तर्स।। 73।।

सरसि अर्थात बड़ा तालाब। प्राय: दक्षिणी भारत में सरसि नामक शब्द का प्रचलन है। सत्पुरूष की पहचान :-

समर्थ होय दयावान भी,
और अहंकार से शून्य।
वाणी संयत और सरस,
करै पुण्य ही पुण्य ।। 74।।

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