पिता ज्ञान मां सत्य है, बहन दया, भाई धर्म
गतांक से आगे….
तीरथ का फल देर में,
साधु का मिलै तुरंत।
मन निर्मल हो जात है,
सुधरे आदि अंत ।। 532 ।।

पिता ज्ञान मां सत्य है,
बहन दया, भाई धर्म।
शांति पत्नी पुत्र क्षमा,
जान गया वह मर्म ।। 533 ।।

जिस प्रकार कोई भी व्यक्ति अपने बंधु बांधव अथवा परिवार से बिछुड़कर बेचैन हो जाता है। ठीक इसी प्रकार हमारी आत्मा का भी एक परिवार है जिसके छह सदस्य हैं-ज्ञान, सत्य, दया, धर्म, शांति, क्षमा और धैर्य। जिसके अंत:करण में ज्ञान के प्रति श्रद्घा पिता तुल्य हो, सत्य के प्रति ममता मां के समान हो, दया और धर्म के प्रति अटूट और अन्योन्याश्रित संबंध हो, मन में शाति गृहलक्ष्मी बनकर पत्नी की तरह रहती हो, अर्थात कोई संताप न हो, चित्त में क्षमा और धैर्य सर्वदा पुत्रवत रहते हो, अहंकार शून्यता हो अर्थात कोई पश्चाताप अथवा बदले की भावना न हो, ऐसा व्यक्ति भी भी बेचैन नही होता। वह अल्मस्त होता है, अपनी मस्ती में चूर होता है, आत्मा के आनंद से भरपूर होता है। वह जीवन के गहनतम रहस्य को प्राप्त कर चुका होता है। परमपिता परमात्मा के बहुत करीब होता है।

धन का संचय सब करें,
धर्म का करता कोय।
यह धन यही रह जाएगा,
धर्म ही रक्षक होय ।। 534 ।।

सदाचार के कारनै,
याद करे संसार।
पुण्य प्रार्थना रोज कर,
अगला जन्म सुधार ।। 535 ।।

आचरण में पवित्रता,
और गुणग्राही होय।
ईश भगत वाणी मधुर,
सत्पुरूष के लक्षण होय ।। 536 ।।

कुलीन से सीख सुशीलता,
विद्वान से मीठे बोल।
माता से तप सीखना,
जीवन हो अनमोल ।। 537 ।।

क्षमता से ज्यादा खर्चता,
करे बिन साथी तकरार।
बिना विचारे जो बोलता,
सब देवें दुत्कार ।। 538 ।।

बेशक दुर्जन वृद्घ हो,
दुष्टता फिर भी न जाए।
बिच्छू हो सौ साल का,
फिर भी डंक चुभाय ।। 539 ।।

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