जन्म से पहले अन्न को, भेज देय भगवान
गतांक से आगे….
नीम को सींचे ईख से,
तो भी मिठास न पाय।
कितना ही समझा दुष्ट को,
सज्जनता नही आय ।। 522 ।।vijender-singh-arya
भाव यह है कि किसी के मूल स्वभाव को बदलना अत्यंत कठिन है।
ऊपर से कोमल रहे,
अंदर से हो क्रूर।
ऐसे बगुला भगत से,
रहो दूर ही दूर ।। 523 ।।

दुर्जन का धन व्यसन में,
सज्जन करता दान।
कृपा का धन नाश हो,
कहते वेद पुराण ।। 524 ।।

भोजन की चिंता कभी,
करे न बुद्घिमान।
जन्म से पहले अन्न को,
भेज देय भगवान ।। 525 ।।

पति पत्नी में प्रेम हो,
संस्कारी संतान।
आए का आदर करें,
है कोई पुण्यवान ।। 526 ।।
श्रद्घा से जो दान दे,
हृदय में करूणा का भाव।
ेऐसा जन संसार में,
है दिव्य लोक की नाव ।। 527 ।।

साधु के संग सरलता,
दुष्ट को होय कठोर ।
शत्रु के संग वीरता,
जन ऐसा सिरमोर ।। 528 ।।

सज्जन के दर्शन नही,
बड़ों का करे न मान।
दौलत हो अन्याय की,
थोड़े दिन का मेहमान ।। 529 ।।

उलूक को दीखै नही,
तो सूरज का क्या दोष?
बुद्घिहीन समझे नही,
तो ज्ञानी का क्या दोष? ।। 530 ।।
अर्थात दैवी शक्तियां भी उसी की सहायक होती हैं, जिसका प्रारब्ध बलवान होता है।

मिट्टी में खुशबू फूल की,
यह तो संभव होय।
मिट्टी की गंध हो फूल में,
कभी न संभव होय ।। 531 ।।
भाव यह है कि जो व्यक्ति श्रेष्ठ और सौम्य स्वभाव के हैं उनके सानिध्य में आने से दुष्ट पुरूषों के स्वभाव में परिवर्तन हो सकता है, किंतु दुष्टों के संपर्क में आने पर भी सत्पुरूष अपना स्वभाव और दिव्य गुणों को कभी नही छोड़ते हैं। जैसे अंगुली मार डाकू महात्मा बुद्घ के सानिध्य में आने से परिवर्तित हो गया था।
क्रमश:

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