क्षमा को दोष न मानिए, क्षमा परम बल होय

ज्ञानी गुणी के बीच में,
श्रेष्ठ है कितना कौन?
मूर्खता को ढांप ले,
कुछ पल रहकर मौन ।। 286।।

शहद की बूंदों से नहीं,
सागर मीठा होय।
मूर्ख तजै नही मूर्खता,
चाहे अमृत वर्षा होय ।। 287।।

संभव है मृग-मरीचिका,
में मिल जावै नीर।
मूर्खजन को सुधारना,
बड़ी ही टेढ़ी खीर ।। 288।।

समझाना है अबोध को,
ज्ञानी को संकेत।
मूरख तो मानै नही,
चाहे ब्रह्म करे सचेत।। 289।।

मणि प्राप्ति सहज है,
और लहरों पै पयान।
मूरख गुणग्राही बनै,
मोड़ना नही आसान ।। 290।।

ज्ञानियों में ईर्ष्या,
और मद में है चूर।
सद्भाव सड़ै है चित्त में,
फैले ना ज्ञान का नूर ।। 291।।

ईर्ष्यालु घृणा करै,
क्रोधी और बेचैन।
परजीवी शंकालु हों,
दुखी रहें दिन रैन।। 292।।

निंदा रस में रूचि नही,
और गुण ग्राही होय।
कल्मष से जो दूर हो,
ऐसा बिरला कोय ।। 293।।

क्षमा भूषण बलवान का,
निर्बल का गुण होय।
क्षमा को दोष न मानिए,
क्षमा परम बल होय।। 294।।

तृण रहित स्थान पर,
अग्नि स्वत: बुझ जाए।
क्षमावान का क्रोध भी,
प्रभाव शून्य हो जाए।। 295।।

विद्या तृप्तिकारिणी,
क्षमा शांति बरसाय।
धर्म करै कल्याण तो,
अहिंसा सुख को लाय।। 296।।

निर्धन करे बड़ी वांछा,
निर्बल करता क्रोध।
गन्ने की तरह सूखते,
मन में रहे न मोद ।। 297।।

परधन और पर स्त्री,
पर नीयत मचलाय।
मित्रों का करे त्याग जो,
स्वयं नष्टï हो जाए ।। 298।।

काम क्रोध और लोभ तो,
तीन नरक के द्वार।
आत्मा का करें नाश ये,
हो न सके उद्घार ।। 299।।

सत्य दान पुरूषार्थ को,
त्यागे न धैर्यवान।
अनसूया क्षमाशील गुण,
करते कान्तिमान ।। 300।।

गुरू को चेला भूल जा,
रोगी भूलै हकीम।
मां को बेटा भूल जा,
कैसा इनका नसीब।। 301।। क्रमश:

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