पैगंबर हजरत इब्राहीम द्वारा की गयी कुरबानी की घटना-3

मुजफ्फर हुसैन
गतांक से आगे…….
मुसलमानों के लिए कुरबानी के नियम दो प्रकार के हैं। एक तो वे जो अल्लाह के आदेशानुसार चले आ रहे हैं और दूसरे वे, जो बाह्य दुनिया से संबंधित है। कुरबानी के नियम मुसलिमों के खान पान से भी जुडे हुए हैं। कुरबानी का आंतरिक अर्थ तो यही है कि हम अपना जीवन ईश्वर के लिए समर्पित कर दें। किसी प्राणी को मारने के स्थान पर हमारे मन में जितनी पशुता भरी है वह बाहर निकाल फेंके और अपने तन मन को शुद्घ कर लें। कुरबानी का अर्थ भेड़, बकरा अथवा गाय को कत्ल करना नही है, बल्कि बावा मोहियुद्दीन के मतानुसार हमारे भीतर जो लाखों करोड़ों प्रकार के दोष, पशुता और दानवता भरी पड़ी है उसको कत्ल कर दें। जिन सभी वस्तुओं में दुनियादारी दिखाई पड़ती है वे सब हराम है और जो कुछ अल्लाह में दिखाई पड़ता है, केवल वही हलाल है। अत: जो अल्लाह को पसंद हो उसी को खाओ।
पांपरिक ढंग से कुरबानी के समय जो कलमा पढ़ा जाता है, उससे पशु के समस्त दोष समाप्त हो जाते हैं। तीसरी बार जब कलमा पढ़ेंगे तो वह उस पशु को ही केवल शुद्घ नही करेगा बल्कि उसको भी शुद्घ कर देगा जो उसकी कुरबानी करने जा रहा है। इसके बाद उसे किसी की कुरबानी करने की आवश्यकता नही रहेगी।
यह परिवर्तन उसी समय होगा जब वह ईश्वर के सम्मुख अपने को शुद्घ भाव समर्पित करेगा।
इसलाम में पशुओं की कुरबानी की एक लंबी और विस्तृत प्रक्रिया है। वास्तव में संपूर्ण प्रक्रिया कम से कम पशुओं की कुरबानी के लिए प्रेरित करती है इसलिए बाबा मोहियुद्दीन कहते हैं जब तुम कलमा पढ़ते हो तब तुम्हें चाकू को तीन बार गले पर फेरते समय हर बार कलमा पूरा करना अनिवार्य है। गले पर चाकू चलाते समय वह गर्दन की हड्डी से टकराना नही चाहिए। वह बहुत धारदार होना चाहिए। उसकी लंबाई हर पशु के अनुसार तय होनी चाहिए। हलाल करने से पूर्व जानवर ने जो कुछ खाया है, वह न तो उसके मुंह से बाहर आना चाहिए और न ही वह चिल्लाना चाहिए।
वह व्यक्ति, जिसने कु रबानी के पशु को पकड़ रखा है और जो उसे हलाल कर रहा है, वह नियमित रूप से पांच समय की नमाज पढ़ने वाला हो। इसलिए यदि इमाम और बांगी कुरबानी करने वाले होंगे तो उचित रहेगा। इसलिए कुरबानी का स्थान मसजिद के निकट होगा तो उत्तम रहेगा, क्योंकि वहां पांच समय की नमाज पढ़ने वाले लोग मिल जाएंगे। कुरबानी से पूर्व उन्हें पवित्र होने के लिए वुजू करना चाहिए और तीन बार कलमा पढ़ना चाहिए।
जिस पशु की कुरबानी की जा रही है, उसे पानी पिलाना चाहिए। पशु को मक्का की दिशा में लिटाना चाहिए। यह इसलिए अनिवार्य है कि पशु को हलाल करने वाले व्यक्ति की आंखें उक्त पशु की आंखों में झांक सकें। जब तक उसकी जान नही निकल जाती, उसे निरंतर पशु की आंखों में देखते रहना चाहिए। फिर उसे कलमा पढ़कर गर्दन काटनी चाहिए। प्राण निकल जाने के बाद फिर से कलमा पढना चाहिए और उस पशु की आंखों में झांकर मरने से पहले पशु की आंख से निकले आंसुओं को देखते रहना चाहिए। चाकू को धोकर साफ कर देना चाहिए। पशु की आंखों में आंसू देखकर निश्चित ही उसका दिल बदल जाएगा।
ऐसा किया गया तो कुरबानी के लिए हलाल करने वाले पशुओं की संख्या कम हो जाएगी। जहां लोग हजार दो हजार जानवर काटते हैं, यदि उनके काटने संबंधी उपर्युक्त लिखी बातों पर ध्यान दिया गया तो उनकी संख्या दस से पंद्रह रह जाएगी। क्योंकि इतना सब करने के लिए समय की आवश्यकता पड़ती है। प्रात:काल दस बजे प्रार्थना करने के पश्चात वे इन सारे नियमों का पालन करते हुए कुरबानी करेंगे तो रात के 11 बज जाने वाले हैं। क्योंकि जब तक एक कुरबानी किये गये जानवर के पूर्णरूप से प्राण नही निकल जाते, उसके लिए कम से कम 15 मिनट का समय लगना निश्चित है। इसलिए पांच बार की नमाज के बीच कितना समय मिलेगा कि असंख्य पशुओं को हलाल किया जा सके। यानी काटे जाने वाले पशुओं पर अपने आप मर्यादा आ जाएगी। यदि इतना होता है तो यह भी हिंसा के बीच एक बहुत बड़ी अहिंसा की घटना होगी।
उस समय लोगों को यह शिकायत हो सकती है कि इतने कम समय में हम कुरबानी किस प्रकार पूरी कर सकेंगे? (लेखक की पुस्तक ‘इस्लाम और शाकाहार’ से)
क्रमश:

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