देश चले भगवान भरोसे

नेताओं का जोर है ऐसा। आरोपों का शोर है ऐसा।।
कोई नेता लेता झप्पी। और कोई लेता है पप्पी।।
पप्पी-झप्पी सब हैं लेते। पर दूजे के सर मढ़ देते।।
अकल गयी सबकी बौराई। नेतागीरी ऐसी भाई।।
अपना काम अगर है बनता। भाड़ में जाए देश व जनता।।
राजनीति का खेल यही है। बिन मतलब के मेल नही है।।
छल बल धन का जूता जिस पर। सभी जान देते हैं उस पर।।
गाफिल गैरों को मत कोसे। देश चले भगवान भरोसे।।

Comment: