गायों का शोषण घोर पाप कर्म है

सुरेश रा. कुलकर्णी
हमारे पूर्वज सृष्टि के नियमों और प्रक्रिया विधि को अच्छी तरह से जानते थे। उन्हें गाय के महत्व का भी पता था और उसे सताने, उसका उत्पीड़न करने से होने वाले परिणामों का भी ज्ञान था। इसलिए यदि इतिहास में सभी संस्कृतियों व धर्मों में गाय को पूजा जाता था। तो इसमें कोई अचंभे वाली बात नही थी। चाहे वह मिस्र देश की देवी हाथोर हो, फ्रांस की दिव्य गाय दामोना हो, अतिप्राचीन गाय औधुम्बला हो जो नॉर्डिक्स के अनुसार मानवता की जननी थी, ग्रीक देवी लो हो, भगवान शिव का प्रिय नंदी हो या फिर समृद्घि देन ेवाली गाय कामधेनु हो, सभी प्रतीकों में गाय को आराध्य बताया गया है, क्योंकि जीवन की धुरी इस प्राणी के इर्द गिर्द घूमती थी। अथर्ववेद के अनुसार धेनु सदानाम रईनाम (11-1-34) गाय समृद्घि का मूल स्रोत है। इस मंत्र से सिद्घ हो जाता है कि वैदिक ऋषियों का सृष्टि की कितनी समझ थी। गाय को देखें तो ज्ञात होता है कि इसी कारण हमें दूध अन्य डेयरी उत्पाद मिलते हैं, इसके गोवर से ईंधन व खाद मिलती है, इसके मूत्र से दवाएं व उर्वरक बनते हैं। जब यह हमारे खेतों में चलती है तो खेत जुतते हैं और दीमक दूर हो जाती है जब हम देवों से संपर्क साधना चाहते हैं तो हम इसके घी व उपले से यज्ञ करते हैं। जब गाय ने कबीर के माथे को चाटा तो कबीर को अद्भुत काव्यगत क्षमताओं का आशीर्वाद मिल गया। गाय समृद्घि व प्रचुरता की वह सृष्टिï के पोषण का स्रोत है वह जननी है।
आज गोजातीय देवी का अपमान किया जा रहा है, उसका शोषण हो रहा है और बड़ी बेरहमी से उसका संहार किया जा रहा है। जिस गाय को कभी मंदिरों और महलों में रखा जाता था आज उसे ऐसे स्थानों में रखा जा रहा है जहां ताजी हवा नही है उसे प्लास्टिक और कूड़ा घर में पेट भरने के लिए छोड़ दिया जाता है। उसे स्टेरॉयड व एंटीबायोटिक गर्भधारण करवाया जाता है और अंत में हमें मांस का भोग कराने के लिए मार दिया जाता है। दुनिया में प्रचलित सभी धर्मों में कर्म के विधान को महत्व दिया जाता है। धर्म मार्ग का सारतत्व है यह शिक्षा कि आप बोओगे वैसा ही काटोगे। आप कल्पना कर सकते हैं कि हमें पोषण देने वाली और हमारा पालन करने वाली गाय का शोषण कर हम कैसे कर्म एकत्रित कर रहे हैं? हमारे शरीर पर इसका प्रभाव तुरंत दिखाई देता है और हमारे जीवन पर इसका प्रभाव प्रकट होने में कुछ वर्ष का समय लगेगा।
प्रेषक : शिव कुमार गोयल
पिलखुवा, हापुड़
(प्रेषक एक वरिष्ठ साहित्यकार हैं)

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