कुरान और हदीस की रोशनी में शाकाहार-2

मुजफ्फर हुसैन
गतांक से आगे….
अपने शोधपत्र में डा. मुनाफ लिखते हैं-पवित्र कुरान के अनुसार प्रगति के दो मार्ग हैं-अपनी खुशियों को बढ़ाकर अथवा अपने दुखों को कम कर के लेकिन इसके लिए पशुओं की हत्या करने के लिए नही कहा गया है। मनुष्य को जिनसे प्रेम और खुशियां मिली हैं उनमें महिला, बच्चे, सोने चांदी के ढेर का एकत्रीकरण अपने लिए घोड़े पालतु पशु तथा भूमि का समावेश होता है। इससे जीवन में सुख मिलता है। यह उसके लिए ईश्वर का वरदान है, लेकिन वह कहता है कि इससे भी कुछ अधिक अच्छी वस्तुएं हैं। ईश्वर के दिये हुए बाग बगीचे जिनमें बहती नदियां और सदा सर्वदा के लिए घर जिसमें हमेशा मिलने वाला ईश्वरीय आनंद। ईश्वर अपने मानने वालों के प्रति बड़ा कृपालु है
कुल ओ नबेअकुम बखेरिम्मिन जालेकुम लिल्लजीनत्तकू इंदा रब्बेहिम जन्नातो तजरी मिन तहतेहल अनवारो खालेदीन फीहा व अजवाजुन मुतहररतुनव्वा रिजवानो मिनल्लाहे वल्लाहो बसीरून बिलहबाद।
कुछ लोग भौतिक दुनिया के इच्छुक है और कुछ इसके पश्चात यानी आखिरत के (जो मृत्यु उपरांत कयामत के दिन) अल्लाह के फेेसले के बाद मिलने वाला है।
इस प्रकार पवित्र कुरान दो प्रकार के लोगों का वर्णन करता है। एक वे जो स्वर्गीय आनंद प्राप्त करना चाहते हैं और दूसरे वे जो हर स्थिति में ईश्वर के प्रेम से बंधे रहना चाहते हैं।
सामान्य जनता में से वे लोग, जो मांसाहार करने हेतु अपनी भावनाओं और जबान पर अंकुश नही लगा सकते, उनके लिए मांसाहार की छूट है, लेकिन नियमानुसार उसे खाने के लिए कहा नही गया है। ऐसे नियम बनाने का आग्रह किया गया है कि वे धीरे धीरे ये बुरी आदत छोड़ दें, किंतु जो संपूर्ण जीवन अपने ईश्वर के लिए समर्पित कर देना चाहते हैं और ईश्वर का प्रेम चाहते हैं उनके लिए मांसाहार वर्जित है।
उदाहरण के लिए पवित्र कुरान में ये आयते हैं।
तुम्हारे पर मुरदार पशु का मांस, रक्त और अन्य वस्तुएं हराम (वर्जित) है, जो अल्लाह के अतिरिक्त किसी और का नाम लेकर काटा गया है। अथवा तो उसे पीट कर मारा गया है या तो उसकी जान निर्दयतापूर्वक ली गयी है, या तो किसी अन्य ने उसे कत्ल कर दिया है या ऊपर से नीचे गिरकर मरा है, या किसी जंगली जानवर ने उसका कुछ भाग खा लिया है, उसे पत्थर पर काटा गया है, उसकी बलि चढ़ाई गयी है या उसे नुकीले तीर से मारा गया है। वह खाने के लिए हराम घोषित किया गया है। उक्त पशु के मांस को कुरान में वर्जित घोषित किया गया है।
हुर्रेमत अलेकुमुल मेततो वददमो वलहमुल खिनजीरे व मो ओ हिल्ला ले गैरिल्लाहे बेही वज मुनखनेकतो वल मौकूजतो वल मुतरददेयतो वन्नसीहतो वमा अकलस्मबोअ इल्ला माजकेतुमो वमा जबेहा अलन्नोसोबे व अन तसतक सेमू बेअला जोलमे जालेकुम फिसकुन अलयोमा येअसललजीना कुफरू मिन दीलेकुम फला तखशोहुम व अखशोले अलमोया अकमलतो लकुम दीनुम व अतममतो अलेकुम नेअमती व रजिय्यतो लकुमुल इस्लामा दीनन फमिनजतुर्रा की मखमसतिन गैरा मुतजानेफिन मिलल फइन्नल्लाहा, गफूरून रहीम।
इसलिए हम इस आयत से समझ सकते हैं कि पवित्र कुरान ने हर प्रकार का मांस खाने की आज्ञा नही दी है। केवल उस पशु का मां, जिसे भोजन के लिए कलेमा (तकबीर) पढ़कर अल्लाह के नाम से जबह (हलाल) किया गया है। इसका अर्थ यह हुआ कि खाने के लिए पशु को मारना एक व्यक्तित्व बात है। वह बूचड़खाने खोलने और हजारों पशुओं को संगठित रूप से प्रतिदिन एक साथ मारने का सुझाव और सलाह नही देता। जिन्हें मांस खाना है, वे व्यक्तिगत रूप से खा सकते हैं, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्म और दायित्व के लिए जिम्मेदारी लेनी होगी। कयामत (अंतिम निर्णय) के दिन सभी मारे गये प्राणियों में जान आ जाएगी, तब वे उनसे उस दिन बदला लेंगे, जिन्होंने उसे कष्ट दिया है अथवा मारा है। केवल उन्हें छूट दी जाएगी जिन्होंने हलाल किये हुए जानवर का मांस खाया है, जिन्हेांने मांस खाने से परहेज किया और ईश्वर का प्रेम प्राप्त करने के लिए धीरज धरा, उससे उनकी आध्यात्मिक भावनाएं जाग्रत होंगी।
उपर्युक्त आदर्श को स्पष्ट करने के लिए ‘सूरा अलमाइदा’ में कहा गया है कि मक्का की सरहद जो बहुत ही पवित्र है, उसमें जानवरों को काटने के लिए इनकार किया गया है। एक विशेष आरक्षित स्थान अथवा धार्मिक यात्रा के स्थान पर जानवरों के शिकार करने की मनाही है।
या अय्योहल्लजीना आमनोवा औफू बिल उकूदे लकुम बहीमतुल अनआमे इल्ला मा युतला अलेकुम गैरा मुहिल्लस्मैदे व अनतुम होरोमुन इनल्लाहा यहकुमो मायुरीद।
इसका अर्थ यह हुआ कि शिकार करने औरखेल के लिए जानवरों का उपयोग वर्जित है, जब तुम हरम (पवित्र काबा) में हो, अथवा मक्का की सरहद में हो या हज यात्रा पूर्ण करने के लिए आवश्यक वस्त्र ‘अहराम’ धारण किये हुए हों। इन सभी के लिए ‘सूरा माइदा’ में आदेश दिया गया है।
क्रमश:

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