कुरान और हदीस की रोशनी में शाकाहार-5

मुजफ्फर हुसैन
गतांक से आगे….
पैगंबर साहब की एक हदीस के अनुसार- यदि कोई एक छोटी चिड़िया को बिना किसी कारण मारता है तो उसे कयामत के दिन उसका हिसाब देना होगा। यदि कोई किसी घायल चिड़िया के प्रति दया दिखाएगा और उसकी सेवा शुश्रूषा करेगा तो कयामत के दिन ईश्वर उस पर दया दिखाएगा। यदि कोई प्राणी दर्द से कराह रहा है तो उसे भी मार देने के लिए इनकार किया गया है
यदि जानवरों को इनसानों की तरह उनकी मृत्यु का अहसास हो जाएगा तो वे मांस का भक्षण नही करेंगे। पैगंबर मोहम्मद साहब का जीवन चरित्र उनके पशु पक्षियों के प्रति प्रेम से भरा पड़ा है। उदाहरण के लिए पैगंबर साहब के जीवन चरित्र संबंधी पुस्तक के प्रख्यात लेखक मारगोलिययोथ लिखते हैं-वे छोटे जीवों और निचले वर्ग के लिए अधिक कृपा और दया दिखाते थे। छोटी चिड़िया के साथ जो निर्दयतापूर्वक व्यवहार करते थे, उनका सख्ती से विरोध किया है। जो अपने ऊंट के साथ दुर्व्यवहार करते थे और सवारी के जानवरों का गाड़ी आदि में क्रूरतापूर्वक उपयोग करने से मना करते थे। उनके कुछ साथियों ने जब पहाड़ी चीटियों के झुंड को आग लगा दी तो उनके संहार करने पर वे नाराज हुए और उन्हें इसके लिए फटकारा। इस प्रकार जहां भी निर्दयता और क्रूरता के दृश्य उपस्थित हुए, उन्होंने उसका डटकर विरोध किया।
डॉक्टर एम हॉफिज ने लिखा है कि पैगंबर साहब उन लोगों को अपना मुंह भली प्रकार साफ करके नमाज पढ़ने जाने की हिदायत देते थे, जिन्होंने मांस का भक्षण किया है। कुछ लेखकों का कहना है कि उन्होंने उक्त आदेश सभी प्रकार के भोजन के लिए दिया है, लेकिन कुछ का कहना है कि उन्होंने यह विशेष आदेश मांसाहार करने वालों के संबंध में दिया है।
पैगंबर मोहम्मद साहब सर्वाधिक संवेदनशील थे। उन्होंने संपूर्ण जगत और मानवता के लिए दया, करूणा, प्रेम और सहानुभूति दर्शाई है। उन्होंने उसी प्रकार संवेदनशील बनने की नसीहत अपने अनुयायियों को भी दी है। उनके जीवन का एक मार्मिक प्रसंग हम यहां उद्धृत करते हैं। एक दोपहर को पैगंबर साहब सो रहे थे, वहीं आपके पास आकर एक बिल्ली भी सो गयी। वे जब उठे तो देखा, बिल्ली गहरी नींद में है और बीमार लगती है, यदि अपने पहने हुए कपड़े को बिल्ली के नीचे से खींचते हैं तो बिल्ली जाग जाएगी। इसलिए उन्होंने अपने उस कपड़े को ही काट दिया, जिस पर बिल्ली सो रही थी। क्या ऐसा इनसान व्यर्थ में ही जानवरों को मारने का समर्थन करेगा? पैगंबर साहब ने अपने से कमजोरों के प्रति दया दिखाने की बारबार नसीहत दी है।
एक हदीस दरशाती है कि पैगंबर साहब ने अपने अनुयायियों को उनकी संवेदनहीनता पर फटकार लगाई है। उन्होंने कहा जो दया के पात्र हैं उन पर दया दिखलाओ। आपने कहा केवल अपनी पत्नियों और बच्चों के प्रति ही नही बल्कि संपूर्ण विश्व की मानवता के लिए।
हजरत मोहम्मद पैगंबर साहब के जीवन चरित्र पर लिखने वाले प्रख्यात लेखकों का यह कहना है कि वे शाकाहारी भोजन को प्राथमिकता देते थे। वे दूध में पानी मिलाकर पीते थे। वे मक्खन मिला दही पसंद करते थे। खजूर और ककड़ी, खीरा साथ साथ खाते थे। अनार, अंगूर और अंजीर को पानी में भिगोकर खाना पसंद करते थे। उन्हें शहद बहुत पसंद था। वे इसे सिरके में मिलाकर खाते थे। उनका यह सुभाषित था कि जिस घर में शहद और सिरका होगा वहां ईश्वर का आशीर्वाद रहेगा। अनेक पुस्तकों में पैगंबर साहब को उद्धृत करके कहा गया है कि जहां सब्जियों की बहुतायत होगी, वहां फरिश्तों का वास होगा।
पैगंबर मोहम्मद साहब के निधन का मुख्य कारण यह बताया जाता है कि उनको विष युक्त मांस खिला दिया गया था। घटना इस प्रकार है कि एक गैर मुसलिम महिला ने पैगंबर साहब को उनके कुछ साथियों के साथ घर पर भोजन के लिए निमंत्रण दिया। भोजन में जहर मिला हुआ मांसा परोसा गया। हजरत पैगंबर साहब ने अपनी आध्यात्मिक शक्ति से पहचान लिया कि मांस में विष मिला हुआ है। उन्होंने मांस के उस टुकड़े को चबाया, जो विषैला था। इससे उनके एक साथी की घटनास्थल पर ही मौत हो गयी। यद्यपि परंपरा के अनुसार वे किसी गैर मुसलिम के यहां भोजन नही करते थे। किंतु उन्होंने रहस्य को समझते हुए भी यहां आकर भोजन कर लिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि वे दो वर्ष तक बीमार रहे और अंतत: सन 632 ईं में उनका निधन हो गया। कुछ लोगों का यह मत है कि उन्होंने उक्त क्रिया इसलिए की कि लोग समझ जाएं कि मांसाहार कितना नुकसानदायक है।
जो मुसलिम हज यात्रा पर जाते हैं वे बिना सिले हुए कपड़े के दो टुकड़े की पोशाक धारण करते हैं, जिसे अहराम कहा जाता है। उक्त वस्त्र जो अत्यंत साधारण होता है, वह इस बात का प्रतीक होता है कि मनुष्य दुनिया के आडंबर और दंभ से दूर हो जाए। क्रमश:

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