कर्नाटक का चुनाव भाजपा के कलह की हार है और कांग्रेस भाजपा की विकल्पहीनता की स्थिति में चुन ली गयी है। कर्नाटक में कांग्रेस 120 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत प्राप्त करने में सफल रही है, कुल सीटों में से 40 सीटें जीतकर भाजपा को अपने अंतर्कलह का फल मिल गया है। प्रदेश की जनता ने राहुल बनाम मोदी के नाम पर नही अपितु अपने हितों के दृष्टिगत प्रदेश को एक स्थिर सरकार देने के लिए सत्ता कांग्रेस को सौंपी है। राष्ट्रीय मुद्दों पर यह चुनाव नही लड़ा गया और ना ही लड़ा जा सकता था। तनिक 1984 में जाकर देखें तो ज्ञात होता है कि प्रदेश की जनता ने लोकसभा चुनावों में राजीव गांधी को दो तिहाई सीटें दी थीं, लेकिन कुछ समय बाद जब विधानसभा के चुनाव हुए तो सत्ता रामकृष्ण हेगड़े को सौंप दी, यानि प्रदेश रामकृष्ण हेगड़ को और देश राजीव गांधी को दे दिया। इस प्रकार प्रदेश की जनता ने अपना सधा सधाया निर्णय सुनाया और अपनी परिपक्वता का प्रदर्शन कियाamanarya35@gmail.com
अत: प्रदेश की जनता की परिपक्वता पर विश्वास किया जाए तो प्रदेश विधानसभा के चुनावों को राहुल गांधी बनाम नरेन्द्र मोदी कहकर राहुल उत्तीर्ण और मोदी अनुत्तीर्ण कहा जाना गलत होगा। 2014 के चुनावों का परिणाम आने पर ही राहुल और मोदी की सफलता या असफलता का आंकलन किया जाएगा। आज के परिणामों ने कर्नाटक में पूरे समय अंर्तकलह का शिकार रही भाजपा की आंखें खोली हैं। ‘पार्टी विद डिफरेंस’ का राग अलापने वाली इस पार्टी को अब अपने गिरेबान में झांकना होगा और देखना होगा कि अंतर्कलह से कितनी भारी क्षति उठानी पड़ जाती है। पार्टी के लिए यह दुखद है कि इसने सालों तक अपने कलह की जारी रखा और अब भी उससे कोई सबक लेने को तैयार नही है। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा है कि उन्हें कर्नाटक के चुनाव परिणामों को देखकर कोई हैरानी नही हुई है। इसका मतलब है कि उन्हें कर्नाटक की जनता की नाराजगी की पहले से भनक थी कि प्रदेश की जनता भाजपा की मूर्खताओं की सजा देने के लिए तैयार बैठी है। परंतु यहां आडवाणी की साफगोई को सराहने की आवश्यकता नही है, बल्कि देखना ये है कि आडवाणी एक जिम्मेदार नेता होकर भी पार्टी को अंतर्कलह से उबार नही पाए और जिस समय पार्टी अंतर्कलह से बुरी तरह त्रस्त थी, उस समय अंतर्कलह को कहीं न कहीं हवा देने का काम करते रहे। तब आडवाणी की अंतर्रात्मा कहां गयी थी? आज यदि वो साफगोई दिखा रहे हैं तो भाजपा में आ रहे मोदी युग को रोकने या उसे पहले से पहले ही बदनाम करने के लिए तो कहीं उनकी आत्मा न जाग उठी है?
कांग्रेस के राहुल गांधी को पार्टी की जीत का श्रेय देने वालों की पार्टी में होड़ लगी है। बिना किसी सच की समीक्षा किये असत्य का महिमामण्डन हो रहा है। पार्टी में ऐसी चाटुकारिता का पुराना इतिहास रहा है। लगभग एक वर्ष पूर्व राहुल गांधी यूपी चुनावों में मिली शर्मनाक पराजय पर जब मुंह लटकाए दिल्ली पहुंचे थे तो उस समय की पराजय का ठीकरा पार्टी ने पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई के अंतर्कलह के सिर फोड़ा था। कहने का अभिप्राय है कि पार्टी जीत जाए तो राहुल भैया का पुरूषार्थ कहा जाता है और हार जाए तो पार्टी नेताओं की फूट और कलह का परिणाम कहकर राहुल भैया को बचाया जाता है। पार्टी की यह प्रवृत्ति उसके जिंदापन की निशानी नही है। यह मुर्दादिली का सबूत है और ऐसी मुर्दादिली से कोई भी पार्टी अधिक देर सत्ता में नही रह पाती है। केन्द्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा है कि इस जीत का श्रेय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी और पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी को जाता है। लगता है तीनों के लिए श्रेय देना कांग्रेसियों की मजबूरी है। चापलूसी में अकेले सोनिया को श्रेय दे नही सकते, प्रोटोकॉल के तहत पीएम को भी साथ लाना पड़ता है, जबकि कांग्रेस के भविष्य राहुल को छोड़ा नही जा सकता। अन्यथा कांग्रेस तो ‘वन मैन शो’ पार्टी रही है।
पर भाजपा ने भी देश की जनता को निराश ही किया है। इसने कई मायनों में कांग्रेस की फोटोकॉपी होने का परिचय दिया है। प्रदेश की जनता ने ठीक ही किया है कि उसने एक राष्ट्रीय दल से सत्ता छीनकर दूसरे राष्ट्रीय दल को सत्ता सौंप दी है। क्षेत्रीय पार्टियों को कर्नाटक की जनता ने मुंह नही लगाया है। यह पक्ष इस चुनाव का सर्वाधिक सुखद पक्ष है। राजनीति का हस्तक्षेप देश के लिए घातक सिद्घ हुआ है। दबाव में अपने समर्थन की कीमत मांगकर परोक्ष रूप से ये क्षेत्रीय दल देश को लूटते हैं। इसलिए राष्ट्रहित में ऐसे दलों को नकारकर प्रदेश की जनता ने सराहनीय कार्य किया है। सचमुच प्रदेश की जनता बधाई की पात्र है, कांग्रेस में इस समय शहनाई बज रही हैं, जबकि भाजपा ‘बिदाई’ का गम झेल रही है। देखते हैं 2014 में प्रदेश की जनता अपनी परिपक्वता का किस प्रकार प्रदर्शन करती है? आज की तारीख में तो कर्नाटक ने जो नाटक किया है उसका सचमुच जवाब नही।
हमें उम्मीद करनी चाहिए कि भाजपा कर्नाटक चुनावों के परिणामों से शिक्षा लेगी और आडवाणी जैसे बड़े नेताओं की आत्मा पार्टी को अंतर्कलह से उबारने के लिए ‘बड़ा बलिदान’ देने के लिए तैयार करेगी। साथ ही कांग्रेस इन चुनावों के परिणामों को केवल यह समझकर देखेगी कि प्रदेश में कोई विकल्प न होने के कारण उसे सत्ता मिली है, यह सत्ता मनमोहन सरकार की भ्रष्टाचार पूर्ण कार्यशैली को स्वीकार करने और उसपर अपनी सहमति की मुहर लगाने की जनता की सोच का परिणाम कतई नही है। मनमोहन सरकार की भ्रष्टाचार पूर्ण कार्यशैली पर देश की जनता का फैसला आना तो अभी शेष है, हमें थोड़ा सा इंतजार करना होगा।

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