इस्लाम साहित्य में शाकाहार-5

niramishगतांक से आगे….
उन्हें एक विशेष कला के तहत छवा देते हैं, जिससे बालू व रेत की आंधी घर के अंदर तक नही पहुंचती। दिन की गरिमी से वे ठंडक देते हैं, लेकिन रात की ठंड में उनका स्वभाव गरम हो जाता है। इस समय अरबस्थान में 150 से अधिक खजूर की प्रजातियां हैं। जिनमें अंबरी, कलमी और सफवी प्रसिद्घ है। मस्कट की खजूर सबसे अधिक प्रसिद्घ है। काले रंग की इस खजूर में गूदा अधिक होता है। अब तो गुठली और बिना गुठलीवाली खजूरें भी उपलब्ध हैं। खजूर के वृक्ष में नर और मादा होते हैं। अरबी साहित्य में खजूर की खेती से लगातार उससे बनने वाली औषधियों तक का वर्णन मिलता है। खजूर की गुठलियों को पीसकर उसके पाउडर का लेप सीने पर लगाने से उच्च रक्तचाप ठीक हो जाता है। लाहौर से प्रकाशित होने वाला मासिक ‘अलहकीमÓ ने फरवरी 1940 का अंक केवल तमर (खजूर) पर निकाला था, जिसमें यह बताया गया था कि खजूर का फल और उसकी गुठली 126 बीमारियों को ठीक करने में दवा के रूप में उपयोगी होती है। खजूर को काटने का अर्थ होता है किसी इनसान को कत्ल करना। इसलिए एक समय ऐसा था कि अनेक कबीले खजूर को काटने वाले व्यक्ति को दंडित करते थे। खजूर के तने को एक बार काट देने के पश्चात वह कभी बढ़ता नही है, जबकि अन्य वृक्ष समय के साथ पुन: जीवित हो जाते हैं। रमजान में रोजा छोडऩे के लिए खजूर का अधिकतम उपयोग किया जाता है। उसे मुसिलम इसलिए पवित्र मानता है, क्योंकि वह उसके प्यारे पैगंबर की धरती की उपज है। रेगिस्तान की जनता यदि खजूर की खेती करके अपने जीवन को सफल बना सकती है तो फिर कृषि प्रधान देशों में तो असंख्य वनस्पतियां हैं। उनका उपयोग कर यहां के मांसाहारी स्वयं को स्वस्थ क्यों नही रख सकते? वनस्पति संबंधी इनसाइक्लोपीडिया में खजूर संबंधी जानकारी बहुत बड़े पैमाने पर उपलब्ध हैं।
इसलामी पुस्तकों के प्रसिद्घ लेखक काजी नोमान ने अपनी प्रसिद्घ पुस्तक दाइमुल इसलाम भाग 3 में लौकी, जिसे दूदी और आल भी कहा जाता है, उसकी बड़ी प्रशंसा की है। उन्होंने लिखा है-अद्दुब्बा यजीदो फिल अक्ल यानी लौकी बुद्घि में वृद्घि करती है। पीपल की अरबी में शजरूल मतरअश कहा गया है। इजिप्ट के एक लेखक की प्रकाशित अरबी पुस्तक में संस्कृत का वह श्लोक भी उद्घरित किया गया है, जिसमें कहा गया है-पीपल की जड़ ब्रह्मïा है छाल विष्णु है, उसकी डालियां शिव हैं और हर पत्ता देवता है। ऐसे वृक्षों के राजा को नमस्कार। पीपल के गुणों का इसमें विस्तार से उल्लेख किया गया है।
नीम को अरबी में शफीकुल नबातात कहा गया है, जिसका सीधा अर्थ है कृपालु। वास्तव में वनस्पति शास्त्र का यह ऐसा वरदान है जो जीवन भर इनसान का मित्र बनकर रहता है। इस वृक्ष का निर्माण कर कुदरत ने मनुष्य को मुंह मांगा वरदान दिया है। मनुष्य स्वास्थ्य चाहता है और नीम उसका अनुपम स्रोत है। अरब भूखंड में नीम नही मिलता, लेकिन सऊदी सरकार ने रियाद से जिद्दा की ओर जाने वाले मुख्य मार्ग पर दोनों ओर नीम के वृक्ष लगवाए हैं। जब नीम के पौधे छोटे थे, उस समय उनकी सुरक्षा पर प्रति नीम एक हजार रियाल का खर्च किया था। इस वृक्ष की हर वस्तु काम की है। उसकी छाया अत्यंत ठंडी और स्वास्थ्यवर्धक मानी गयी है।
बरगद को अरबी में कबीरूल अशजार कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है एक घना वृक्ष, जिसमें अनेक वृक्ष शामिल होते हैं। वृक्ष तो एक ही है, लेकिन उसकी डालियों में से नई जड़ें फूटती हैं और वह धीरे धीरे जमीन की तरफ बढ़ती हैं। उक्त दिन उक्त जड़ स्वयं एक वृक्ष बन जाती है। इतना बड़ा वृक्ष दुनिया में कोई और नही है। यह मानसून, विषुवत रेखीय और भूमध्य सागरीय जलवायु में पाया जाता है। अरबी साहित्य में एक बुजुर्ग की छापवाला पेड़ माना जाता है। उसके लाभ और उपयोग विस्तार से बताये गये हैं।
अरबी साहित्य में सुगंधित फूलों को रेहान कहा जाता है। सूरा अर्रेहमान की 12वीं आयत में रेहान का वर्णन है, जिसमें ईश्वर कहता है कि इस विश्व में मैंने सुगंधित फूल पैदा किये हैं, क्या तुम उनको नकार सकते हो? गुलाब और अन्य खिलने वाले फूलों का भी कुरान में कई स्थानों पर वर्णन आया है। यह सुंदर वसुंधरा अपनी गोद में किन किन उपयोगी और दुर्लभ वस्तुओं का खजाना रखती है, इसको अनेक स्थानों पर कुरान ने दोहराया है। रेहान को तुलसी भी कहा जाता है, जिसके गुणगान अरबी और फारसी साहित्य में बड़े पैमाने पर है।
यहां इन सभी बातों की चर्चा इसलिए अनिवार्य है कि मांसाहार करने वाले इस बात को भलीभांति समझें कि जो धर्म को पशुओं की हिंसा से जोड़ते हैं, वे प्रकृति और अपने धर्म के साथ न्याय नही करते। उन देशों में लिखा गया साहित्य यह बतलाता है कि जीवन जीने के लिए जिस खाद्य पदार्थ की आवश्यकता है वह वनस्पति शाक भाजी और फल फूल के रूप में बड़े प्रमाण उपलब्ध हैं। इसलिए उनका सेवन उन्हें लंबी आयु प्रदान करेगा और जीवन में विकास तथा प्रगति अी ऊंचाईयों पर लेकर जाएगा। यदि मांसाहार ही केवल जीवन जीने की पद्घति होती तो फिर कुरान ओर हदीस से ल गाकर अन्य इसलामी साहित्य में इन सब चीजों का इतने विस्तार से वर्णनप करने की आवश्यकता ही क्या होती? मनुष्य विवेकशील प्राणी है, इसलिए शाकाहार संबंधी साहित्य पढ़कर अपने जीवन को अधिक सुखी और समृद्घ बना सकता है।
हमारे समाज में एक प्रश्न यह भी बार बार उठता है कि जो मांसाहारी होता है वह शारीरिक रूप से मजबूत होता है। लेकिन हम देखते हैं कि हाथी, घोड़ा और बंदर ये तीनों शाकाहारी हैं। उनसे बढ़कर कोई ताकतवर जानवर नही है। आज भी शक्ति मापने का पैमाना हॉर्स पॉवर है। मांसाहार बढ़ा सकता है। लेकिन उसकी तामसिकता शरीर की चपलता को क्षीण कर देती है। इसलिए मांसाहारी पशु शाकाहारी पशुओं की तुलना में अधिक सोते हैं। भोजन के पश्चात वे अलसाए से लगते हैं।
क्रमश:

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