शांता कुमार
तुम दूसरों से जो चाहो पर मैं तुमसे और तुम मुझसे नही छिप सकते। तुम फिसल रहे हो। दो घनिष्ठ मित्रों का यह कड़वा संवाद इस बात का साक्षी है कि वीरों के लिए भावनाओं की धरती से कर्त्तव्य का अम्बर बहुत ऊंचा होता है। सुखदेव की आंखें लाल हो गयीं थी। भगतसिंह को भी मानो काठ मार गया था। उसे समझ नही आती थी कि सुखदेव को क्या हो गया था। बहुत देर तक उसके मुंह से कोई नही निकला। फिर सुखदेव की ओर एक वेदना भरी गंभीर दृष्टि से देखकर बोला, विधान सभा में बम फेंकने मैं ही जाउंगा। केन्द्रीय समिति को मेरी बात माननी पड़ेगी। तुमने जो मेरा अपमान किया है, उसका मैं कोई उत्तर नही दूंगा इसके बाद तुम कभी मुझसे बात न करना। सुखदेव ने केवल इतना कहा, I have done my duty towards my friend. मैंने अपने मित्र के प्रति अपना कर्त्तव्य पूरा किया।
सुखदेव दिल्ली से जब लाहौर पहुंचा तो उसकी आंखें सूजी हुई थीं। वह रात भर इस घटना पर रोता रहा था। कर्त्तव्य की कठोर बलिवेदी पर अपने हृदय के स्नेह के पात्र भगतसिंह को भी वह बलिदान करना चाहता था। इसलिए उसे कठोर शब्दों का प्रयोग करना पड़ा। केन्द्रीय समिति को अपनी बैठक दुबारा बुलानी पड़ी और भगत सिंह के हठ के सामने अपना निर्णय बदलना पड़ा। अब भगतसिंह और बटुकेश्वरदत्त को नियुक्त किया गया।
सुखदेव ने लाहौर जाकर भगवती भाई को सारी बात बताई। वे आठ अप्रैल को प्रात:काल ही अपनी पत्नी दुर्गा और सुशीला दीदी को लेकर दिल्ली पहुंच गये। सुखदेव ने उन्हें कुदसिया बाग में ठहरने को कहा और स्वयं भगत सिंह को लेकर वहां पहुंच गया। भगत सिंह किसी बड़े जोखिम के काम पर जा रहा है, जहां से बचकर आने की कोई आशा नही, इतना ही उन्हें मालुम था। दल के अनुशासन के कारण असंबली बम की योजना पर परस्पर कोई बात न हुई। भगत सिंह को रसगुल्ले और संतरे बड़े पसंद थे। दुर्गा भाभी और सुशीला दोनों वस्तुएं साथ लाई थीं और उन्होंने बड़े लाड़ के साथ उसे खिलाईं। भगवती का छोटा पुत्र शशि भगत सिंह से सांडर्स की हत्या के बाद कलकत्ता यात्रा में बहुत हिल गया था। वह भगत सिंह को लंबे चाचाजी पुकारता था। वर्षों से देश के कार्य में कदम से कदम मिलाकर चलने वाले, स्नेह के सूत्र में बंधे हुए मित्र अपने ही एक साथी को मौत के मुंह  में जाते हुए अंतिम विदा दे रहे थे। बड़ा मार्मिक और दारूण था वह दृश्य। क्षण भर के लिए प्रकृति भी सिहर उठी। दुर्गा व सुशीला ने रोली व अक्षत से भगत सिंह के मस्तक पर टीका किया और भावुक दृष्टि से एक दूसरे को देखते हुए विदा ले ली।
8 अप्रैल सन 1929 का वही दिन। विधानसभा में प्रश्नोत्तर का समय समाप्त हुआ। जैसे ही सरकार के गृह सदस्य जॉन शूस्टर दोनों कानूनों को विधानसभा में बहुमत द्वारा ठुकराए जाने के बाद भी वायसराय के विशेष आदेश से लागू करने की घोषणा करने के लिए खड़े हुए भगत सिंह व दत्त सावधान हो गये। उस जनतंत्र की हत्या करने वाली करोड़ों भारतीयों के अधिकारों पर छापा मारकर, उनका अपमान करने वाली घोषणा का अंतिम शब्द अभी शुस्टर के मुंह में ही था कि भगत सिंह ने उसके कौच की दीवार के पीछे  बम फेंक दिया। चारों ओर हॉल में भगदड़ मच गयी। लोग अभी सोच भी न पाए थे कि क्या हुआ है कि दत्त ने भी उसी स्थान पर बम गिरा दिया। दोनों बमों के धमाकों से असेम्बली हॉल थरथरा उठा। चहुं ओर धुआं ही धुआं हो गया। सदस्य भयभीत होकर प्राण बचाने के लिए इधर उधर भागने गले। बसम योजना पूर्वक ऐसे स्थान पर गिराए गये थे, जहां से किसी सदस्य को चोट न आए। फिर भी वामन दलाल तथा कुछ और सदस्यों को मामूली चोटें आईं। शुस्टर घोषणा करने के लिए खड़े हुए तो बम के धमाके से सन्न होकर खड़े के खड़े ही रह गये। कुछ लोग डर के मारे बेंचों  नीचे जा छिपे। जेम्ज क्रेरर बेहोश होकर गिर पड़ा। कुछ सदस्य टट्टियों में जा घुसे। विट्टीलभाई पटेल, मालवीय जी, मोतीलाल नेहरू तथा जिन्ना ही ऐसे सदस्य थे जो भयभीत न हुए और अपनी कुर्सियों पर ही बैठे रहे।
भगत सिंह ने शुस्टर पर पिस्तौल की गोली भी चलाई परंतु डेक्स के नीचे घुस जाने के कारण वह बच गया। ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के गगन भेदी नारे लगाते हुए उन्होंने असेम्बली हॉल में लाल पर्चे फेंके। उनका आशय इस प्रकार था–
बहरों को सुनाने के लिए विस्फोट के बहुत ऊंचे शब्द की आवश्यकता होती है। प्रसिद्घ फ्रांसीसी शहीद बैलिया के ये शब्द हमारे काम के औचित्य के साक्षी हैं। पिछले 10 वर्षों में ब्रिटिश सरकार द्वारा सुधार के नाम पर देश का अपमान करने की कहानी दोहराने की आवश्यकता नही है और न ही इस विधानसभा द्वारा हिंदुस्तानी राष्ट्र के सिर पर पत्थर फेंक फेंककर हमारा अपमान करने के उदाहरणों को दोहराने की आवश्यकता है। आज जब साइमन कमीशन से जनता कुछ सुधारों के टुकड़ों की आशा में आंखें फेेलाए बैठी हैं, विदेशी सरकार इस प्रकार के काले कानूनों के रूप में अपने दमन को और भी कड़ा करने का प्रयत्न कर रही है।
इस परिस्थिति में अपने उत्तरदायित्व की गंभीरता अनुभव करके हिंसप्रस ने यह कदम उठाने की आज्ञा दी है। इसका प्रयोजन है कि कानून का यह अपमान जनक प्रहसन समाप्त किया जाए। विदेशी नौकरशाही जो चाहे करे, परंतु वैधानिकता का नकाब फाड़ देना आवश्यक है।
जनता के प्रतिनिधियों से हमारा आग्रह है कि वे इस विधानसभा के पाखण्ड को छोड़कर अपने अपने निर्वाचन क्षेत्र में लौट जाएं अैर जनता को विदेशी दमन और शोषण के विरूद्घ क्रांति के लिए तैयार करें। हम विदेशी सरकार को यह बता देना चाहते हैं कि हम देश की जनता की ओर सार्वजनिक सुरक्षा और औद्योगिक विवाद के दमनकारी कानूनों और लाला लाजपतराय की हत्या के विरोध में यह कदम उठा रहे हैं।
हम मनुष्य जीवन को पवित्र समझते हैं और मानव रक्त बहाने के लिए अपनी विवशता पर दुखी हैं। परंतु क्रंति सबको सम्मान स्वतंत्रता देने और मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को समाप्त करने के लिए क्रांति में कुछ न कुछ रक्तपात जरूरी है। ‘इंकलाब जिंदाबाद’। यह निश्चित है कि भगत सिंह व दत्त यदि चाहते तो सुरक्षित भाग सकते थे। दर्शकों की गैलरी पूरी खाली जा जाने के बाद भी किसी ने उनके पास आने का साहस नही किया। इस तथ्य को जज ने भी स्वीकार किया था। परंतु उनका उद्देश्य केवल बम गिराना ही नही था।
न जाने प्रभु इस प्रकार प्राणों का जरा भी मोह न करने वाले दीवारों को किस मिट्टी से बनाता है। जहां पर दुनिया में हजारों लाखों मनुष्य कीट पतंगों की तरह पैदा होकर स्वार्थ के कीचड़ में गलते हुए मर जाते हैं, जहां पर कुछ चांदी के टुकड़ों के लिए भाई भाई का गला काट देता है, जिस संसार में कुछ चांदी के चमचमाते ठीकरों में बड़ों बड़ों के ईमान नीलाम हो जाते हैं, कांचन व कामिनी की तृष्णा जहां पर ऋषियों का पतन कर देती है, उसी धरती पर इस प्रकार के नरमणि, नरश्रेष्ठ निर्भीक क्रांतिवीर कैसे उत्पन्न हो जाते हैं, जो अपनी भरी जवानी की मस्तानी उमंगों और जीवन के सभी आकर्षणों को निर्दयता से ठोकर मारकर मुस्कराते हुए अपनी ही लाश पर खड़े होकर मृत्यु तक को भी चुनौती दे देते हैं? उसी प्रकार के दो मतवाले यद्यपि अपने उस कार्य का परिणाम जानते थे तो भी निर्भय होकर मुस्करा उठे। जब सार्जेण्ट टेरी ने उनसे आकर प्रश्न किया, क्या यह तुम्ही ने किया है। तो छाती फुलाकर दोनों ने हामी भरी। दोनों को पकड़कर पुलिस नई दिल्ली के थाने में लग गई। क्रमश:

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