किताबी शिक्षा से बढ़कर है

मौलिक हुनर और अनुभव

– डॉ. दीपक आचार्य

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यह जरूरी नहीं है कि पढ़ा-लिखा और उच्च शिक्षा पाने के सोपानों तक पहुंचा आदमी ज्ञानी  हो। ज्ञान का संबंध डिग्रियों, डिप्लोमाओं और प्रमाणपत्रों से नहीं है बल्कि उस शिक्षा-दीक्षा से है जिसमें व्यक्ति के जीवन के सभी प्रकार के संस्कारों, आदर्शों और मूल्यों का समावेश हो तथा इंसान समाज में अपने लायक स्थान बनाने का ही विचार न करे बल्कि उसके जेहन में हमेशा यह रहे कि समाज के लिए उसकी क्या भूमिका हो सकती है, वह समाज और देश के किस प्रकार काम में आ सकता है।

किसी उच्च डिग्रीधारी के मुकाबले उस आदमी का भी उतना ही वजूद है जो पढ़ा-लिखा नहीं है अथवा किसी कारण से पढ़-लिख नहीं पाया। इसी प्रकार कामकाजी महिलाओं और गृहिणी महिलाओं की तुलना किया जाना भी बेकार है क्योंकि घरेलू महिलाएं न हों तो सारा संतुलन बिगड़ जाए और समस्याएं पैदा हो जाएं।

इंसान अपने आप में पूर्ण इंसान है। उसे डिग्रियों के आधार पर तौलना इंसानियत का अपमान है। युगों और सदियों से वे लोग महानता के शीर्ष तक पहुंचे हैं जिन्होंने कभी स्कूल नहीं देखी, कोई डिग्री नहीं ली। ज्ञान का सीधा संबंध इंसान की अपनी मौलिकता से होता है और यही उसके हुनर तथा जीवन निर्वाह का रास्ता तय करती है।    संसार को उन लोगों का ऋणी होना चाहिए जो पढ़े-लिखे नहीं कहे जाते मगर पढ़े-लिखों से कभी कम नहीं आँके गए। ये लोग न हों तो हमारा सभी का जीना तक हराम हो जाए।

जीवन में मौलिक हुनर के साथ-साथ अनुभवों का मेल ही है जो व्यक्ति को सम्पूर्णता प्रदान करता है। बीते जमाने के दसवीं पास लोगों का ज्ञान ही इतना होता था कि बीए और एमए पास लोग भी उनके आगे पानी भरने लगें। शिक्षा को किसी के व्यक्तित्व से जोड़ना और उस शिक्षा की कमी का रोना रोना जो आज बेरोजगारों और बेकारों की लाईने लगा रही है, लाजमी नहीं है।

ज्ञान पवित्र होता है और वह किसी की बपौती नहीं होता, न इसके लिए उसे किसी कॉन्वेंट स्कूल में जाने की मजबूरी होती है और न ही विदेशी पढ़ाई की जरूरत।  ज्ञान व्यक्ति के जन्म से शुरू होता है और मरने के समय तक प्राप्ति होती रहती है।

कई लोगों का घर, खेत-खलिहान, समाज, गांव और क्षेत्र ही अपने आप में पाठशाला होता है जहाँ व्यक्ति निखर कर समाज के लिए समर्पित होता है। और इस व्यावहारिक पाठशाला से निकला इंसान किसी महान से महान विदेशी मान्य विश्वविद्यालयों से निकले स्नातकों से कहीं अधिक ज्ञानवान, अनुभवी और सामाजिक दृष्टि से उपादेय होता है। शिक्षा जरूरी है और सभी के लिए अनिवार्य भी होनी चाहिए मगर इसके बिना कोई इंसान कुछ कर ही नहीं सकता, इस बात को स्वीकारा नहीं जा सकता।

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